अग्रिम जमानत सोच-विचार कर ही दी जाए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में अग्रिम जमानत देने के पटना हाईकोर्ट के निर्णय को रद्द कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और उनकी पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने उचित कारण नहीं बताया। मामले में चार...

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में आरोपियों को बिना सोच विचार के अग्रिम जमानत नहीं दी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने हत्या और हत्या प्रयास के मामले में पटना हाईकोर्ट द्वारा चार आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करते हुए टिप्पणी की। जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने हाल ही में पारित अपने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट ने हत्या और हत्या के प्रयास जैसे गंभीर प्रकृति के अपराधों से जुड़े मामले में आरोपियों को अग्रिम जमानत देने लिए कोई उचित तर्कपूर्ण आधार नहीं बताया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह समझ से परे है कि हाईकोर्ट ने आरोपियों को अग्रिम जमानत क्यों दी।
आदेश में न्यायिक विश्लेषण का पूरी तरह से अभाव दिख रहा है। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने कहा कि गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में, सोच-विचार किए बगैर अग्रिम जमानत देना उचित नहीं है और इसलिए मौजूदा मामले में आरोपियों की अग्रिम जमानत रद्द की जाती है। पीठ ने मामले के आरोपियों को 8 सप्ताह में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को जमानत दिए जाने के फैसले के खिलाफ मृतक के बेटे की ओर से दाखिल अपील पर दिया है। अपील में आरोपियों को अग्रिम जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए रद्द करने की मांग की थी। अपीलकर्ता के पिता पर, 2023 में पड़ोसियों के बीच विवाद होने के दौरान सरिया और लाठियों से हमला किया गया था। सिर में चोट लगने के कारण उसी दिन उसकी मृत्यु हो गई और अपीलकर्ता के बयान के आधार पर सात आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था।
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