Environmental Crisis in Lohardaga Deforestation and Pollution Threaten Biodiversity लोहरदगा वन प्रमंडल में तीन लाख पौधे लगाए जाएंगे:अभिषेक कुमार, Lohardaga Hindi News - Hindustan
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लोहरदगा वन प्रमंडल में तीन लाख पौधे लगाए जाएंगे:अभिषेक कुमार

लोहरदगा में वन और वन्य जीवों का क्षरण हो रहा है, जिससे प्रदूषण और जलाशयों का अस्तित्व खतरे में है। 1975 में यहां 40% से अधिक जंगल था, अब केवल 31% बचा है। इस वर्ष 3 लाख पौधे लगाने की योजना है, जिसमें...

Newswrap हिन्दुस्तान, लोहरदगाThu, 5 June 2025 12:28 AM
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लोहरदगा वन प्रमंडल में तीन लाख पौधे लगाए जाएंगे:अभिषेक कुमार

लोहरदगा, दीपक मुखर्जी। वन से वायु -वायु से आयु, यह उक्ति आज भी प्रासंगिक, सत्य और सत्य के साथ है। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का कुपरिणाम गांव- चौपाल से लेकर ग्लोबल स्तर पर देखा जा रहा है। झारखंड को कभी वन प्रदेश के रूप में जाना जाता था आज के परिपेक्ष में यहां भी गंभीर प्रदूषण देखने को मिल रहा है। वन और वन्य जीव- जंतुओं का क्षरण हो रहा है। इनके अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो रहा है। दुर्लभ- औषधियां ,उजड़ते वन के साथ यह खत्म हो रहा है। कई नदियों का पानी विषाक्त हो गया है। कई जलाशयों के अस्तित्व खत्म हो गए हैं।

मिट्टी की उत्पादकता काम हो रही है। मिट्टी में पानी के सोखने की क्षमता कम हो रही है। बेवजह पानी बह जा रहा है। इसलिए नारा दिया गया था,कि खेत का पानी खेत में ही रहे, पर बे हिसाब रासायनिक खाद के उपयोग की वजह से प्रतिकूल असर कृषि और इससे जुड़े चीजों में देखने को मिल रहा है। लोहरदगा में कभी 40 प्रतिशत से अधिक जंगल हुआ करता था। 1975 के आसपास तक ग्रीष्म ऋतु में बाहर सोने पर मध्य रात्रि के बाद कंबल ओढ़ने की नौबत आ जाती थी। खुशगवार मौसम और वातावरण के लिए लोहरदगा प्रसिद्ध था। वर्तमान में भले ही दावा किया जा रहा हो, कि लोहरदगा वन प्रमंडल क्षेत्र में 31% वन क्षेत्र है, पर इसके तीन रेंज क्षेत्र में देखें तो कई जगह असंतुलन देखने को मिलता है। बाक्स: लोहरदगा वन प्रमंडल क्षेत्र में लोहरदगा जिले के छह प्रखंडों को लोहरदगा रेंज में रखा गया है। इसमें लगभग 33 प्रतिशत वन क्षेत्र है। इस जिले के कुडू रेंज में स्थिति चिंताजनक है। यहां लगभग 18 प्रतिशत ही वन बचे हैं, जबकि बनारी क्षेत्र रेंज जिसमें गुमला और लातेहार का नेतरहाट क्षेत्र है। वहां सुखद स्थिति है। 40 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है। लोहरदगा वन प्रमंडल में कल 62,530 हेक्टेयर से अधिक भूमि वन क्षेत्र का है। लोहरदगा वन प्रमंडल के डीएफओ अभिषेक कुमार ने बताया की लोहरदगा वन प्रमंडल क्षेत्र में इस बार तीन लाख से अधिक पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए लोहरदगा के बक्शीडीपा और कुडू रेंज ऑफिस परिसर में नर्सरी तैयार किया गया है। खास बात यह है, कि इस बार जंगल के आसपास रहने वाले ग्रामीणों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर मोरिंगा और फुटकल के पेड़ लगाए जाएंगे। इन दोनों पेड़ों के उत्पाद की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। मोरिंगा अथवा सहजन न केवल भरपूर प्रोटीन के रूप में जाना जाता है, बल्कि इसका मेडिसिनल प्लांट के रूप में भी उपयोग होने लगा है। इसी तरह फुटकल का भी अचार बनता है। और आयुर्वेद में इसकी महत्ता दिन ब-दिन बढता जा रहा है।जरूर इस बात कि है, कि हम लोगों को जंगल न काटने के प्रति जागरूक करें। नागरिकों को स्वयं भी इसके प्रति सजग होना चाहिए। पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए ऑर्गेनिक खाद को अपनाना चाहिए, साथ में प्लास्टिक और पॉलिथीन का काम से कम उपयोग करना चाहिए। विकल्प के रूप में प्राचीन काल में जो जिन चीजों का उपयोग होता था। उसे फिर से अपनाना होगा। ईश्वर ने प्रकृति को संतुलित रखने के लिए जो नियम तय किए हैं, उस पर हम सभी को खरा उतरना होगा। एक दूसरे को इसके प्रति सजग करना होगा। जिस तरह जंगल के रक्षा के लिए बाघ जरूरी है, उसी तरह इंसानी जीवन के लिए जंगल जरूरी है। डीएफओ अभिषेक कुमार ने बताया कि बाघ रहेगा तो जंगल बचेंगे, जंगल बचेगा तो जलाशय बचेंगे। जलाशय बचेगा तो बिजली और जीवन बचेगा। फोटो:10-- लोहरदगा पेशरार प्रखंड के बालाडीह गांव में यह बरगद का पेड़ सैंकड़ों वर्षों से खड़ा है। यह लगभग डेढ़ एकड़ भूमि से अधिक क्षेत्र में फैला है। इसमें 2500 से अधिक शाखाएं हैं। इसे बचाना जरूरी है। यह झारखंड का धरोहर है।

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