औरतों के हक पर पाबंदियां, हिंदुओं में खौफ; यूनुस की नाक के नीचे तालीबानी रास्ते पर बांग्लादेश
- मोहम्मद यूनुस की नाक के नीचे इस्लामी कट्टरपंथी संगठन बांग्लादेश में नए-नए तालीबानी फरमान जारी करने शुरू कर दिए हैं।

बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की हुकूमत के खात्मे के बाद यूनुस सरकार में मजहबी कट्टरपंथी एक्टिव हो गए हैं। इस्लामी कट्टरपंथी संगठन बांग्लादेश में नए-नए तालीबानी फरमान जारी करने शुरू कर दिए हैं। एक तरफ जहां नौजवान लड़कियों के फुटबॉल खेलने पर पाबंदी लगा दी गई है, वहीं दूसरी तरफ एक शख्स ने जिसने एक औरत को हिजाब न पहनने पर परेशान किया था, उसे फूलों की माला पहनाकर सम्मानित किया गया।
बांग्लादेश के कई हिस्सों में अब मजहबी जुनून का असर दिखने लगा है। ढाका में हजारों लोगों की भीड़ ने एक रैली निकाली, जिसमें मांग की गई कि अगर कोई इस्लाम की बेइज्जती करता है तो उसे फांसी दी जाए। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने कार्रवाई नहीं की, तो वे खुद ही सजा देंगे। कुछ ही दिनों बाद एक प्रतिबंधित संगठन ने जुलूस निकालकर बांग्लादेश को इस्लामी खिलाफत में तब्दील करने की मांग रखी। ये सब अमेरिका के मशहूर अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में सामने आया है।
साल 2009 में बांग्लादेश में बैन हो चुकी संस्था हिज्ब उत-तहरीर ने मार्च के महीने में पहली बार खुलकर रैली निकाली। इस संगठन के हजारों समर्थक बैतुल मुकर्रम नेशनल मस्जिद के बाहर जमा हुए और खिलाफत मार्च किया।
यूनुस अपना रखा है नरम रवैया
इस वक्त बांग्लादेश की अस्थायी सरकार की बागडोर मोहम्मद यूनुस के हाथ में है। यूनुस की सरकार पर यह आरोप लग रहे हैं कि वह इन कट्टरपंथी ताकतों पर कड़ा रुख नहीं अपना रही। आलोचकों का कहना है कि यूनुस सिर्फ लोकतांत्रिक सुधारों में उलझे हुए हैं और कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव पर उनका ध्यान नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, यूनुस न तो कोई ठोस कार्रवाई कर पा रहे हैं और न ही कोई स्पष्ट दिशा तय कर पा रहे हैं।
महिलाओं के लिए बढ़ती मुश्किलें
बांग्लादेश में बदलाव की चाह रखने वाली महिला छात्राएं इस नए हालात से परेशान हैं। उन्होंने शेख हसीना के खिलाफ आवाज उठाई थी, लेकिन अब खुद को मजहबी कट्टरपंथ के साए में घिरा हुआ महसूस कर रही हैं। ढाका यूनिवर्सिटी की समाजशास्त्र की छात्रा शेख तसनीम अफरोज एमी ने कहा, "हमने विरोध प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। हमने अपने भाइयों को सड़कों पर बचाया। लेकिन अब पांच-छह महीने बाद हालात उलट हो गए हैं।"
महिलाओं के फुटबॉल मैच पर बवाल
हाल ही में तारागंज कस्बे में जब कुछ नौजवान लड़कियों का फुटबॉल मैच कराने की तैयारी हो रही थी, तभी एक मस्जिद के मौलवी अशरफ अली ने एलान कर दिया कि वह अपनी जान दे देंगे, लेकिन यह मैच नहीं होने देंगे। इसके बाद प्रशासन ने मुकाबले को रद्द कर दिया और वहां कर्फ्यू लगा दिया। एक खिलाड़ी तसलीमा अख्तर ने कहा, "मैंने दस साल से फुटबॉल खेला है, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि हमें खेलने से रोका जा रहा है।" हालांकि, बाद में सुरक्षा बलों की मौजूदगी में मैच कराया गया, लेकिन खिलाड़ियों को शॉर्ट्स के नीचे स्टॉकिंग्स पहनने का हुक्म दिया गया।
अल्पसंख्यकों पर हमले और उनका डर
शेख हसीना की सरकार गिरने के दिन ही अहमदिया समुदाय की इबादतगाह पर हमला हुआ। सिर्फ अहमदियों ही नहीं, बल्कि हिंदू मंदिरों और दूसरे धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया गया। बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, जनवरी और फरवरी 2025 के दौरान 92 घटनाओं में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए। इसमें 11 हत्याएं, 3 बलात्कार, 25 मंदिरों पर हमले, 6 आदिवासी समुदायों पर हमले, और 38 घरों व दुकानों की तोड़फोड़ और लूटपाट शामिल हैं।
तालिबानी रास्ते पर जा रहा बांग्लादेश?
बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली की कोशिशें जारी हैं, लेकिन कट्टरपंथियों का बढ़ता दबदबा खतरनाक संकेत दे रहा है। न सिर्फ महिलाएं, बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यक भी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। कुछ लोग मानते हैं कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता को हटाकर बहुलवाद को जगह दी जा रही है, जो देश को मजहबी कट्टरता की तरफ मोड़ सकता है।
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