बोले रामगढ़: वित्त रहित शिक्षकों को चाहिए पेंशन और बेहतर मानदेय
आज देश में वित्त रहित शिक्षा नीति समाज और राज्य के लिए अभिशाप बन गया है। वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत संचालित विद्यालय और महाविद्यालय की स्थिति दयनी

रामगढ़। व्यास शर्मा भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया गया। सन 1976 के 42 में संविधान संशोधन के माध्यम से शिक्षा को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में रखा गया। भारतीय संविधान के प्रदत्त मौलिक अधिकार के अंतर्गत संस्कृति और शिक्षा संबंधी एक प्रमुख अधिकार माना गया है। लेकिन वित्त रहित शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। एक ओर जहां वित्तरहित स्कूल और कॉलेज की हालत दयनीय है, वहीं दूसरी ओर वित्तरहित शिक्षक और शिक्षेकतर कर्मचारियों का वेतन काफी कम है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी दयनीय है। शिक्षक प्रो महेश महतो का कहना है कि कम वेतन से उन्हें घर चलाना भी मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षक के वेतन और भत्ते अधिक होते हैं। लेकिन हम लोगों को जो वेतन और अनुदान मिलता है, वह काफी कम है। वहीं अनुदान की राशि भी समय पर नहीं मिलती है। इससे उन्हें घर की जरूरतों को पूरा करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें कर्ज लेकर अपनी जरूरतों को पूरा करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमें समान काम के बदले समान वेतन नहीं दिया जाता है। इससे हम लोगों के समक्ष हीन भावना उत्पन्न हो जाती है।
वहीं गणेश महतो का कहना है कि समान काम के बदले सरकार समान वेतन नहीं देती है। सरकार हमें साल में जो अनुदान राशि देती है, वह काफी कम है। उन्होंने कहा कि सरकार को अनुदान की राशि बढ़ाने की दिशा में पहल करनी चाहिए, ताकि वे भी सम्मानपूर्वक अपनी जिंदगी को गुजार सके। उन्होंने कहा कि हमलोग बच्चों के भविष्य गढ़ने के लिए दिनरात मेहनत करते हैं। लेकिन कम वेतन मिलने के कारण हम हताश और निराश हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि समाज की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को साकार रूप देने का दायित्व शिक्षा अपने में समानुकूल परिवर्तन कर निभाती है।
वहीं दूसरी ओर रामगढ़ के विभिन्न कॉलेजों के शिक्षकों का कहना है कि शैक्षिक परिवर्तन में एक सतत प्रक्रिया है, किंतु शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की बात करना हमारे देश में एक फैशन सा बन गया है। आजादी के बाद से आज तक देश में जितनी भी शिक्षा नीति बनी है वह शिक्षा सुधार के लिए बनाई गई। इसके अलावा सर्व शिक्षा अभियान शिक्षा का अधिकार अधिनियम, व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा संबंधित शिक्षा, इंजीनियरिंग की शिक्षा, समिति विविध प्रकार की शिक्षा प्रणाली को विकसित किया गया।
उन्होंने कहा कि वैसे तो अनुदान की राशि बढ़ाने और वेतन बढ़ोतरी समेत अन्य मांगों को लेकर वित्तरहित शिक्षक समय-समय पर सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन भी किया था। आंदोलन के बाद वित्त रहित शिक्षा नीति के संदर्भ में अनेक समितियां एवं शिक्षा आयोग का गठन हुआ। हर स्तर पर समीक्षा की गई। शिक्षा आयोग की समीक्षा के आलोक में सरकार का ध्यान वित्त रहित शिक्षा नीति की ओर गया। सरकार के स्तर पर वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत संचालित स्कूल एवं कॉलेज में कार्यरत शिक्षक एवं शिक्षक के उत्तर कर्मचारी को अनुदान देने का प्रावधान बनाया। लेकिन अनुदान की राशि इतनी कम थी कि शिक्षक एवं कर्मचारियों का जीवन निर्वाह नहीं हो सकता था।
