ईशनिंदा तो बहाना, असली मकसद हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों की जमीन कब्जाना; फिर खुली पाक की पोल
पाकिस्तान की कुल जनसंख्या में अल्पसंख्यकों का हिस्सा लगभग 3-4% है, जिसमें हिंदू और ईसाई सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह हैं। इसके अलावा, कुछ जातीय अल्पसंख्यक समूह भी हैं, जैसे बलूच और पश्तून।

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) ने हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है, जिसमें पाकिस्तान के ईशनिंदा कानूनों के कथित दुरुपयोग को लेकर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन कानूनों का इस्तेमाल जमीन हड़पने, ब्लैकमेलिंग, और धार्मिक अल्पसंख्यकों को जबरन बेदखल करने के लिए किया जा रहा है। बता दें कि हिंदू पाकिस्तान में सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक हैं।
"जमीन हड़पने की साजिश: ब्लैकमेल और लाभ के लिए पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग" नामक 29 पन्नों की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल भीड़ को उकसाने, पूरे समुदायों को उनके घरों से बेदखल करने, और उनकी संपत्ति हड़पने के लिए किया जा रहा है। यहां हैरानी वाली बात ये है कि लोगों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के बेदखल किया जा रहा है।
पांच जिलों में की गई जांच
ह्यूमन राइट्स वॉच ने मई 2024 से जनवरी 2025 के बीच लाहौर, गुजरांवाला, कसूर, शेखूपुरा और इस्लामाबाद जैसे पांच जिलों में ईशनिंदा के 14 आरोपियों के साथ बातचीत की। इसके अलावा वकीलों, सरकारी वकीलों, जजों, पुलिस अधिकारियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का भी इंटरव्यू लिया गया।
HRW की एशिया एसोसिएट डायरेक्टर, पेट्रीशिया गॉसमन ने कहा, “पाकिस्तानी सरकार को अपने ईशनिंदा कानूनों में तत्काल सुधार करने चाहिए ताकि उनका दुरुपयोग कर प्रतिद्वंद्वियों को ब्लैकमेल करने, निजी दुश्मनी निकालने, और हाशिये पर खड़े समुदायों पर हमले करने से रोका जा सके।”
अल्पसंख्यक समुदाय मुख्य निशाने पर
संगठन ने पाया कि ईशनिंदा कानून के तहत आरोपी बनाए गए लोगों में से कई ईसाई और अहमदिया जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से हैं। कई मामलों में, आरोप लगाए जाने के बाद पूरे समुदाय को भागने पर मजबूर होना पड़ा, खासकर उन इलाकों में जहां निवासियों के पास औपचारिक भूमि के अधिकार नहीं थे। ह्यूमन राइट्स वॉच ने बताया कि इस तरह के विस्थापन के कारण अक्सर संपत्ति पर अवैध कब्जा कर लिया जाता है या जबरन बेच दिया जाता है।
ये हैं प्रमुख घटनाएं
एक मामले में, लाहौर में एक ईसाई ब्यूटीशियन को अपना नया सैलून खोलने के कुछ ही समय बाद भागना पड़ा क्योंकि एक भीड़ ने उन्हें निशाना बनाया। हमले का नेतृत्व कथित तौर पर एक स्थानीय मौलवी ने किया था, जिसने उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाया। एक अन्य मामले में, एक ईसाई स्कूल संचालक को धमकाया गया और कहा गया कि अगर वह "प्रायश्चित" के लिए पैसे नहीं देगा, तो उसके स्कूल पर हमला किया जाएगा। आरोप था कि उसके स्कूल के एक शिक्षक ने कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी की थी।
2013 की जोसेफ कॉलोनी (लाहौर) की बहुचर्चित घटना का भी उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है, जहां एक ईसाई व्यक्ति सवॉन मसीह पर ईशनिंदा का आरोप लगने के बाद लगभग 100 से अधिक घरों को भीड़ ने जला दिया था। 2020 में सवॉन मसीह को अदालत ने निर्दोष पाया, लेकिन स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं का दावा है कि हमला उस समुदाय को जमीन से बेदखल करने के उद्देश्य से किया गया था।
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया कि कुछ संगठित समूह, जिनमें से कुछ का संबंध धार्मिक संगठनों जैसे तहरीक-ए-लब्बैक (टीएलपी) और लीगल कमीशन ऑन ब्लासफेमी पाकिस्तान से है, वे सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए लोगों को फंसाने के लिए ईशनिंदा कंटेंट शेयर करते हैं। इसके बाद वे झूठे मामले दर्ज कर परिवारों को ब्लैकमेल करते हैं। लाहौर की स्पेशल ब्रांच की एक रिपोर्ट, "द ब्लासफेमी बिजनेस", में पाया गया कि एक संगठित समूह ने 2021 के बाद से 90% ईशनिंदा मामलों में संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) के अधिकारियों के साथ मिलकर लोगों को फंसाया।
मृत्युदंड तक की सजा
पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून पाकिस्तानी दंड संहिता की धारा 295-298 के तहत आते हैं। ये धाराएं किसी भी मान्यता प्राप्त धर्म के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों या कुरान की अवमानना के लिए जुर्माना, आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान करती हैं। हालांकि, अभी तक किसी को भी इन कानूनों के तहत फांसी नहीं दी गई है, लेकिन भीड़ द्वारा हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2020 में जहां 11 ईशनिंदा मामले दर्ज हुए, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर कम से कम 475 हो गई। विशेष रूप से, सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के आधार पर आरोपों में वृद्धि देखी गई है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि पाकिस्तान में ईशनिंदा के झूठे आरोप लगाने वालों के खिलाफ शायद ही कभी कोई कार्रवाई होती है। इसके साथ ही सरकार ने इन कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई प्रभावी सुरक्षा तंत्र भी नहीं बनाया है। संगठन ने पाकिस्तान सरकार से ईशनिंदा कानूनों को पूरी तरह से खत्म करने और इन कानूनों के तहत बंद लोगों को रिहा करने की मांग की है।
पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार
पाकिस्तान में हिंदू समुदाय देश की जनसंख्या का लगभग 1.9% है। उसको लंबे समय से विभिन्न प्रकार के अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से सिंध प्रांत में हिंदुओं को जबरन धर्म परिवर्तन, अपहरण, और नाबालिग हिंदू लड़कियों के जबरन विवाह जैसी घटनाओं का शिकार बनाया जाता है। ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग अक्सर हिंदुओं को निशाना बनाने और उनकी संपत्ति हड़पने के लिए किया जाता है, जैसा कि ह्यूमन राइट्स वॉच की हालिया रिपोर्ट में उजागर हुआ है। इसके अलावा, मंदिरों पर हमले, सामाजिक भेदभाव, और आर्थिक हाशिए पर धकेलने की घटनाएं आम हैं। हिंदू समुदाय को शिक्षा और रोजगार में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण कई परिवार भारत या अन्य देशों में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।
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