Nehru and Indira had acted arbitrarily in choosing CJI Chief Justice BR Gavai said Judges must remain independent CJI चुनने में नेहरू-इंदिरा ने की थी मनमानी; चीफ जस्टिस गवई बोले- जजों का स्वतंत्र रहना जरूरी, India News in Hindi - Hindustan
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CJI चुनने में नेहरू-इंदिरा ने की थी मनमानी; चीफ जस्टिस गवई बोले- जजों का स्वतंत्र रहना जरूरी

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि न्यायमूर्ति सैयद जफर इमाम को 1964 में खराब स्वास्थ्य के कारण मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया गया और पंडित नेहरू की सरकार ने न्यायमूर्ति पीबी गजेंद्रगढ़कर को यह पद सौंपा।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 4 June 2025 10:51 AM
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CJI चुनने में नेहरू-इंदिरा ने की थी मनमानी; चीफ जस्टिस गवई बोले- जजों का स्वतंत्र रहना जरूरी

कॉलेजियम को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच अक्सर तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं। इस बीच भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने कार्यपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि जजों को स्वतंत्र रहना जरूरी है। उन्होंने कहा है कि जब तक जजों की नियुक्ति में अंतिम निर्णय सरकार के पास था तब तक दो बार गलत तरीके से भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति हुई। उन्होंने कहा कि सबसे वरिष्ठ जजों को नजरअंदाज कर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे। यूके सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में ‘न्यायिक वैधता और जन विश्वास बनाए रखना’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने ये बातें कही हैं। सम्मेलन में भारत के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, इंग्लैंड और वेल्स की लेडी चीफ जस्टिस बैरोनेस कैर और यूके सुप्रीम कोर्ट के जज जॉर्ज लेगाट भी शामिल थे।

सीजेआई गवई ने कहा, “भारत में न्यायिक नियुक्तियों में प्रमुखता किसकी होनी चाहिए, यह हमेशा विवाद का विषय रहा है। 1993 तक यह अधिकार कार्यपालिका के पास था। इस दौरान दो बार कार्यपालिका ने परंपरा तोड़ते हुए वरिष्ठतम न्यायाधीशों को दरकिनार कर दिया।”

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि न्यायमूर्ति सैयद जफर इमाम को 1964 में खराब स्वास्थ्य के कारण मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया गया और पंडित नेहरू की सरकार ने न्यायमूर्ति पीबी गजेंद्रगढ़कर को यह पद सौंपा। जस्टिस खन्ना को 1977 में इंदिरा गांधी सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ा। एडीएम जबलपुर बनाम शिव कांत शुक्ला मामले में उनके फैसले से तत्कालीन सरकार सहमत नहीं थी। इसके कुछ महीनों बाद उन्हें मुख्य न्यायाधीश का पद खोना पड़ा। उन्होंने फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान भी मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है।

कॉलेजियम व्यवस्था की स्थापना

सीजेआई ने कहा कि 1993 और 1998 के ऐतिहासिक फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की व्याख्या करते हुए कॉलेजियम प्रणाली को स्थापित किया, जिसके तहत सीजेआई और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश जजों की नियुक्तियों की सिफारिश करते हैं। उन्होंने कहा, “2015 में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया, क्योंकि इससे कार्यपालिका को अधिक शक्ति मिल जाती और यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता।”

न्यायिक समीक्षा का अधिकार अनिवार्य

सीजेआई गवई ने कहा कि न्यायपालिका के पास स्वतंत्र न्यायिक समीक्षा का अधिकार होना चाहिए ताकि वह यह तय कर सके कि कोई कानून या सरकारी कार्य संविधान के अनुरूप है या नहीं।

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों द्वारा रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद स्वीकार करना या चुनाव लड़ना गंभीर नैतिक प्रश्न खड़े करता है। उन्होंने कहा, “इससे यह शंका उत्पन्न होती है कि कहीं निर्णयों को भविष्य की राजनीतिक या सरकारी संभावनाओं से प्रभावित तो नहीं किया गया। इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और सार्वजनिक विश्वास को नुकसान पहुंच सकता है।”

सीजेआई ने बताया कि उन्होंने और उनके कई साथियों ने यह सार्वजनिक रूप से संकल्प लिया है कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे, ताकि न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता बनी रहे।

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