उन्होंने कहा कि वित्त रहित शिक्षा नीति को समाप्त करने के लिए आंदोलन किया गया, किंतु काफी वर्षों बाद भी वित्त रहित शिक्षा नीति समाप्त नहीं हुई। यहां तक स्कूल एवं कॉलेज में काम करने वाले शिक्षक एवं शिक्षक कर्मचारीगण काम करते-करते अवकाश को भी प्राप्त कर लिए। किंतु सरकारी स्तर पर उन्हें कोई भी सहायता प्रदान नहीं की गई। उनके परिवारों का संचित तरीके से भरण पोषण भी नहीं हो पाया। वह अपने बच्चों को सही शिक्षा भी नहीं दे सके। वहीं रिटायरमेंट होने पर उन्हें पेंशन, ग्रेच्यूटी समेत सरकारी सुविधाएं नहीं मिलती है। इससे उनका बुढापा भी सही ढंग से नहीं कट पा रहा है।
समस्याएं
1. वर्षों से उपेक्षित है वित्तरहित स्कूल और कॉलेज, नहीं मिलती है विशेष सुविधा।
2. कम वेतन मिलने से वित्तरहित शिक्षकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है
3. अनुदान की राशि समय पर नहीं मिलने से वित्तरहित शिक्षकों को होती है परेशानी।
4. वित्तरहित शिक्षकों को सेवानिवृत्ति के बाद नहीं मिलती है पेंशन
5. वितरहित शिक्षण संस्थानों के लंबित प्रस्वीकृति का मामला का जल्द से जल्द निष्पादन किया जाए।
सुझाव
1. सरकार बैठक कर वित्त रहित शिक्षकों के लिए शिक्षा नीति बनाए।
2. सभी वित्तरहित शिक्षण संस्थानों का समय-समय पर निरीक्षण करवाया जाए।
3. वैसे शिक्षण संस्थान जो सरकारी नियम का पालन करते हैं, उन्हें ग्रेड ए में रखा जाए और सुविधा भी दी जाए।
4. इएसआईसी बीमा की सुविधा, पीएफ की सुविधा वित्त रहित शिक्षकों को मिले
5. सेवानिवृत्ति के पश्चात पेंशन की व्यवस्था की जाए।
मांगों को लेकर आंदोलन कर चुके हैं वित्तरहित शिक्षक
अनुदान की राशि बनाने और वेतन बढ़ोतरी समेत अन्य मांगों को लेकर वित्तरहित शिक्षक समय-समय पर सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन किए है। इसके बाद वित्त रहित शिक्षा नीति के संदर्भ में अनेक समितियां एवं शिक्षा आयोग का गठन हुआ। हर स्तर पर समीक्षा की गई। शिक्षा आयोग की समीक्षा के आलोक में सरकार का ध्यान वित्त रहित शिक्षा नीति की ओर गया। सरकार के स्तर पर वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत संचालित स्कूल एवं कॉलेज में कार्यरत शिक्षक एवं शिक्षक के उत्तर कर्मचारी को अनुदान देने का प्रावधान बनाया। अनुदान की राशि इतना काम था कि शिक्षक एवं कर्मचारियों का जीवन निर्वाह नहीं हो सकता था।
वित्त रहित शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष करने की मांग
शिक्षा किसी भी सभ्य समाज की प्रमुख आवश्यकता है शिक्षा का स्तरीकरण। प्राथमिक माध्यमिक या उच्च शिक्षा के साथ तकनीकी या व्यावसायिक शिक्षा हो सभी सभी शिक्षा समाज को शब्द बनती है। शिक्षा से ही राष्ट्रपति प्रगति संभव है। दुनिया के अनेक देशों में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। दरअसल शिक्षा के अधिकार के साथ-साथ शिक्षा में बराबरी की बात भी होना चाहिए। एक जैसी शिक्षा ही समता मूलक समाज का मजबूत आधार हो सकती है। लेकिन शिक्षकों को सरकारी शिक्षक की तरह सुविधाएं नहीं मिलने के कारण उनमें असंतोष पनप रहा है। वित्तरहित शिक्षकों ने रिटायरमेंट की अवधि 60 की जगह 62 वर्ष करने की बात कही। शिक्षकों ने कहा कि आंदोलन के बाद सरकार 62 वर्ष में सेवानिवृत्ति का आश्वासन देती है, लेकिन उसे पूरा नहीं करती है।
