पराली की समस्या से निपटने के लिए पंजाब हरियाणा में धान के बजाए वैकल्पिक फसलों को तरजीह देने का प्रस्ताव
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने 5 लाख हेक्टेयर से अधिक खेतों में धान की जगह मक्का, गन्ना और कपास जैसी वैकल्पिक फसलों को लगाने का प्रस्ताव...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता पराली जलाने के चलते दिल्ली-एनसीआर में होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने 500,000 हेक्टेयर से अधिक खेतों में गैर-बासमती धान की जगह मक्का, गन्ना और कपास जैसी वैकल्पिक फसलों को लगाने का प्रस्ताव दिया है। दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है।
हर साल सर्दियों में पंजाब, हरियाणा और एनसीआर में शामिल उत्तर प्रदेश के जिलों में फसलों के अवशेष यानी पराली चलाने के चलते पूरे दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण फैलने के चलते हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है और लोगों, खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए घरों से निकलना मुश्किल हो जाता है।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की ओर से जस्टिस अभय एस. ओका की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष पेश समेकित रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश (एनसीआर में शामिल हिस्से) में तीनों राज्यों ने 5 लाख हेक्टेयर भूमि पर गैर-बासमती धान की जगह मक्का, गन्ना और कपास जैसी वैकल्पिक फसलों को लगाने का प्रस्ताव दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने संबंधित राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर लगातार कई बैठकों की और तीनों राज्यों से इस पर पक्ष मांगा था ताकि धान की बुवाई/रोपाई के मौसम से पहले एक कार्य योजना तैयार की जा सके।
दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान न्याय मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पराली की समस्या से निपटने के लिए फसलों के विविधीकरण करने का सुझाव दिया था। उन्होंने पीठ से कहा था कि सिर्फ धान पर निर्भर रहने के बजाए, किसानों को कई तरह की फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पीठ को बताया गया गया था कि बड़े पैमाने पर धान की खेती से किसान पराली जलाते हैं और इसकी वजह से न सिर्फ प्रदूषण मिट्टी की उर्वरता कम होती है। साथ ही कहा गया था कि धान की खेती में पानी की अधिक जरूरत होने के चलते भूजल स्तर भी प्रभावित होता है।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और केंद्रीय कृषित मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने भी फसलों में विविधीकरण के सुझाव का समर्थन किया था। उन्होंने पीठ से कहा था कि मंत्रालय जल्दी पकने वाली बासमती किस्मों को बढ़ावा देने का इरादा रखता है। पीठ को यह भी बताया गया था कि पहले ही धान की पूसा-44 किस्म को बंद कर दिया है, जो सबसे अधिक पराली पैदा करता है।
पंजाब सरकार ने हाल ही में अपने 2025-26 बजट में 21,000 हेक्टेयर धान की खेती वाले भूमि पर मक्का जैसी खरीफ फसलों में बदलने और इसके लिए प्रति हेक्टेयर किसानों को 17,500 रुपये की सब्सिडी देने की योजना की घोषणा की है। इसके अलावा, पंजाब सरकार ने पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए बजट में 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया।
आंकड़े
वर्ष 2024 में पंजाब, 3.15 मिलियन हेक्टेयर से अधिक खेतों में धान की खेती की गई। इससे 19.52 मिलियन टन पराली पैदा हुई।
वर्ष 2024 में हरियाणा में 1.57 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती हुई जिससे 8.10 मिलियन टन पराली पैदा हुआ। जबकि एनसीआर में शामिल उत्तर प्रदेश के जिलों में धान की खेती से 0.74 मिलियन टन पराली निकली।
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