अल्फांसो को पछाड़कर केसर बना विदेशियों का पसंदीदा आम
भारतीय आमों में अल्फांसो की बादशाहत अब केसर आम के हाथों में चली गई है। वित्त वर्ष 2024-25 में केसर का निर्यात लगभग 99 करोड़ रुपये रहा, जबकि अल्फांसो का निर्यात घटकर 74 करोड़ रुपये रह गया। अमेरिकी और...

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कभी भारतीय आमों का राजा कहलाने वाला अल्फांसो अब विदेशी बाजारों में अपनी बादशाहत खोता जा रहा है। उसकी जगह अब केसर आम ने ले ली है, जो स्वाद में बेहतरीन होने के साथ-साथ तुलनात्मक रूप से सस्ता भी है। लगातार दो वित्त वर्षों से केसर भारत का सबसे ज्यादा निर्यात होने वाला आम बन गया है, जबकि अल्फांसो की मांग घटती जा रही है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने करीब 99 करोड़ रुपये के केसर आम विदेशों में निर्यात किए, जबकि अल्फांसो का निर्यात घटकर लगभग ₹74 करोड़ रुपये रह गया।
तुलना करें तो वित्त वर्ष 2021-22 में अल्फांसो का निर्यात 87 करोड़ रुपये के आसपास था, जबकि केसर का निर्यात लगभग 60 करोड़ रुपये तक सीमित था। यानी, बीते कुछ वर्षों में केसर ने न सिर्फ अपनी पकड़ मजबूत की है, बल्कि अल्फांसो को पीछे छोड़ते हुए नया निर्यात राजा बन गया है। अमेरिका से अरब तक केसर की बढ़ी मिठास यह बदलाव सिर्फ एक-दो देशों तक सीमित नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कनाडा, जर्मनी, कुवैत, ओमान, यमन और नीदरलैंड जैसे बाजारों में केसर, चौसा, दशहरी, तोतापरी, बंगनपल्ली जैसे अन्य किफायती किस्मों की मांग में भी तेजी आई है। इनमें से कई किस्मों को पहले गुणवत्ता और खेती के तौर-तरीकों की वजह से निर्यात की अनुमति नहीं थी, लेकिन भारत में आधुनिक खेती तकनीकों को अपनाने के बाद ये बाधाएं दूर हो चुकी हैं। विदेशों में किफायती विकल्पों की बढ़ी मांग वफा फ्रेश वेजिटेबल्स एंड फ्रूट्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (महाराष्ट्र) के उपाध्यक्ष और एस्सार एक्सपोर्ट्स के सीईओ एकराम हुसैन के मुताबिक, विदेशों में खासतौर पर भारतीय प्रवासी और रिटेल चेन अब किफायती किस्मों को तरजीह दे रहे हैं। उन्होंने कहा, जब स्वादिष्ट आम कम कीमत में उपलब्ध हों, तो स्वाभाविक रूप से महंगे अल्फांसो की मांग कम होनी ही है। हवाई मार्ग और टैक्स ने बढ़ाई अल्फांसो की लागत हुसैन के मुताबिक, अल्फांसो आम की कीमत में वृद्धि का एक अहम कारण इसकी हवा से परिवहन की आवश्यकता है, क्योंकि यह आम जल्दी खराब हो जाता है। एयर कार्गो पर 18 फीसदी जीएसटी, जबकि समुद्र के रास्ते भेजे जाने वाले अन्य आमों पर केवल पांच फीसदी जीएसटी लगता है। यही वजह है कि अल्फांसो का निर्यात महंगा पड़ता है और बाजार में प्रतिस्पर्धा में पिछड़ता जा रहा है। अल्फांसो महंगा नहीं : किसान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थित 10 एकड़ के अल्फांसो बागान के मालिक पंकज दाली इस धारणा से सहमत नहीं हैं कि अल्फांसो महंगा आम है। उन्होंने कहा, समस्या यह है कि अल्फांसो दर्जन के हिसाब से बिकता है, जबकि दूसरे आम किलो में। जब आप इन्हें तुलनात्मक रूप से दर्जन में बदलते हैं, तो अल्फांसो महंगा नहीं पड़ता। दाली के मुताबिक, अल्फांसो की विशिष्ट सुगंध, स्वाद और बनावट उसे दुनिया के सबसे खास आमों में शामिल करते हैं। जीआई टैग मिलने के बाद इसकी प्रतिष्ठा और मांग में और भी इजाफा हुआ है। कुल निर्यात में भी आई गिरावट सिर्फ अल्फांसो ही नहीं, बल्कि कुल आम निर्यात का आंकड़ा भी गिरावट की ओर है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत से फलों के रूप में कुल आम निर्यात घटकर ₹48.44 करोड़ रह गया, जबकि पिछले साल यह करीब 52 करोड़ रुपये था। तुलना करें तो 2018-19 में अकेले अल्फांसो का निर्यात ही 51.82 करोड़ रुपये रहा था, जो अब केसर और अन्य किस्मों को मिलाकर भी नहीं पहुंच पा रहा।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।