बोले रांची : प्रमाण को ओबीसी पत्र, पहचान के लिए चाहिए गुजराती भवन
रांची में गुजराती समाज आजादी के पहले से रह रहा है, लेकिन आज यह समाज कई समस्याओं का सामना कर रहा है। संख्या में कमी के कारण उनकी समस्याएँ अनदेखी रह जाती हैं। आर्थिक चुनौतियों, सामाजिक सहभागिता में कमी...

रांची, संवाददाता। रांची में गुजराती समाज आजादी के पहले से रह रहा है। यह समाज व्यापार, सेवा और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहा है, परंतु आज यह समुदाय समस्याओं से जूझ रहा है। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में समाज के लोगों ने कहा- संख्या में कम होने के कारण उनकी समस्याएं अक्सर अनदेखी रह जाती हैं। उन्होंने कहा कि समाज के युवाओं को ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाने में परेशानी होती है। राज्य सरकार से कई बार सांस्कृतिक पहचान, आर्थिक अस्थिरता, सामाजिक सहभागिता के लिए गुजराती भवन की मांग की गई, पर नहीं मिला। रांची में वर्षों से गुजराती समाज के लोग रह रहे हैं।
तीन हजार से अधिक इस समाज की आबादी रांची में है। रांची में गुजराती समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। गरबा, नवरात्रि, जन्माष्टमी जैसे त्योहार पहले सामूहिक उत्सव का रूप लेते थे, पर अब ये गतिविधियां सिमट गईं हैं। पारिवारिक आयोजनों में पारंपरिक परिधान और गुजराती गीतों की उपस्थिति घटती जा रही है। नई पीढ़ी गुजराती भाषा बोलने में झिझक महसूस करते हैं, जिससे सांस्कृतिक विरासत के खत्म होने का डर बढ़ गया है। व्यापार में गिरावट और आर्थिक चुनौतियां गुजराती समाज पारंपरिक रूप से व्यापारिक समुदाय रहा है। रांची के कपड़ा, मिठाई, किराना और हार्डवेयर बाजार में इनकी अहम भूमिका रही है। लेकिन, ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों की बढ़ती लोकप्रियता, बड़े ब्रांड्स की एंट्री और नगर निगम की उदासीनता ने स्थानीय व्यापारियों को नुकसान पहुंचाया है। जीएसटी और लाइसेंसिंग प्रक्रिया में जटिलता के कारण भी समाज के व्यापारियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सामाजिक सहभागिता में गिरावट पहले गुजराती समाज में सामूहिक आयोजन, महिला मंडल, भजन संध्या और बाल संस्कार केंद्र जैसे कार्यक्रम नियमित होते थे। इससे आपसी संबंध मजबूत होते थे। अब नए नेतृत्व की कमी और युवाओं की व्यस्तता के कारण ऐसे आयोजन बंद हो गए हैं। इससे समाज में संवाद की कमी आई है और बुज़ुर्ग व युवा वर्ग के बीच की दूरी भी बढ़ी है। शिक्षा और करियर संबंधी सीमाएं समाज के लोगों ने कहा गुजराती परिवारों के बच्चे रांची में स्कूली शिक्षा तो पाते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहतर संसाधनों की कमी है। इस वजह से उन्हें बाहर के शहरों- जैसे अहमदाबाद, दिल्ली या पुणे जाना पड़ता है। यह पलायन न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाता है, बल्कि समाज के युवाओं को स्थायी रूप से बाहर बसने को भी प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि राज्य में उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है। साथ ही यहां रोजगार के अवसर भी कम हैं। इस कारण युवाओं को यहां से पलायन करना पड़ता है। इससे स्थानीय समाज का आकार छोटा हो रहा है और सामाजिक गतिविधियां कमजोर पड़ती जा रही हैं। साथ ही, यह प्रवृत्ति सांस्कृतिक आयोजनों में सहभागिता को भी प्रभावित कर रही है। ओल्ड कमिश्नर कंपाउंड क्षेत्र में फॉगिंग की आवश्यकता ओल्ड कमिश्नर कंपाउंड इलाके में मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसे रोगों का खतरा है। समाज की मांग है कि नगर निगम इस क्षेत्र में नियमित रूप से कोल्ड फॉगिंग मशीन भेजे। लोगों ने कहा कि इस क्षेत्र में निगम की उदासिनता के कारण सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इससे यहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। लोगों ने कहां कि इस क्षेत्र में नियमित सफाई करवानी चाहिए। मंईयां योजना से वंचित महिलाएं मूलवासी नहीं माने जाने के कारण गुजराती समाज की महिलाएं राज्य सरकार की मंईयां योजना का लाभ नहीं ले पा रही हैं, जबकि वे वर्षों से रांची में रह रही हैं। लोगों का कहना है कि इस समाज में भी काफी लोग पिछड़े हुए हैं। समस्याएं 1. गुजराती समाज के लोगों के लिए नहीं है सामुदायिक भवन, कार्यक्रम में होती है परेशानी। 2. ट्रेड लाइसेंस की प्रक्रिया जटिल है। लाइसेंस नवीनीकरण के लिए होती है अवैध वसूली। 3. रांची जिला में ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाने में परेशानी, जिससे कई योजनाओं से वंचित। 4. गुजराती समाज की महिलाओं को मंईंयां सम्मान योजना का नहीं मिल रहा लाभ। 5. ओल्ड कमिश्नर कंपाउंड क्षेत्र में गंदगी का अंबार, मच्छरों से परेशान स्थानीय लोग। सुझाव 1. गुजराती समाज के लोगों के लिए सामुदायिक भवन या लीज पर जमीन दी जाए। 2. ट्रेड लाइसेंस की प्रक्रिया को सरल किया जाए। जिससे व्यापारियों को समस्या न हो। 3. रांची जिला में ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जिला प्रशासन कैंप लगवाए। 4. गुजराती समाज की पिछड़ी महिलाओं को मंईंयां सम्मान योजना का लाभ दिया जाए। 5. ओल्ड कमिश्नर कंपाउंड क्षेत्र में सफाइ व्यवस्था बहाल हो, नियमित फॉगिंग की जाए। बोले लोग रांची के प्रमुख व्यापारी और समाजसेवी लालजी हिरजी की स्मृति में मेन रोड स्थित सर्जना चौक का नाम उनके नाम पर रखा जाए, ताकि समाज के योगदान को उचित सम्मान मिल सके। लालजी हिरजी का रांची के व्यापारिक और सामाजिक विकास में अहम योगदान रहा है। उन्हें सम्मान देते हुए सर्जना चौक का नाम बदला जाए। -सागर कुमार रांची में गुजराती समाज की ओर से लंबे समय से एक स्थायी भवन की मांग की जा रही है, जहां सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक गतिविधियां आयोजित की जा सकें। समाज का कहना है कि सरकार अन्य समुदायों की तरह गुजराती समाज को भी भवन निर्माण के लिए उचित स्थान लीज पर उपलब्ध कराए, जिससे समाज के कार्यक्रम आयोजित हो। -विनोद प्रफुल सोलंकी गुजराती समाज के युवाओं को ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाने में काफी परेशानी होती है। इसके लिए जिला प्रशासन कैंप लगवाए। -वनिता परमार नए ट्रेड लाइसेंस बनवाने और पुराने लाइसेंस के नवीनीकरण की प्रक्रिया जटिल है। इससे व्यपारियों को परेशानी होती है। -उत्तम चौहान राज्य में गुजराती समाज के युवाओं को ओबीसी प्रमाण पत्र बनवाने में परेशानी होती है, जिससे वे आरक्षण के लाभ लेने में वंचित रह जाते हैं। -प्रफुल चौहान लालजी हिरजी रोड, जो गुजराती समाज के प्रतिष्ठित सदस्य के नाम पर है, काफी जर्जर स्थिति में है। सड़क की मरम्मत हो। -जयंत परमार गुजराती समाज भवन में निरंतर आयोजन होते हैं। यहां स्ट्रीट लाइट लगानी आवश्यक है, जिससे सुरक्षा और सुविधा दोनों सुनिश्चित हो सके। -मंगला राठौर रांची में लालजी हिरजी रोड काफी जर्जर स्थिति में है। सड़क का मरम्मत कार्य नहीं हुआ है, जिससे राहगीरों को भारी दिक्कतें होती हैं। -दीपांकर चौहान कौशल विकास कार्यक्रम से गुजराती युवाओं को जोड़ा जाए। जिससे वे स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ें और विकास में योगदान दे सकें। -विनोद खोरियार ओल्ड कमिश्नर कंपाउंड इलाके में मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसे रोगों का खतरा है। -किशोर कुमार राठौर मूलवासी नहीं माने जाने के कारण गुजराती समाज की महिलाएं राज्य सरकार की मंईयां योजना का लाभ नहीं ले पा रही हैं। -झरना परमार
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