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बच्चे को बचाने के लिए देवदूत बन गई डॉक्टरों की टीम, कहानी जानकर आप भी सलाम करेंगे!

फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो न सिर्फ मेडिकल साइंस के लिए मील का पत्थर है, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो उम्मीद का दामन थामे रखता है।

Anubhav Shakya लाइव हिन्दुस्तान, फरीदाबाद, एएनआईFri, 6 June 2025 02:56 PM
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बच्चे को बचाने के लिए देवदूत बन गई डॉक्टरों की टीम, कहानी जानकर आप भी सलाम करेंगे!

कहते हैं, डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं। फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में 6 डॉक्टरों और 20 नर्सों की टीम ने इसे साकार कर दिखाया। एक नन्हा सा बच्चा, जो सिर्फ 27 हफ्ते और 4 दिन का था, एक बेहद दुर्लभ बीमारी इम्यून हाइड्रोप्स फेटालिस से जूझ रहा था। यह ऐसी खतरनाक स्थिति है, जहां मां का इम्यून सिस्टम बच्चे की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करता है, जिससे जानलेवा एनीमिया और शरीर में पानी जमा होने का खतरा पैदा हो जाता है। लेकिन इस टीम ने हार नहीं मानी और एक चमत्कार रच दिया, जो मेडिकल साइंस के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया।

मेडिकल साइंस का अनोखा कारनामा

डॉक्टरों की इस टीम ने बच्चे को बचाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। सीनियर नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत शर्मा ने इसे अपनी जिंदगी का सबसे चुनौतीपूर्ण केस बताया। बच्चे का हीमोग्लोबिन इतना कम था कि जिंदगी मुश्किल थी। उसे फेफड़ों, आंतों और दिमाग में रक्तस्राव, दिल पर दबाव और पूरे शरीर में सूजन जैसी जटिलताओं का सामना करना पड़ा। हाई-फ्रीक्वेंसी वेंटिलेशन, दो बार ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन और इम्यून थेरेपी (IVIG) जैसी एडवांस तकनीकों ने इस बच्चे को नया जीवन दिया। यह दुनिया का पहला ऐसा मामला है, जहां 28 हफ्तों से कम उम्र के बच्चे ने इस बीमारी से जंग जीती।

मां का दर्द और जीत की खुशी

बच्चे की मां किरण यादव बताती हैं कि मैंने मां बनने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। एक जुड़वां बच्चे को खोने का दर्द मुझे तोड़ गया, लेकिन अपने बेटे को गोद में देखकर लगता है, जैसे जिंदगी ने मुझे दूसरा मौका दिया। अब ये बच्चा स्वस्थ है, जो किरण के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं।

मेडिकल इतिहास में नया अध्याय

यह सिर्फ एक बच्चे की कहानी नहीं, बल्कि मेडिकल साइंस में एक नया रिकॉर्ड है। दुनिया में इससे पहले 28 हफ्तों के एक बच्चे के इस बीमारी से बचने का मामला दर्ज था, लेकिन इतनी जटिलताओं और इतनी कम उम्र में यह पहला केस है। नियोनेटोलॉजी, गायनाकोलॉजी, ऑप्थल्मोलॉजी और पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी की टीम ने मिलकर इस चमत्कार को अंजाम दिया। बच्चे की सेहत पर अब भी नजर रखी जा रही है, और डॉक्टरों का कहना है कि उसकी प्रगति उम्मीद से कहीं बेहतर है।