लूटने वाले लोगों पर लगाम लगाता नया वक्फ कानून
- वक्फ संशोधन कानून के सांविधानिक समावेशी सुधार पर पाकिस्तान से लेकर ‘परिवारिस्तान’ (कांग्रेस, सपा, राजद, तृणमूल, द्रमुक आदि) तक का सांप्रदायिक वार इस बात का प्रमाण है…

मुख्तार अब्बास नकवी, भाजपा नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री
वक्फ संशोधन कानून के सांविधानिक समावेशी सुधार पर पाकिस्तान से लेकर ‘परिवारिस्तान’ (कांग्रेस, सपा, राजद, तृणमूल, द्रमुक आदि) तक का सांप्रदायिक वार इस बात का प्रमाण है कि ‘लश्कर-ए-लूट’ की छूट पर सर्जिकल स्ट्राइक से लूट-लोलुप लॉबी लामबंद हो गई है। वर्तमान वक्फ सिस्टम में सुधार मुसलमानों के समावेशी सशक्तीकरण की एक और पहल है। यह सुधार धार्मिक आस्था-स्थल के संरक्षण व प्रशासनिक व्यवस्था के संवर्द्धन की गारंटी है। इससे न धर्म को नुकसान है, न धार्मिक स्थल को। देश में लगातार सुधार हो रहे हैं। हर समावेशी, सांविधानिक सुधार पर सांप्रदायिक प्रहार वाले ‘साजिशी सिंडिकेट’ के सांप्रदायिक संक्रमण से हमें सावधान रहना होगा। इस दौर में हर सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, आर्थिक सुधार को हिंदू-मुस्लिम का रंग देने का रिवाज बन गया है। बहकावे की राजनीति इस कदर फैली हुई है कि आसानी से मुसलमान बहकावे में आ रहे हैं। क्या यह सब सिर्फ इसलिए कि इस्लामपरस्त लोग मासूम हैं या इसके पीछे की वजह कुछ और ही है?
अक्सर देखा जाता है कि किसी भी ऐसे मुद्दे पर, जिसका आम मुस्लिम लोगों से कोई लेना-देना नहीं है, उस पर भी वे भड़का दिए जाते हैं। भले ही ये मुद्दे धार्मिक मान्यताओं पर कोई प्रहार न कर रहे हों। वक्फ संशोधन कानून मुल्क का है, किसी मजहब का नहीं। इसलिए अब वक्त आ गया है कि देश, कौम और खुद की तरक्की चाहने वाले मुस्लिम आगे आएं और लगातार फैलाए जा रहे भय-भ्रम पर रोक लगाएं। आजादी के समय से सियासी पार्टियों और उनके नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक हितों के लिए देश के मुसलमानों को हमेशा उकसाया गया और उनमें असुरक्षा के भाव पैदा किए गए। आम तौर पर इससे किसी भी नागरिक को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन क्या करता है, कैसे रहता है, लेकिन जैसे ही देशहित के मुद्दे पर बात होती है, तो चुनिंदा लोग भ्रम की राजनीति करने लगते हैं और लोगों को बहकाते हैं कि उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
आजादी के बाद के वर्षों में अपने राजनीतिक हितों के लिए पैदा की गई असुरक्षा ही अभी तक देश में दंगों और झगड़ों की वजह रही है। मेरा खुद का अनुभव रहा है कि आम मुसलमान वक्फ के मुतवल्लियों से ज्यादा परेशान है। मुतवल्ली संपत्तियों को वक्फ के काम, जैसे यतीमखाने, मदरसे, स्कूल, अस्पताल के लिए वक्फ की आय का इस्तेमाल न करके उसे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए खुर्द-बुर्द कर रहे हैं, जिसके कारण आम मुसलमान को सबसे ज्यादा नुकसान है। गरीब मुसलमान इस बात की शिकायत भी करता है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। ऐसे में, यदि वक्फ की संपत्तियों के रख-रखाव के लिए पूरी व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने कोई कानून बनाया है, तो उसे मुसलमानों पर हमला कैसे कहा जा सकता है? ऐसा तो वही कह सकते हैं, जिन्हें वक्फ के बुरे प्रबंधन से लाभ हो रहा है। ऐसे चंद लोग ही मुस्लिम समुदाय का शोषण कर रहे थे।
अब देश और कौम के लिए सोचने वाले मुसलमानों को यह तय करना है कि वे वक्फ को आदरणीय पैगंबर और कुरान शरीफ में दिए गए सिद्धांतों के अनुसार कौम के भले के लिए चलने वाली संस्था के रूप में देखना चाहते हैं या इसे लूट-खसोट का अड्डा बनाकर कुछ लोगों के हाथ में रहने देना चाहते हैं? यह भी देखें कि जो बड़े वक्फ बेवाओं, यतीमों और गरीबों की मदद के लिए बनाए गए, उनका जमीन पर क्या हाल है, मुतवल्लियों द्वारा कितने बेच दिए गए और पैसा किसी रसूख वाले की जेब में तो नहीं गया? क्या वजह है कि कौम की भलाई की सोच वाले मुसलमानों ने नए वक्फ बनाने छोड़ दिए? यदि वक्फ पारदर्शिता और नियम से नहीं चले, तो पसमांदा मुसलमानों के बच्चे परवरिश और पढ़ाई के लिए दर-दर भटकते रहेंगे। इसलिए सभी अच्छी सोच वाले मुसलमानों को आगे आकर बोलना चाहिए और किसी के लिए नहीं, तो कौम के गरीबों के लिए, यतीमों के लिए, बच्चों के बेहतर भवष्यि के लिए। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के आधार पर चल रही सरकार का इस ऐतिहासिक कदम के लिए समर्थन करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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