संसद के विशेष सत्र की मांग पर सरकार तैयार नहीं
नई दिल्ली में विपक्ष के 16 दलों ने पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। सरकार का कहना है कि विपक्ष अपने मुद्दे मानसून सत्र में उठा सकता है, जो...

नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के विभिन्न घटनाक्रमों पर चर्चा कराने के लिए विपक्ष द्वारा की गई संसद के विशेष सत्र की मांग को लेकर सरकार ज्यादा गंभीर नहीं है। उसका मानना है कि विपक्ष अपने सारे सवालों और मुद्दों को लगभग महीनेभर बाद आयोजित होने वाले मानसून सत्र में उठा सकता है। मंगलवार को विपक्ष के 16 दलों ने सरकार से संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। सरकार ऑपरेशन सिंदूर के जारी रहने की वजह से रणनीतिक और सामरिक महत्व की पूरी जानकारी भी मुहैया नहीं करा सकती है। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि संसद का मानसून सत्र मध्य जुलाई में शुरू होना है, जो लगभग महीनेभर चलेगा।
ऐसे में विपक्ष को अपने मुद्दे व सवाल उठाने के बहुत से मौके मिलेंगे। अभी इतनी कम समयावधि में विशेष सत्र बुलाने का कोई औचित्य व आपातस्थिति भी नहीं है। सूत्रों का कहना है कि सत्र बुलाने के लिए 15 दिन पहले नोटिस देना होता है। इसके बाद सत्र समाप्त होने के बाद जब अगला सत्र होता है तो फिर से नए सत्र के लिए भी 15 दिन पूर्व नोटिस देना होता है। ऐसे में दो सत्रों के बीच समय ही नहीं बचता है। वैसे भी यह कोई यु्द्ध जैसी आपातस्थिति नहीं थी। मानसून सत्र की शुरुआत में ही रक्षा मंत्री दोनों सदनों में अपनी तरफ से बयान देंगे। राज्यसभा में मंत्री के बयान पर चर्चा की व्यवस्था है। लोकसभा में विपक्ष दूसरे नियम में चर्चा कर सकता है। इस बीच विभिन्न देशों की यात्रा पर गए सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वापस लौटने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उनको अपने मिशन की जानकारी देंगे। सात जून तक सभी प्रतिनिधिमंडलों के वापस आने की संभावना है।
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