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महिला को भारी पड़ा तलाक का तथ्य छिपाना, दिल्ली की अदालत ने शुरू की आपराधिक कार्यवाही

दिल्ली की एक अदालत ने तलाक का तथ्य छिपाने पर एक महिला के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की है। कोर्ट ने पाया कि उसे तलाक के समझौते के दौरान 10 लाख रुपए मिले थे, जिसे उसने छिपाया। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानून के दुरुपयोग को शुरू में ही रोका जाना चाहिए।

Subodh Kumar Mishra पीटीआई, नई दिल्लीMon, 2 June 2025 09:37 PM
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महिला को भारी पड़ा तलाक का तथ्य छिपाना, दिल्ली की अदालत ने शुरू की आपराधिक कार्यवाही

दिल्ली की एक अदालत ने तलाक का तथ्य छिपाने पर एक महिला के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की है। कोर्ट ने पाया कि उसे तलाक के समझौते के दौरान 10 लाख रुपए मिले थे, जिसे उसने कोर्ट से छिपा लिया। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानून के किसी भी दुरुपयोग को शुरू में ही रोका जाना चाहिए। न्यायिक मजिस्ट्रेट अनम रईस खान महिला द्वारा दायर आपराधिक शिकायत मामले की सुनवाई कर रही थीं।

हाल ही में उपलब्ध कराए गए 25 अप्रैल के आदेश में अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया है कि पक्षों के बीच सभी विवाद पहले ही दक्षिण-पूर्व जिले की फैमिली कोर्ट के समक्ष सुलझा लिए गए थे। आपसी सहमति से तलाक का पहला प्रस्ताव 22 नवंबर 2022 को पारित किया गया था। इसके अनुसार, शिकायतकर्ता को 19 लाख रुपए की कुल समझौता राशि में से 10 लाख रुपए की रकम प्राप्त हुई।

अदालत ने कहा कि अलग रह रहा पति बकाया राशि का भुगतान करने को तैयार था, लेकिन शिकायतकर्ता ने वर्तमान याचिका में इन महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने यह भी स्वीकार किया है कि उसने पहले ही 10 लाख रुपए की आंशिक समझौता राशि का उपयोग कर लिया है और वह जानबूझकर फैमिली कोर्ट के समक्ष आपसी सहमति से तलाक के दूसरे प्रस्ताव के लिए अपना बयान दर्ज कराने के लिए उपस्थित नहीं हुई।

अदालत ने कहा कि महिला ने समझौते की शर्तों का सम्मान किए बिना अलग हुए पति के साथ समझौते से लाभ प्राप्त किया। आदेश में कहा गया है कि प्रतिवादी 1 (पूर्व पति) 10 लाख रुपए का भुगतान करने के बावजूद उसी स्थिति में खड़ा है और वर्तमान मामला उक्त राशि प्राप्त करने के बाद दायर किया गया था।

फैसले में प्रथम दृष्टया फैमिली कोर्ट के आदेश और महिला द्वारा शपथ पत्र पर दिए गए वचन का उल्लंघन पाया गया। साथ ही समझौते का उल्लेख किए बिना याचिका दायर करके वर्तमान अदालत को धोखा देने का प्रयास भी पाया गया।

कोर्ट ने कहा कि यह इस अदालत के समक्ष तथ्यों को छिपाना झूठा हलफनामा दायर करने के समान है। यह कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग तथा महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए प्रावधानों का दुरुपयोग है। इस तरह के आचरण को अनियंत्रित नहीं छोड़ा जा सकता है और इसे शुरू में ही समाप्त किया जाना चाहिए।

अदालत ने निर्देश दिया कि महिला के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 340 और 195 (1) (बी) के तहत अलग से कार्यवाही शुरू की जाए। अदालत ने महिला से जवाब भी मांगा। सीआरपीसी की धारा 195(1)(बी) सार्वजनिक न्याय के विरुद्ध अपराधों और अदालत में पेश किए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों से संबंधित है। धारा 340 उस प्रक्रिया को रेखांकित करती है जब अदालत को लगता है कि उसे कार्यवाही से संबंधित अपराध की जांच की जानी चाहिए। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 30 जून को तय की।