समान काम के बदले वित्तरहित शिक्षकों को मिले समान वेतन
वित्तरहित शिक्षकों ने सामान काम के बदले समान वेतन की मांग की है। शिक्षकों ने कहा कि समान काम के बदले समान वेतन नहीं मिलने से उनके समक्ष निराशा होती है। समान काम के बदले समान वेतन की मांग को लेकर शिक्षकों ने कई बार आंदोलन किया लेकिन आज तक उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। समान वेतन नहीं मिलने से उनके समक्ष हीन भावना उत्पन्न होती है। साथ ही कम वेतन मिलने से उनमें मायूसी भी आती है। वित्तरहित शिक्षकों ने सरकारी शिक्षकों की तरह उनके पेंशन, पीएफ आदि देने की भी मांग की है।
अनुदान की राशि बढ़ाई जाए
वित्त रहित शिक्षकों ने सरकार से अनुदान की राशि 75 प्रतिशत करने की मांग की है। कहा कि सरकार जो साल में दो बार अनुदान देती है, वह काफी कम है। साथ ही अनुदान की राशि जिला शिक्षा विभाग कार्यालय में नहीं पहुंचे सीधे उनके खाते में भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग कार्यालय में अनुदान का पैसा आने पर तीन से चार महीने तक कार्यालय में अटका रहता है। लेकिन उनके खाते में पैसा आने से उन्हें सीधे उसी माह मिल जाएगा। वहीं वित्तरहित शिक्षकों ने सेवानिवृत्ति उम्रसीमा 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करने की मांग की है। साथ ही वित्तरहित शिक्षण संस्थानों के लंबित प्रस्वीकृति का मामला का निष्पादन करने की मांग की गई।
अनुदान की राशि 75 प्रतिशत किया जाए। अनुदान की राशि शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मियों के खाते में सीधे भेजा जाए। वित्त रहित शिक्षण संस्थानों को अधिग्रहण किया जाए। शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मियों की उम्र सीमा 62 वर्ष किया जाए। वितरहित शिक्षण संस्थानों के लंबित प्रस्वीकृति का मामला का निष्पादन किया जाए।-प्रो पूर्णकांत कुमार, जिला महासचिव,़ वित्त रहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा
वित्त रहित शिक्षण संस्थान के कर्मियों को राज्य कर्मी का दर्जा दिया जाए। समान काम के बदले समान वेतन दिया जाए। आठवीं क्लास के बच्चों को साइकिल मुहैया कराई जाए। वित्त रहित शिक्षण संस्थानों के बच्चों को नि:शुल्क पोशाक एवं पुस्तक मुहैया कराई जाए।
- गणेश महतो, कार्यकारी अध्यक्ष, झारखंड माध्यमिक शिक्षक संघ एवं वितरहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा।
शिक्षकों को मिले राज्यकर्मी का दर्जा
वित्त रहित शिक्षण संस्थानों को अधिग्रहण कर सरकार से मिलनेवाला अनुदान की राशि में बढ़ोतरी की जाए। क्योंकि वर्तमान समय में सरकार बहुत कम वेतन दे रहस है। इससे आर्थिक समस्या जस की तस बनी हुई है और परिवार चलाने में परेशानी हो रही है।
प्रो महेश महतो
वित्त रहित शिक्षा नीति शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों को अभिशाप बन गई है। इस कारण शिक्षकों के समक्ष आर्थिक समस्या उत्पन्न हो गई है। सरकार भी शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों के प्रति उदासीन है। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
-प्रो ललिता देवी
सरकार शिक्षा को बढ़ाने के लिए नियम बनाती है। नियम को कड़ाई से पालन करने के लिए कई योजनाएं बनाती है। सरकार के शिक्षा कानून से व्यावसायिक शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। इस कारण गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे है।
