ट्रंप के ट्रेड वॉर से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को झटका, रफ्तार घटकर 1.6% रहेगी
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रफ्तार 2026 में और सुस्त होकर मात्र 1.5 प्रतिशत रह जाएगी। ट्रंप की नीतियों ने औसत अमेरिकी शुल्क दरों को बढ़ाकर 15.4 प्रतिशत कर दिया है।

अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर इस साल घटकर 1.6 प्रतिशत रह जाएगी, जो पिछले साल 2.8 प्रतिशत थी। इसकी मुख्य वजह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अनिश्चित ट्रेड वॉर के कारण ग्लोबल ट्रेड का बाधित होना, लागत बढ़ना और व्यवसायों एव उपभोक्ताओं पर इसका असर पड़ना है।
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने मंगलवार को कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रफ्तार 2026 में और सुस्त होकर मात्र 1.5 प्रतिशत रह जाएगी। ट्रंप की नीतियों ने औसत अमेरिकी शुल्क दरों को बढ़ाकर 15.4 प्रतिशत कर दिया है, जो 1938 के बाद से सबसे अधिक है। उनके दूसरी बार सत्ता में आने के समय यह करीब 2.5 प्रतिशत थी। शुल्क, उपभोक्ताओं और अमेरिकी विनिर्माताओं के लिए लागत बढ़ाते हैं जो आयातित कच्चे माल एवं कलपुर्जों पर निर्भर हैं।
वैश्विक जीडीपी पर भी पड़ेगा असर
ओईसीडी के पूर्वानुमान के अनुसार, इस वर्ष विश्व स्तर पर आर्थिक वृद्धि धीमी होकर केवल 2.9 प्रतिशत रह जाएगी और 2026 तक इसी स्तर पर रहेगी। यह पिछले वर्ष की 3.3 प्रतिशत और 2023 की 3.4 प्रतिशत की वृद्धि से काफी कम है।
चीन के प्रस्ताव का समर्थन करे भारत
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की महानिदेशक नगोजी ओकोन्जो-इवेला ने मंगलवार को भारत से विकास के लिए निवेश सुविधा पर चीन की अगुवाई वाले प्रस्ताव के समर्थन का आग्रह करते हुए कहा कि कई विकासशील देश इस पहल का समर्थन कर रहे हैं।
डब्ल्यूटीओ की मुखिया ने कहा कि उन्होंने भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ डब्ल्यूटीओ में सुधारों और कृषि जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की। गोयल इस समय आधिकारिक यात्रा पर पेरिस आए हुए हैं। इवेला ने कहा कि हमें एक नेता के रूप में भारत की जरूरत है। भारत एक अग्रणी देश है और भारत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। इसलिए, भारत को अन्य विकासशील देशों के लिए रास्ता खोलने की जरूरत है।''
चीन के नेतृत्व वाला 128 देशों का समूह विकास के लिए निवेश सुविधा (आईएफडी) प्रस्ताव पर जोर दे रहा है। यह प्रस्ताव केवल उन्हीं देशों के लिए बाध्यकारी होगा जो हस्ताक्षर करेंगे। लेकिन भारत इस प्रस्ताव के खिलाफ है और उसने अबू धाबी में आयोजित पिछले 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में इस पहल का विरोध भी किया। भारत का कहना है कि इस तरह के समझौते 166 सदस्यीय संगठन की बहुपक्षीय प्रकृति को कमजोर करेंगे।