दोनों पक्ष, 2 पहलुओं पर करें विचार; वक्फ ऐक्ट पर गरमागरम बहस के बीच CJI की अपील, क्या-क्या दलील
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ ऐक्ट पर मेगा बहस के दौरान सीजेआई खन्ना ने कहा कि जब हम यहां बैठते हैं, तो हम अपना-अपना धर्म खो देते हैं। यानी हम धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं। इसलिए हमारे लिए दोनों पक्ष एक जैसे हैं।

वक्फ ऐक्ट 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 70 से अधिक याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई शुरू कर दी। देश के मुख्य न्यायधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने आज बारी-बारी से दर्जनभर वकीलों की बातें सुनीं और बीच-बीच में उनकी दलीलों पर सवाल खड़े किए। इस दौरान CJI खन्ना ने कहा, ‘‘हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर विचार करने के लिए कहना चाहते हैं। पहला, क्या हमें इस पर विचार करना चाहिए या इसे किसी हाई कोर्ट को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आपलोग वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं?’’उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा बिंदु हमें पहले मुद्दे पर निर्णय लेने में कुछ हद तक मदद कर सकता है।’’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती देते हैं जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सिब्बल ने प्रश्न किया कि सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे ही लोग वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं? सिब्बल ने सवाल किया, "राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने का हकदार हूं या नहीं?"
याचिकाएं HC नहीं भेजी जानी चाहिए: सिंघवी
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि एक उच्च न्यायालय को याचिकाओं से निपटने के लिए कहा जा सकता है। हालांकि, उन्होंने कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और फैसला देने में उच्चतम न्यायालय पर कोई रोक है। उन्होंने कहा कि वह कानून पर रोक लगाने के पहलू पर कोई दलील नहीं सुन रहे हैं। इस बीच, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का पूरे भारत में प्रभाव होगा, याचिकाएं उच्च न्यायालय नहीं भेजी जानी चाहिए।
‘वक्फ बाय यूजर’ इस्लाम की स्थापित प्रथा
एक वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने दलील दी कि ‘वक्फ बाय यूजर’ इस्लाम की स्थापित प्रथा है, इसे छीना नहीं जा सकता। केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, वक्फ संशोधन बिल के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया और विस्तृत कवायद की गई। जेपीसी ने 38 बैठकें कीं, 98.2 लाख ज्ञापनों की जांच की, फिर संसद के दोनों सदनों ने इसे पारित किया। अब इसे क्यों चुनौती दी जा रही है।
इस दौरान उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से पूछा कि क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक न्यासों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है? CJI ने ये भी कहा कि जब किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को 100 या 200 साल पहले वक्फ घोषित किया जाता है.. तो अचानक आप कहते हैं कि इसे वक्फ बोर्ड द्वारा अधिग्रहित किया जा रहा है या घोषित किया जा रहा है। इस पर एसजी मेहता ने कहा, "यह सही नहीं है। इसका मतलब यह है कि अगर आपके पास वक्फ है और आप इसके बजाय ट्रस्ट बना सकते हैं.. तो आप ऐसा कर सकते हैं.. यह एक सक्षम प्रावधान है।"
दो पदेन सदस्यों के अलावा कोई गैर मुस्लिम सदस्य नहीं होगा
इस पर सीजेआई ने कहा आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते! सीजेआई ने यह भी पूछा कि क्या आप अदालत के सामने यह बयान देने के लिए तैयार हैं कि वक्फ में 2 पदेन सदस्यों के अलावा कोई और मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे? इस पर एसजी मेहता ने कहा कि मैं इसे हलफनामे में रख सकता हूँ।