पाकिस्तानी-हिंदू रिफ्यूजी कैंप को ध्वस्त करने से रोकने की याचिका खारिज; क्या बोला दिल्ली HC?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यमुना नदी के किनारे स्थित मजनू का टीला में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी शिविर को ध्वस्त करने से डीडीए को रोकने की याचिका खारिज कर दी है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को मजनू का टीला में पाकिस्तानी-हिंदू शरणार्थी शिविर को ध्वस्त करने से रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में मांग की गई थी कि जब तक कि इस शिविर के निवासियों को वैकल्पिक भूमि आवंटित नहीं की जाती, तब तक ध्वस्तिकरण ना हो।
न्यायालय ने शरणार्थियों के पुनर्वास की सुविधा के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ जुड़ने के अपने ईमानदार प्रयासों को स्वीकार किया। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि शरणार्थी राहत के लिए नीति तैयार करना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने फैसला सुनाया कि 12 मार्च, 2024 को जारी अंतरिम आदेश निरस्त माना जाता है।
न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता रवि रंजन सिंह व अन्य का विचाराधीन क्षेत्र पर कब्जा जारी रखने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए बेदखली को रोकने की उनकी याचिका खारिज हो जाती है। पीठ ने पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील यमुना के बाढ़ के मैदानों की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया।
पीठ ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के उपाय उच्चतम न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) व दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप हैं। इन कार्यों का उद्देश्य पारिस्थितिकी अखंडता को संरक्षित करना व वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए स्वच्छ- स्वस्थ पर्यावरण के मौलिक अधिकार को बनाए रखना है।
यमुना नदी की नाजुक स्थिति को देखते हुए पीठ ने जोर देकर कहा कि इसके जीर्णोद्धार के प्रयासों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप उचित नहीं ठहराया जा सकता।
पीठ ने फैसला सुनाया कि मानवीय विचारों को पर्यावरणीय अनिवार्यताओं से ऊपर नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इस तरह की छूट महत्वपूर्ण सार्वजनिक परियोजनाओं में देरी करेगी। सिंह द्वारा दायर याचिका में पाकिस्तान से आए लगभग 800 हिंदू शरणार्थियों की दुर्दशा को उजागर किया गया था।
याचिका में पीठ से आग्रह किया कि वह नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत सरकार की नीति के अनुसार, वैकल्पिक भूमि आवंटित होने तक डीडीए को ध्वस्तीकरण रोकने का निर्देश दे। याचिका में अक्षरधाम मंदिर व राष्ट्रमंडल खेल गांव जैसे उदाहरणों का हवाला देते हुए ऐसी बस्तियों और धार्मिक संरचनाओं की सुरक्षा के लिए यमुना के किनारे तटबंध बनाने की भी मांग की गई थी।