फोन बन गया जरूरत, नहीं हटेगा मोबाइल टावर; हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया ग्राम पंचायत का फैसला
एक गांव में मोबाइल टावर को हटाने के प्रस्ताव को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि मोबाइल फोन अब जरूरत बन गया है। ग्राम पंचायत एनओसी वापस नहीं ले सकती है।

शहरी इलाके हों या फिर सुदूर क्षेत्र, मोबाइल फोन बेहद जरूरी चीज बन गया है। अब यह लग्जरी नहीं बल्कि जरूरत में शामिल हो गया है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए ग्राम पंचायत के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें एक कंपनी को गांव में मोबाइल टावर लगाने से रोक दिया गया था। ग्राम पंचायत का कहना था कि मोबाइल टावर से निकलने वाली रैडिएशन से बीमारियां फैलती हैं। हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने पंचायत के प्रस्ताव को गलत बताते हुए टावर लगाने की इजाजत दे दी है।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और अद्वैत सेथना की बेंच ने कहा, आधुनिक समय में वास्तविकता यह है कि मोबाइल फोन लग्जरी आइटम नहीं बल्कि जरूरत की वस्तु बन गया है। शहरी इलाकों से लेकर सुदूर इलाकों तक संचार का साधन मोबाइल फोन है। यह तकनीकी क्रांति में बड़ा योगदान देता है। ऐसे में अधूरी जानकारी के चलते मोबाइल टावर को हटा देना गलत है।
दरअसल सांगली जिले में मिराज तालुका के तनांग गांव में दिसंबर 2023 में ग्राम पंचायत ने ही टावर लगाने के लिए एनओसी दी थी। हालांकि अगस्त 2024 में ग्राम पंचायत ने ही इसे खारिज कर दिया। इसके बाद इंडस टावर्स और जमीन के मालिक अशोक चौगुले ने हाई कोर्ट में पंचायत के इस फैसले को चुनौती दी। बताया गया कि टावर का 90 फीसदी काम पूरा हो गया है। यह जल्द ही चलने वाला था लेकिन ग्राम पंचायत ने इसपर रोक लगा दी।
जजों ने कहाकि याचिकाकर्ताओं का पक्ष बिना सुने और बिना किसी नोटिस के ही पंचायत ने यह फैसला लिया है। इसके अलावा पंचायत ने अपने दावे का कोई वैज्ञानिक आधार भी तय नहीं किया है। जजों ने कहा कि दिसंबर 2015 के सरकार के प्रस्ताव में कहा गया था कि अगर ग्राम पंचायत एक बार एनओसी दे देती है तो इसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता। बेंच ने ग्राम पंचायत के अगस्त 2024 के प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए कहा कि अब ग्राम पंचायत का कोई भी कर्मचारी, एजेंट या फिर ग्रामीण टावर के काम को बाधित नहीं करेगा।