विधायिका के काम में बाधा न डालें राज्यपाल; ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा
- कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रपति किसी विधेयक को अस्वीकार करते हैं या उस पर सहमति नहीं देते, तो उनका यह निर्णय स्पष्ट कारणों के साथ राज्य सरकार को अवश्य बताना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने ‘तमिलनाडु बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल’ मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर एक निश्चित समय सीमा के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य है। अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान में किसी को भी असीमित वीटो की शक्ति नहीं दी गई है और अगर राष्ट्रपति या राज्यपाल जानबूझकर विधेयकों पर निर्णय नहीं लेते हैं तो उनकी निष्क्रियता को न्यायिक जांच के दायरे में लाया जा सकता है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की पीठ ने कहा कि अगर कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 201 के तहत विचारार्थ भेजा गया है, तो राष्ट्रपति को उस पर अधिकतम तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। यदि इसमें देरी होती है, तो राष्ट्रपति को उसका कारण बताना और राज्य सरकार को सूचित करना अनिवार्य होगा।
राज्यपाल भी नहीं कर सकते देरी
इसी तरह अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को भी किसी विधेयक पर अनिश्चितकालीन रूप से विचाराधीन नहीं रख सकते। अदालत ने कहा कि राज्यपाल का कर्तव्य है कि वह विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लें और विधायिका के कार्य में बाधा न डालें।
राष्ट्रपति की निष्क्रियता पर कोर्ट में याचिका संभव
फैसले में यह भी कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति तीन महीने की निर्धारित समय सीमा में निर्णय नहीं लेते हैं, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका (Mandamus) दायर कर सकती है, जिससे राष्ट्रपति को निर्णय लेने के लिए बाध्य किया जा सके।
निर्णय के साथ कारण बताना होगा अनिवार्य
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रपति किसी विधेयक को अस्वीकार करते हैं या उस पर सहमति नहीं देते, तो उनका यह निर्णय स्पष्ट कारणों के साथ राज्य सरकार को अवश्य बताना चाहिए। इस संवाद की प्रक्रिया के बिना राज्य सरकार के पास संशोधन या पुनर्विचार का अवसर नहीं रहता, जो संघीय ढांचे के लिए घातक हो सकता है।
राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत कोर्ट से परामर्श लेने की सलाह
यदि कोई विधेयक गंभीर संवैधानिक आपत्तियों वाला हो, तो राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से परामर्श लेने की सलाह दी गई है। यह कदम देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए जरूरी बताया गया है।
केंद्र और राज्य के बीच सहयोग की जरूरत
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को परामर्श के साथ कार्य करने की सलाह दी है। राज्यों को ऐसे विधेयकों पर, जिनके लिए राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है, केंद्र सरकार से पहले ही चर्चा करनी चाहिए ताकि बाद में टकराव की स्थिति न बने।