Amidst israel iran war Despite Shia Sunni Divide pakistan close relation with iran but Hatred for Israel शिया-सुन्नी दरार के बावजूद ईरान से दोस्ती, इजरायल से नफरत में किस हद तक जाएगा पाकिस्तान, International Hindi News - Hindustan
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शिया-सुन्नी दरार के बावजूद ईरान से दोस्ती, इजरायल से नफरत में किस हद तक जाएगा पाकिस्तान

शिया मुल्क ईरान के साथ सुन्नी बहुल पाकिस्तान की दोस्ती थोड़ा अजीब जरूर है, लेकिन मजहबी मतभेदों के बावजूद दोनों साथ हैं। दूसरी तरफ इजरायल के प्रति पाकिस्तान की नफरत लगातार बढ़ी है। पाकिस्तान की यह नफरत उसे किस हद तक जाएगी?

Gaurav Kala लाइव हिन्दुस्तानTue, 17 June 2025 06:49 PM
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शिया-सुन्नी दरार के बावजूद ईरान से दोस्ती, इजरायल से नफरत में किस हद तक जाएगा पाकिस्तान

ईरान और इजरायल के बीच युद्ध चल रहा है और पाकिस्तान स्पष्ट तौर पर ईरान के साथ खड़ा है। हाल ही में ईरान ने यह दावा भी किया अगर इजरायल ने ईरान पर परमाणु हमला किया, तो पाकिस्तान ईरान के लिए इजरायल पर परमाणु अटैक करेगा। यह बयान इतना सनसनीखेज था कि पूरी दुनिया में हलचल मच गई। हालांकि विवाद बढ़ने पर पाक सरकार ने इस बयान से किनारा कर लिया। डिप्टी प्रधानमंत्री इशाक डार को संसद में सफाई देनी पड़ी कि पाकिस्तान ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर ईरान और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियां और इजरायल के प्रति पाकिस्तान के कट्टर रुख को उजागर कर दिया है।

एक ओर है शिया बहुल ईरान, दूसरी ओर सुन्नी बहुल पाकिस्तान—मजहबी मतभेद के बावजूद दोनों देश साथ दिख रहे हैं। वहीं इजरायल के खिलाफ पाकिस्तान का रुख शुरुआत से ही सख्त रहा है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने 1948 में ही इजरायल को "इस्लाम और इंसाफ के खिलाफ" बताया था। तब से लेकर अब तक किसी भी पाकिस्तानी सरकार ने इजरायल को मान्यता नहीं दी। सवाल यह है कि इजरायल के प्रति नफरत पाक को किस अंजाम तक पहुंचाएगी।

ईरान के साथ खड़ा पाकिस्तान

पिछले दिनों ईरानी सैन्य अधिकारी मोहसिन रेजाई ने दावा किया कि अगर इजरायल परमाणु हमला करता है, तो पाकिस्तान उसके जवाब में परमाणु हमला करेगा। उन्होंने पाकिस्तान की ‘शाहीन-3’ मिसाइल की इज़रायल तक पहुंच का भी जिक्र किया। यह बयान पूरी दुनिया में हलचल का कारण बना।

पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते लंबे समय तक सीमित और सतर्क रहे हैं, खासकर बलूचिस्तान और शिया-सुन्नी संघर्ष के चलते, लेकिन हाल के वर्षों में सीपैक (CPEC), चीन की मध्यस्थता और मुस्लिम दुनिया में नेतृत्व की होड़ ने इन रिश्तों को फिर से मजबूती दी है। पाकिस्तान, सऊदी अरब और ईरान के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में है और ईरान के साथ इजरायल विरोध जैसे साझा मुद्दों पर सहयोग करता दिख रहा है।

पाक की इजरायल से नफरत वर्षों पुरानी

दूसरी ओर पाकिस्तान और इजरायल के बीच तल्खी चर्चा में है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में विरोध हो, कूटनीतिक बयानबाजी या ईरान के समर्थन में पाकिस्तान की स्थिति। इजरायल के प्रति पाकिस्तान की शत्रुता कोई हालिया घटनाक्रम नहीं है। 1947 में भारत के विभाजन के तुरंत बाद जब इजरायल 1948 में एक यहूदी राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया, तो पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इसका कड़ा विरोध किया था। जिन्ना ने उस वक्त कहा था, "इजरायल इस्लाम और न्याय दोनों के खिलाफ है। हम कभी ऐसे राष्ट्र को मान्यता नहीं देंगे जो फिलिस्तीनियों की जमीन पर जबरन कब्जा करके बना है।"

इजरायल से नजदीकियों पर पाक में जबरदस्त विरोध

जिन्ना ने फिलिस्तीन के अरब मुसलमानों के अधिकारों का समर्थन किया और पाकिस्तान की विदेश नीति को उसी आधार पर गढ़ा। पाकिस्तान अब तक इजरायल को एक देश के रूप में मान्यता नहीं देता है। पाकिस्तान के कुछ नेताओं ने समय-समय पर इजरायल से रिश्ते सुधारने के प्रयास किए, लेकिन उन्हें भीतरी विरोध और कट्टरपंथी संगठनों के दबाव के चलते रोकना पड़ा। मुशर्रफ के कार्यकाल में पाकिस्तान और इजरायल के विदेश मंत्रियों की तुर्की में ऐतिहासिक मुलाकात हुई। उस वक्त इजरायल ने इसे “बड़ी शुरुआत” कहा, लेकिन पाकिस्तान में इसका जबरदस्त विरोध हुआ। विरोध इतना प्रबल था कि सरकार को पीछे हटना पड़ा।

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इमरान खान की सरकार पर भी कई बार आरोप लगे कि वह गुप्त रूप से इजरायल से संपर्क में थी। हालांकि इमरान ने साफ कहा, “जब तक फिलिस्तीनियों को उनका हक नहीं मिल जाता, पाकिस्तान कभी इजरायल को मान्यता नहीं देगा।”

किस हद तक जाएगी यह नफरत

आज जब ईरान और इजरायल आमने-सामने हैं, तब पाकिस्तान ने खुलकर इजरायल की निंदा की है और ईरान का परोक्ष समर्थन दिया। हालांकि जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान और इजरायल के बीच युद्ध जैसी स्थिति की संभावना बहुत कम है, क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक है। सैन्य रूप से भी वह इज़रायल जैसी तकनीकी ताकत से सीधे टकराव की स्थिति में नहीं है। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय दबाव और चीन-सऊदी जैसे सहयोगियों से संतुलन बनाए रखना भी उसकी मजबूरी है।

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