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भाजपा से लड़े बिना क्यों हार मान बैठी AAP, कितने वोट थे कम; क्या है गणित

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में एक बड़ा फैसला लेते हुए एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) में मेयर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। 25 अप्रैल को चुनाव होने वाला था और इसमें 'आप' की हार लगभग तय थी।

Sudhir Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, राहुल मानवMon, 21 April 2025 12:11 PM
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भाजपा से लड़े बिना क्यों हार मान बैठी AAP, कितने वोट थे कम; क्या है गणित

आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली में एक बड़ा फैसला लेते हुए एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) में मेयर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। 'आप' ने माना कि 2022 के एमसीडी चुनाव में मिली जीत अब उसके हाथ से फिसल चुकी है और बहुमत अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हक में है। 'आप' के दिल्ली संयोजक सौरभ भारद्वाज और पूर्व सीएम आतिशी मार्लेना ने सोमवार सुबह इस बात की घोषणा की कि उनकी पार्टी मेयर चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारने जा रही है।

दिल्ली नगर निगम के वर्ष 2025-26 के कार्यकाल के लिए 25 अप्रैल 2025 को मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव होने हैं। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए 'आप' की हार और भाजपा उम्मीदवारों की जीत तय मानी जा रही थी। ऐसे में लड़कर हारने की बजाय 'आप' ने बिना लड़े भाजपा के लिए रास्ता साफ करने का फैसला किया। वर्ष 2022 में 7 दिसंबर को निगम के चुनाव की घोषणा हुई थी। तब भाजपा के 104 पार्षद और आम आदमी पार्टी के 134 पार्षद जीते थे।

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अब मौजूदा समय में निगम के सदन में समीकरण बदल गए हैं। आम आदमी पार्टी के मेयर चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारा है। इसका मुख्य कारण है कि मौजूदा परिस्थिति में आम आदमी पार्टी के पास संख्याबल कम है। इसके लिए भाजपा के पास 117 पार्षद हैं। जबकि आम आदमी पार्टी के पास 113 पार्षद हैं। कांग्रेस के आठ पार्षद हैं। अब भाजपा के पास 117 पार्षद, 11 विधायक और सात लोकसभा सांसद को मिलाकर 135 वोट हैं। जबकि आम आदमी पार्टी के पास 113 पार्षद, तीन विधायक और तीन राज्य सभा सांसद को मिलकर 119 वोट हैं।

चुनाव ना लड़ने की क्या बताई वजह?

आम आदमी पार्टी के दिल्ली संयोजक सौरभ भारद्वाज और पूर्व सीएम आतिशी मार्लेना ने पार्टी के फैसले को लेकर कहा कि भाजपा ने तोड़फोड़ करके बहुमत जुटा लिया है और अब एमसीडी का चुनाव जीतने के लिए उनके पास भी यही रास्ता बचा था। भारद्वाज और मार्लेना ने कहा कि उनकी पार्टी तोड़फोड़ में विश्वास नहीं करती है इसलिए चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया गया है। दोनों नेताओं ने इस फैसले का एक फायदा यह भी बताया कि अब दिल्ली में भाजपा की ट्रिंपल इंजन सरकार होगी और वह वादों को पूरा नहीं करने को लेकर बहाने नहीं बना पाएगी।