-प्रो सहजादी खातून
देश में शिक्षा प्रणाली को विकसित करने के लिए कई नियम बनाए गए है, लेकिन वित्त रहित शिक्षा नीति के प्रति केंद्र और राज्य सरकार उदासीन है। इस कारण वित्त रहित शिक्षा नीति के अंतर्गत आनेवाले शिक्षक-शिक्षकेतर कर्मचारी के अंदर काफी मायूसी है।
-प्रो बबीता कुमारी
वित्त रहित शिक्षण संस्थान के कर्मियों को राज्य सरकार की ओर से अब तक राज्य कर्मी का दर्जा नहीं दिया गया है। इसके लिए हमारा संघ वर्षो से आंदोलन कर रहा है। साथ ही शिक्षण संस्थानों की प्रस्वीकृति का मामला वर्षों से लंबित है। सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। -प्रो प्रणित कुमार
शिक्षा ही समता मूलक समाज का मजबूत आधार है। शिक्षा इंसान की सोच को बदल देती है, लेकिन सरकार एवं उनके अधिकारी वित्त रहित शिक्षकों के प्रति नहीं सोचते है। वित्तरहित शिक्षण संस्थानों की प्रस्वीकृति की मामला वर्षो से लंबित है। सरकार को इस पर युद्ध स्तर पर काम करना चाहिए। -प्रो राजेश प्रसाद
शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मियों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा 62 वर्ष करने की मांग वर्षों से की जा रही है। वर्तमान समय में यह 60 वर्ष है। सरकार आंदोलन के बाद 62 वर्ष का आश्वासन देती है, लेकिन आज तक सरकार ने अपना आश्वासन पूरा नहीं किया।
-डॉ एसके सिन्हा
राज्य सरकार की ओर से वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत शिक्षकों एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों को जो अनुदान की राशि दी जाती है, वह राशि सीधे शिक्षकों के खाते में दिया जाए। क्योंकि डीइओ के खाते से पैसा मिलने में कई महीनों से समय लग जाता है। इससे काफी परेशानी होती है। प्रो संजय सिंह
वित्त रहित शिक्षा नीति में बदलाव करने की आवश्यकता है। क्योंकि वर्तमान नीति से शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों के लिए परेशानी का सबब है। सरकार को शिक्षकों के हित में निर्णय लेना चाहिए। नए नियम बनने से शिक्षकों को सीधा लाभ होगा।
शिक्षक चुरामन महतो
वित्त रहित शिक्षा नीति में बदलाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की जरूरत है। आंदोलन के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट हो सके। समाज व राज्य के उज्ज्वल भविष्य की ओर उन्मुख होकर वर्तमान की स्थितियों पर स्थितियां साधनों और संभावनाओं को आकलन की आवश्यकता है। प्रो इंदिरा महतो
सरकार के नजर में वित्त रहित शिक्षा नीति महज एक झुनझुना है। इस प्रकार के संस्थान में काम करने वाले लोग आज हताश और निराश दिखाई दे रहे हैं। वित्त रहित शिक्षा नीति की व्यवस्था में परिवर्तन करें। नहीं तो शिक्षा एवं शिक्षकों की स्थिति दिनों दिन खराब होती जाएगी। रश्मि सिन्हा
समान काम के बदले समान वेतन भी सरकार की ओर से नहीं दिया जा रहा है। इससे वित्तरहित शिक्षकों के समक्ष आर्थिक समस्या उत्पन्न हो रही है। सरकार साल में एक बार जो अनुदान राशि देती है, वह काफी कम है। सरकार को चाहिए अनुदान की राशि में बढोतरी करें। रोहित वर्मा
75प्रतिशतअनुदान की राशि वित्त रहित शिक्षक को दिया जाए
62 वर्ष सेवानिवृत्ति की उम्र वित्तरहित शिक्षकों का किया जाए
अनुदान की राशि शिक्षकों और कर्मियों के खाते में सीधे भेजा जाए
सरकार से समान काम के बदले सामान वेतन की कर रहे हैं मांग
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