क्या डोनाल्ड ट्रंप पर भरोसा करता है भारत? जयशंकर की दो टूक- हमारे लिए देशहित सबसे ऊपर
जयशंकर के बयानों से स्पष्ट है कि भारत का रुख व्यक्तिगत नेतृत्व से अधिक राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। उन्होंने यूरोपीय देशों को आतंकवाद के प्रति उदासीनता के खिलाफ चेतावनी भी दी।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भारत के संबंधों पर सवालों का जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि भारत का ध्यान व्यक्तियों पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। जयशंकर ने कहा है कि भारत का उद्देश्य हर उस रिश्ते को आगे बढ़ाना है जो देश के हित में हो। उन्होंने कहा कि इस लिहाज से अमेरिका के साथ संबंध भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि यह किसी एक व्यक्ति या राष्ट्रपति पर आधारित नहीं है।
यूरोप की यात्रा पर गए विदेश मंत्री से पूछा गया कि क्या भारत डोनाल्ड ट्रंप पर भरोसा करता है? यूरएक्टिव को दिए एक इंटरव्यू में जयशंकर कहा, “मैं दुनिया को जैसा है, वैसा ही स्वीकार करता हूं। हमारा लक्ष्य उन सभी संबंधों को मजबूत करना है जो भारत के हित में हों- और अमेरिका के साथ संबंध हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह किसी 'व्यक्ति X' या 'राष्ट्रपति Y' की बात नहीं है।” जयशंकर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और ट्रंप प्रशासन के बीच पाकिस्तान द्वारा समर्थित सीमा पार आतंकवाद जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतभेद सामने आए हैं।
आतंकवाद पर यूरोप को चेतावनी
जयशंकर ने यूरोपीय देशों को आगाह करते हुए कहा कि यदि वे आतंकवाद की अनदेखी करते हैं तो यह एक दिन उन्हें भी परेशान करेगा। उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूं कि दुनिया समझे- यह केवल भारत-पाकिस्तान का मामला नहीं है। यह आतंकवाद का मामला है। और यही आतंकवाद एक दिन आपकी ओर भी लौटेगा।”
ओसामा बिन लादेन का जिक्र
पहलगाम आतंकी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लगभग एक महीने बाद यूरोप की यात्रा पर गए जयशंकर ने कहा, ‘‘मैं आपको एक बात याद दिलाना चाहता हूं कि ओसामा बिन लादेन नाम का एक आदमी था। वह पाकिस्तान के एक सैन्य छावनी वाले शहर में वर्षों तक सुरक्षित क्यों महसूस करता था?’’ वह भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए चार-दिवसीय संघर्ष को लेकर पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ को परमाणु हथियार वाले दो पड़ोसियों के बीच प्रतिशोध के रूप में पेश करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि दुनिया समझे कि यह केवल भारत-पाकिस्तान का मुद्दा नहीं है। यह आतंकवाद के बारे में है, और यही आतंकवाद अंततः आपको (पश्चिमी देशों को) भी परेशान करेगा।’’
रूस पर सवाल उठाने वालों को जवाब
यूरोप की ओर से भारत-रूस संबंधों पर उठाए जा रहे सवालों पर भी विदेश मंत्री ने तीखा जवाब दिया। जब उनसे पूछा गया कि रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में भारत शामिल क्यों नहीं हुआ, तो जयशंकर ने कहा कि मतभेदों को युद्ध के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘हम नहीं मानते कि मतभेदों को युद्ध के जरिए सुलझाया जा सकता है, हम नहीं मानते कि युद्ध के मैदान से कोई समाधान निकलेगा। यह तय करना हमारा काम नहीं है कि वह समाधान क्या होना चाहिए।’’
जयशंकर ने कहा कि भारत के केवल रूस के साथ ही नहीं बल्कि यूक्रेन के साथ भी मजबूत संबंध हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हर देश, स्वाभाविक रूप से, अपने अनुभव, इतिहास और हितों पर विचार करता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत की सबसे पुरानी शिकायत है कि स्वतंत्रता के कुछ ही महीनों बाद हमारी सीमाओं का उल्लंघन किया गया, जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठियों को भेजा। और कौन से देश इसका सबसे अधिक समर्थन करते थे? पश्चिमी देश।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि वही देश- जो उस समय टालमटोल कर रहे थे या चुप थे- अब कहते हैं कि ‘आइए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के बारे में सार्थक चर्चा करें’, तो मुझे पूरा हक है कि मैं उन्हें उनके अतीत पर विचार करने को कहूं।’’
चीन और डेटा सुरक्षा पर भी रखी बात
चीन को लेकर पूछे गए एक सवाल पर जयशंकर ने बताया कि कई यूरोपीय कंपनियां अब भारत में अपने निवेश को लेकर सक्रिय हैं, खासकर इसलिए कि वे अपनी सप्लाई चेन को 'डि-रिस्क' करना चाहती हैं। उन्होंने कहा, “कई कंपनियां अब यह ध्यान रख रही हैं कि वे अपना डेटा कहां रखें- वे ऐसा स्थान चुन रही हैं जो सुरक्षित और विश्वसनीय हो, न कि केवल कुशल। क्या आप सच में अपने डेटा को उन लोगों के हाथ में देना चाहेंगे जिन पर आप भरोसा नहीं करते?”
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