कैश कांड : जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका; क्या तर्क
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में पुलिस को केस दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है। जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने के बाद कथित तौर पर बेहिसाब रुपए मिलने का मामला सामने आया है।

दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में मांग की गई है कि पुलिस को जस्टिस वर्मा के खिलाफ केस दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने के बाद कथित तौर पर बेहिसाब रुपए मिलने का मामला सामने आया है।
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा, हेमाली सुरेश कुर्ने, राजेश विष्णु आद्रेकर और चार्टर्ड अकाउंटेंट मंशा निमेश मेहता ने संयुक्त रूप से दायर की है। उन्होंने अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा, सीबीआई, ईडी, आयकर और न्यायाधीशों की समिति के सदस्यों को मामले में पक्ष बनाया है।
याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष कोर्ट से दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने और प्रभावी तथा सार्थक जांच करने का निर्देश देने का आदेश मांगा है। याचिका में कहा गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से 22 मार्च को गठित तीन सदस्यीय न्यायाधीशों की समिति को जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। वो घटना भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस ) के तहत विभिन्न संज्ञेय अपराधों के दायरे में आती है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि समिति को इस तरह की जांच करने का अधिकार देने का निर्णय शुरू से ही निरर्थक है, क्योंकि कॉलेजियम (शीर्ष अदालत की) खुद को ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं दे सकता, जबकि संसद या संविधान ने ऐसा करने का अधिकार नहीं दिया है। याचिका में आगे कहा गया है, “जब अग्निशमन बल/पुलिस ने आग बुझाने के लिए अपनी सेवाएं दीं, तो यह बीएनएस के विभिन्न प्रावधानों के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध बन गया और पुलिस का कर्तव्य है कि वह मुकदमा दर्ज करे।”
याचिका में कहा गया है, “यह न्याय बेचकर जमा किए गए काले धन को रखने का मामला है। जस्टिस वर्मा के अपने बयान पर विश्वास करने का प्रयास करने पर भी यह सवाल बना हुआ है कि उन्होंने मुकदमा क्यों नहीं दर्ज कराई। पुलिस को साजिश के पहलू की जांच करने में सक्षम बनाने के लिए देर से भी प्राथमिकी दर्ज करना अत्यावश्यक आवश्यक है।
याचिका में दलील दी गई है कि के वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में यह निषिद्ध किया गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बिना किसी हाई कोर्ट या शीर्ष कोर्ट के न्यायाधीश के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाएगा।याचिका में कहा गया है, “जब पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलती है, तो उसका कर्तव्य है कि वह मुकदमा दर्ज करे।”
याचिकाकर्ताओं ने किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण, यहां तक कि के वीरास्वामी के मामले में परिकल्पित अधिकारियों को भी जांच में स्वतंत्र पुलिसिंग कार्य में हस्तक्षेप करने से रोकने और प्रतिबंधित करने का आदेश मांगा है। याचिका में न्यायिक मानकों और जवाबदेही विधेयक, 2010 के अधिनियमन सहित न्यायपालिका के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रभावी और सार्थक कार्रवाई करने के लिए सरकार को उचित आदेश देने की भी मांग की, जो (याचिका के अनुसार) समाप्त हो चुका है।
याचिका में कहा गया है कि कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण हमारे संविधान का मूल है। याचिका में आगे यह भी कहा गया है, “कानून के समक्ष सभी समान हैं और आपराधिक कानून सभी पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे किसी की स्थिति, पद आदि कुछ भी हो। एकमात्र अपवाद, हमारी संवैधानिक योजना में राष्ट्रपति और राज्यपालों को दी गई छूट है, जो संप्रभु हैं और हम लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।” याचिका में कहा गया है कि कानून ही वह इमारत है जिस पर कानून के शासन की अवधारणा बनी है। यहां तक कि राजा को भी कानून से ऊपर नहीं, बल्कि भगवान और कानून के अधीन माना जाता है।
गौरतलब है कि जस्टिस वर्मा के नई दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर आग की यह घटना 14 मार्च को रात करीब 11:30 बजे हुई। उस समय वह घर पर नहीं थे। आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों और पुलिस को एक कमरे में कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी मिली।