Cockfighting Craze in Simdega A Traditional Game Turns into Gambling Spectacle एक खेल ऐसा जो सामने वाले के मौत के साथ होता है खत्म, Simdega Hindi News - Hindustan
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एक खेल ऐसा जो सामने वाले के मौत के साथ होता है खत्म

सिमडेगा में मुर्गा लड़ाई आदिवासियों के मनोरंजन का एक हिस्सा है, जो अब जुआ खेलने के रूप में तेजी से उभरा है। साप्ताहिक बाजारों में मुर्गों की लड़ाई होती है, जिसमें लाखों रुपये की बोली लगती है। लोग अपने...

Newswrap हिन्दुस्तान, सिमडेगाSun, 15 June 2025 11:06 PM
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एक खेल ऐसा जो सामने वाले के मौत के साथ होता है खत्म

सिमडेगा, छोटू बड़ाईक पुर्वज काल से ही मुर्गा लड़ाई आदिवासियों के मनोरंजन का एक हिस्सा रहा है। जिसे स्थानीय आदिवासी अब भी छोड़ना नहीं चाहते हैं। लेकिन अब मुर्गा लड़ाई जुआ खेल के रूप में तेजी से उभरा है। इसका क्रेज भी ग्रामीण इलाकों में काफी अधिक है। हालांकि मुर्गा लड़ाई का कोई खास सीजन नहीं है। पर यहां गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में मुर्गे लड़ाए जाते हैं। जहां एक मुर्गे में लाखों रुपये तक की बोली लगती है। इसका क्रेज इतना अधिक है कि मुर्गा लड़वाने के शौकीन लोगों की प्रतिष्ठा तक मुर्गे से जुड़ी होती है। अगर उसे कोई मुर्गा पसंद आ जाती है, तो बीस हजार रुपए तक में भी मुर्गा खरीद लेता है।

साथ ही मुर्गा को बड़े जतन से ऐसे पालता है जैसे कि वह परिवार का कोई सदस्य हो। मुर्गे को हिंसक बनाने के लिए जंगलों में मिलने वाली जड़ी बूटी भी खिलाते हैं। मुर्गों लड़ाई के दौरान मुर्गे के पंजो मे हथियार बांधकर आपस में लड़ाया जाता है। यह लड़ाई तभी खत्म होती है, जब दो मुर्गों में से एक की मौत हो जाती है। मुर्गों के बीच मौत का यह खेल देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। 10 रुपये से लेकर लाखों की लगती है बोली मुर्गा के अखाड़े मे दांव आजमाने वाले लोगों के अपने नियम होते हैं। जो मुर्गों के संघर्ष मे अधिक दांव लगाता है, उसे मुर्गा अखाड़ा मैदान में ही विशेष जगह दी जाती है। जबकि कम पैसे लगाने वाले लोगों को अखाड़ा मैदान में लगाये तार के घेरे के बाहर खड़े होना पड़ता है। मुर्गों की अनूठी लड़ाई मे ग्रामीण 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये की बोली लगाते हैं। मुर्गों को बनाया जाता है लड़ाकू मुर्गा लड़ाई से पहले मुर्गों के मालिक उन्हें खिला पिलाकर मजबूत बनाते हैं। मुर्गों को भीड़ के बीच रहने की आदत लग सके। इसलिए पहले उन्हें बाजार मे कई बार लाया जाता है। मुर्गों को मैदान में उतारने से पहले उनको बिना हथियार बांधे आपस मे लड़कर लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। इससे मुर्गे लड़ाई के दौरान घायल हो जाने पर भी अंतिम सांस तक लड़ते रहते हैं।

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