Jalianwala Bagh culprit General Dyer was asking for death at the last moment his life आखिरी वक्त में मौत मांग रहा था जलियांवाला बाग का गुनहगार जनरल डायर, बर्बाद हो गई थी जिंदगी, India Hindi News - Hindustan
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आखिरी वक्त में मौत मांग रहा था जलियांवाला बाग का गुनहगार जनरल डायर, बर्बाद हो गई थी जिंदगी

  • जलियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाला जनरल डायर आखिरी वक्त में अपनी मौत मांग रहा था। कई बार स्ट्रोक्स आने की वजह से उसे लकवा मार गया था।

Ankit Ojha लाइव हिन्दुस्तानSun, 13 April 2025 05:06 PM
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आखिरी वक्त में मौत मांग रहा था जलियांवाला बाग का गुनहगार जनरल डायर, बर्बाद हो गई थी जिंदगी

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचकर आज भी रूह कांप जाती है। यह दिन हमें अंग्रेजों को शासन के काले अध्याय की याद दिलाता है। 105 साल बीत जाने के बाद भी आज भी जब कोई जलियांवाला बाग का वह कुआं और गोलियों से छलनी हुई दीवार देखता है तो उसके कानों में मासूमों की चीखें गूंजने लगती हैं।

अमृतसर से थोड़ी ही दूर स्थित जलियांवाला बाग एक पार्क था जो कि चारों ओर से घरों से घिरा हुआ था। केवल एक तरफ से ही आने जाने का पतला सा रास्ता था। बैसाखी के मौके पर हजारों लोग जलियांवाला बाग में रॉलेट ऐक्ट का विरोध करने के लिए जुटे थे। लोग सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे। वहीं ब्रिगेडियर जनरल डायर (REH Dyer) नहीं चाहता था कि लोग ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करें।

जनरल डायर सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा और उसने एक मात्र रास्ता बंद करवा दिया। वहां बंदूकधारी सैनिक तैनात कर दिए गए और इसके बाद क्रूर डार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। वह तब तक गोलीबारी करवाता रहा जब तक सारी गोलियां खत्म नहीं हो गईं। पार्क में जमा महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सब इधर-उधर भागने लगे। लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़ गए। इसके बाद लोग वहां मौजूद एक कुएं में कूदने लगे। बताया जाता है कि कुआं लाशों से पट गया। इस हत्याकांड में लगभग 1500 लोग मारे गए और 1200 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

कैसे हुई जनरल डायर की मौत

जनरल डायर की अंतिम दिनों में दुर्दशा हो गई थी। वह चलने-फिरने को तरस गया था और अपनी मौत की गुहार लगा रहा था। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद जनरल डायर की बहुत निंदा की गई। अंग्रेजी सरकार ने उसपर कोई सख्त ऐक्शन तो नहीं लिया लेकिन दबाव में उसे रिटायर कर दिया गया। आखिरी के दिनों में उसे स्ट्रोक्स आने लगे थे। बार-बार स्ट्रोक्स आने की वजह से उसे लकवा मार गया और वह अपंग हो गया। घटना के 8 साल बाद ही 1927 में उसे सेरेब्रल हैमरेज हो गया और उसकी मौत हो गई।

वहीं हत्याकांड के 21 साल बाद ऊधम सिंह ने अंग्रेजों से इस नरसंहार का बदला लिया था। ऊधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को ही गोलीबारी के जिम्मेदार माइकल डायर को एक सभागार में भाषण के दौरान मार दिया था। वह किताब में रिवॉल्वर पहुंचाकर सभागार में पहुंच गए थे।