वक्फ बिल में एक रात पहले ही हुए ये तीन बड़े बदलाव, जिनका असर सबसे ज्यादा; कैसे
- वक्फ संशोधन बिल में एक रात पहले ही तीन बड़े बदलाव किए गए हैं, जिनका असर काफी ज्यादा दिखेगा। इन बदलावों से प्रशासन का वक्फ बोर्ड में दखल दिखेगा। इसके अलावा वक्फ बोर्ड की राय ही अंतिम नहीं रहेगी। इसके अलावा ASI संरक्षित स्मारकों पर भी वक्फ का दावा नहीं रहेगा।

वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल गई है और अब राज्यसभा में इसे पेश किया जाना है। लोकसभा में 288 सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया, जबकि 232 ने विरोध में मतदान किया। अब गुरुवार को यह विधेयक राज्यसभा में आना है, जहां लंबी बहस के बाद इस पर वोटिंग होगी। लोकसभा में तो बहस इतनी लंबी खिंची कि आधी रात को मतदान हुआ, लेकिन उससे पहले सभी दलों के सदस्यों को अपनी राय रखने का पर्याप्त मौका दिया गया। इस बिल में एक रात पहले ही तीन बड़े बदलाव किए गए हैं, जिनका असर काफी ज्यादा दिखेगा। इन बदलावों से प्रशासन का वक्फ बोर्ड में दखल दिखेगा। इसके अलावा वक्फ बोर्ड की राय ही अंतिम नहीं रहेगी। आइए जानते हैं, कौन-कौन से हैं ये तीन बदलाव...
संरक्षित स्मारक नहीं होंगे वक्फ संपत्ति
बिल में सबसे अहम बदलाव यह किया गया है कि संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इस संशोधन के तहत अब तक जिन संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति का दर्जा था, वह खत्म हो जाएगा। इसके अलावा किसी संरक्षित स्मारक को भविष्य में भी वक्फ में शामिल नहीं किया जाएगा। इसके लिए बिल के क्लॉज 4 में बदलाव किया गया है। दरअसल कई राज्यों में करीब 200 ऐसे स्मारक पाए गए हैं, जो राज्य सरकार की एजेंसियों या फिर ASI द्वारा संरक्षित हैं, लेकिन उन्हें वक्फ की संपत्ति भी माना गया है। अब यह दर्जा समाप्त हो जाएगा। इस बिल से संरक्षित स्मारक पूरी तरह से सरकार के अधीन होंगे। वक्फ ने जिन पर दावा किया है कि उनमें दिल्ली का पुराना किला, कुतुब मीनार, सफदरजंग का मकबरा और हुमायूं का मकबरा शामिल हैं। अब ये सब दावे निरस्त होंगे।
आदिवासी इलाके की जमीन नहीं बनेगी वक्फ संपत्ति
अब एक और अहम बदलाव की बात कर लें, जिसकी लोकसभा में सरकार के सदस्यों ने भी खूब चर्चा की। यह है कि किसी भी आदिवासी इलाके की जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकेगा। बिल में प्रावधान किया गया है कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के मुताबिक जिस भूमि को आदिवासी क्षेत्र घोषित किया गया है, वहां की किसी संपत्ति को वक्फ में शामिल नहीं किया जाएगा। सरकार की राय है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि आदिवासी संस्कृति का संरक्षण किया जा सकेगा और उनके हितों की रक्षा हो।
वक्फ के फैसलों की डीएम करेंगे समीक्षा, टाइम लिमिट भी तय
अब तीसरे बदलाव की चर्चा कर लेते हैं, जिससे वक्फ बोर्ड के फैसलों की सरकारी स्तर पर स्क्रूटनी हो सकेगी। अब वक्फ बोर्ढ की ओर से पारित किसी भी प्रस्ताव के लिए 45 दिन की टाइम लिमिट होगी। यानी वक्फ के फैसले जस के तस तुरंत लागू नहीं होंगे। इसकी बजाय 45 दिन की एक अवधि होगी और इस दौरान डीएम की ओर से उसकी समीक्षा की जाएगी। सरकार के सूत्रों का कहना है कि इन बदलावों को मंगलवार की रात को ही बिल में शामिल किया गया और फिर बुधवार सुबह ही इसकी कॉपी संसद के सभी सदस्यों को दी गई।