मुस्लिम कोटा पर फिर हाथ-पैर मार रही कांग्रेस सरकार, 2 बार बिल लौटा चुके गवर्नर; तीसरी बार क्या प्लान?
गवर्नर गहलोत ने बिल लौटाते हुए सिद्धरमैया सरकार पर वार करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैरा 412 का हवाला दिया है, जो राज्यपालों को किसी भी विधेयक की स्पष्ट संवैधानिकता का पता लगाने की अनुमति देता है।

कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार फिर से मुस्लिम कोटा बिल राष्ट्रपति को भेजने पर विचार कर रही है, जबकि राज्य के राज्यपाल थावरचंद गहलोत दो बार इस विधेयक को लौटा चुके हैं। अब राज्य की कांग्रेस सरकार ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया है कि इस बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा जाए। इस विधेयक में एक करोड़ रुपये तक के सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। इसी साल मार्च में राज्य विधानमंडल ने इस बिल का पारित किया था।
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कर्नाटक सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता (संशोधन) विधेयक, 2025 को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजे जाने संबंधी अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया था। इससे पहले राज्यपाल गहलोत ने 16 अप्रैल को इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रख लिया था लेकिन 28 मई को सभी संभावनाओं को खारिज कर दिया।
गवर्नर के फैसले को अदालत में चुनौती देने पर विचार
अब राज्य के कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने गुरुवार को इस बिल पर अगला कदम उठाने का फैसला लेने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों और कानूनी विशेषज्ञों से मिलने की योजना बनाई थी, हालांकि वह बैठक स्थगित कर दी गई। TOI की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि सिद्धारमैया सरकार ने अब गवर्नर गहलोत के फैसले को अदालत में चुनौती देने पर विचार किया है और चर्चा की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि संवैधानिक विशेषज्ञों ने कथित तौर पर अदालती कार्रवाई ना करने की सलाह दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी विशेषज्ञों ने राज्य सरकार से कहा है कि अदालत का दरवाजा खटखटाने की बजाय वैकल्पिक मार्ग तलाशे जाएं। इस बावत आज (शुक्रवार, 30 मई को) को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई गई है, जिसमें इस मुद्दे पर अनौपचारिक रूप से चर्चा होने की संभावना है।
BJP की आपत्तियों के बावजूद विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा था
बता दें कि गवर्नर थावरचंद गहलोत ने भाजपा की आपत्तियों के बावजूद पहली बार विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। भाजपा ने तब इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह बिल संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है क्योंकि इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई है। दूसरी बार, इस बिल को लौटाते हुए गवर्नर गहलोत ने हाल के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि अनुच्छेद 15 और 16 धर्म के आधार पर आरक्षण पर रोक लगाते हैं और कोई भी सकारात्मक कार्यवाही सामाजिक-आर्थिक कारकों पर आधारित होनी चाहिए।
गवर्नर के आदेश में कहा गया है, ‘‘मैं कर्नाटक सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता (संशोधन) विधेयक, 2025 को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करने के निर्णय पर पुनर्विचार न करने के लिए बाध्य हूं। पंद्रह अप्रैल, 2025 को पूर्व में दिए गए निर्देशानुसार आगे की आवश्यक कार्रवाई के लिए सरकारी फाइल वापस की जाये।’’ (भाषा इनपुट्स के साथ)