इंफो : कम बजट में कामयाबी की ऊंची उड़ान भरने में माहिर है इसरो
-मिशन की विफलता के बाद भी कायम रहता है भारत की अंतरिक्ष एजेंसी का हौसला

श्रीहरिकोटा/नई दिल्ली, एजेंसी। इसरो का ईओएस-09 मिशन शनिवार सुबह विफल हो गया। हालांकि, इसरो के लिए यह एक अस्थायी झटका है। अंतरिक्ष एजेंसी का इतिहास रहा है कि हर असफलता के बाद इसरो और मजबूत होकर लौटा है। कम बजट और सीमित संसाधनों के बावजूद इसरो की मिशन सफलता दर 85-90 प्रतिशत के बीच रही है। वर्ष 2024-25 में इसरो को केंद्र सरकार से लगभग 13 हजार करोड़ रुपये का बजट मिला था। इसकी तुलना में अमेरिका और यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसियों का बजट करीब पांच से 16 गुना तक ज्यादा रहा। इसके बावजूद, आत्मनिर्भरता और नवाचार की ताकत के बल पर इसरो ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के वैश्विक मंच पर सम्मानजनक स्थान दिलाया है।
गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका, रूस और यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसियों ने भी अपने शुरुआती दौर में लगातार विफलताओं का सामना किया था। इसरो भी हर असफलता को सीख मानकर नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ता रहा है। इसरो की तुलना में ज्यादा बजट (2024-25) 16 गुना ज्यादा अमेरिका की नासा का 07 गुना ज्यादा चीन की सीएनएसए का 5.5 गुना ज्यादा यूरोप की ईएसए का कम बजट में बड़ी उपलब्धियां मिशन वर्ष लागत (रुपये में) उपलब्धि मंगलयान 2013 ₹450 करोड़ मंगल की कक्षा में पहुंचा भारत चंद्रयान-3 2023 ₹ 615 करोड़ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला पहला देश रीसैट/ कार्टोसेट कई बार 150-200 करोड़ निगरानी, कृषि, मौसम पूर्वानुमान कई गुना महंगे मिशन नासा का मंगल मिशन मेवन : ₹5,600 करोड़ रुपये स्पेसएक्स का स्टारलिंक : 550 करोड़ प्रति मिशन इसरो का पीएसएलवी : 150-200 करोड़ प्रति मिशन विश्व मंच पर साख इसरो अब तक 36 देशों के 380 से अधिक विदेशी सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है भारत का पीएसएलवी रॉकेट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘वर्कहॉर्स के नाम से जाना जाता है विदेशी एजेंसियों की सफलता दर नासा 98–99% स्पेसएक्स 99.75% सीएनएसए (चीन) 96% ईएसए (यूरोप) 96.5% जाक्सा (जापान) 92–94% इसरो के प्रमुख विफल मिशन 1993 : पीएसएलवी-डी1, पहला लॉन्च, सॉफ्टवेयर फेल 2010 : जीसैट-4, इंजन फेल 2019 : चंद्रयान-2, विक्रम लैंडर चंद्रमा पर नहीं उतर पाया 2021 : ईओएस-03, क्रायोजेनिक चरण विफल 2022 : एसएसएलवी-डी1, सैटेलाइट गलत कक्षा में पहुंचा
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