कश्मीर पर पहले भी मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं ट्रंप, भारत ने 370 हटाकर दिया था संदेश
ट्रंप की ताजा पेशकश ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को वैश्विक ध्यान में ला दिया है, लेकिन भारत का रुख वही है जो 2019 में था- कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और इस पर कोई बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 मई को एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की। यह पेशकश भारत और पाकिस्तान में जारी तनाव के बीच आई है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद, दोनों देशों के बीच चार दिन तक चले सैन्य तनाव के बाद संघर्षविराम हुआ, जिसे ट्रंप ने अमेरिकी मध्यस्थता का परिणाम बताया। हालांकि, भारत कश्मीर पर इस तरह के प्रस्ताव को सिरे से खारिज करता रहा है और अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि कश्मीर पर कोई तीसरा पक्ष मध्यस्थता नहीं कर सकता। भारत ने इस मुद्दे पर केवल एक ही बिंदु पर बातचीत की संभावना जताई: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) की वापसी और आतंकवादियों को सौंपने की मांग।
ट्रंप की पिछली पेशकश और भारत का जवाब
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने कश्मीर पर मध्यस्थता की बात की हो। 22 जुलाई 2019 को ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने का अनुरोध किया था। उस वक्त ट्रंप के साथ पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान बैठे थे। हालांकि भारत ने ट्रंप के मध्यस्थता वाले दावे को तुरंत खारिज कर दिया और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में स्पष्ट किया कि ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया गया। इसके दो ही हफ्तों बाद, 5 अगस्त 2019 को, भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। 370 हटाने के साथ, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया। इस कार्रवाई को कई विश्लेषकों ने भारत के उस रुख के रूप में देखा, जिसमें वह कश्मीर को अपना आंतरिक मामला मानता है और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है।
ताजा घटनाक्रम: सैन्य तनाव और संघर्षविराम
22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए। इसने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को बढ़ा दिया। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया और 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान के भीतर नौ आतंकी ठिकानों पर हमले किए। जवाब में, पाकिस्तान ने भारतीय शहरों पर ड्रोन हमले किए, जिसके बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन से हमले किए। चार दिन की इस तीव्र सैन्य कार्रवाई ने व्यापक युद्ध की आशंका को जन्म दिया, क्योंकि दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस हैं।
10 मई, 2025 को दोनों देशों के सैन्य अभियान महानिदेशकों (DGMO) के बीच बातचीत के बाद भारत और पाकिस्तान ने संघर्षविराम की घोषणा की। ट्रंप ने इसे अमेरिकी मध्यस्थता का परिणाम बताया और 11 मई को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "मैं दोनों देशों के साथ मिलकर यह देखूंगा कि क्या 'हजारों वर्षों' बाद कश्मीर पर कोई समाधान निकाला जा सकता है।" पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस पेशकश का स्वागत किया, लेकिन भारत ने इसे ठुकरा दिया।
भारत का रुख: PoK और आतंकवाद पर जोर
भारत ने अपनी स्थिति को दोहराते हुए कहा कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और इस पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं है। सरकारी सूत्रों ने कहा, "कश्मीर पर केवल एक ही मुद्दा बाकी है- पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की वापसी। अगर पाकिस्तान आतंकवादियों को सौंपने की बात करता है, तो हम बात कर सकते हैं। इसके अलावा कोई अन्य विषय नहीं है।" भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि संघर्षविराम DGMO चैनल के माध्यम से हुआ, न कि किसी बाहरी मध्यस्थता के कारण।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
भारत में विपक्षी दल कांग्रेस ने ट्रंप की पेशकश की आलोचना की। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि कश्मीर कोई "हजारों वर्ष पुराना विवाद" नहीं है, बल्कि यह 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान के आक्रमण से शुरू हुआ। उन्होंने ट्रंप को "जानकारी हासिल" करने की आवश्यकता पर जोर दिया और सरकार से इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की।
वहीं पाकिस्तान ने ट्रंप की पेशकश को "दक्षिण एशिया और उससे परे शांति के लिए महत्वपूर्ण" बताया। विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने की कोशिश कर रहा है, जबकि भारत इसे द्विपक्षीय मामला मानता है, जैसा कि 1971 के शिमला समझौते में सहमति हुई थी।