विदेशी होने के आरोप में निर्वासित करने के सरकार के अभियान के खिलाफ याचिका पर विचार से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि असम सरकार ने विदेशी होने के संदेह में लोगों को बांग्लादेश वापस भेजने के लिए अभियान चलाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि असम सरकार ने विदेशी होने के आरोप में लोगों को बांग्लादेश वापस भेजने के लिए व्यापक अभियान चलाया है। शीर्ष अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए, याचिकाकर्ता संगठन को अपनी मांगों लेकर गुवाहाटी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया है। जस्टिस संजय करोल और सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएमएसयू) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से पूछा कि किसी भी तरह का राहत पाने के लिए आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं जा रहे? इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता हेगड़े से पीठ से कहा कि मौजूदा याचिका शीर्ष अदालत के ही पूर्व के आदेश से संबंधित है।
इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ता एबीएमएसयू से कहा कि आप किसी भी तरह का राहत पाने के लिए उच्च न्यायालय में जाएं। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। पीठ ने याचिका को वापस लेने की अनुमति प्रदान कर दी। एबीएमएसयू ने अधिवक्ता अदील अहमद के जरिए दाखिल याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी के आदेश के पालन में राज्य सरकार ने विदेशी होने के संदेह में लोगों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार इसके लिए न तो विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले का इंतजार कर रही है और न ही राष्ट्रीयता का सत्यापन कर रही है। साथ ही कहा कि कानूनी उपायों के इस्तेमाल करने का भी मौका नहीं दे रही है। याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 4 फरवरी, 2025 को एक अन्य याचिका पर विचार करते हुए असम सरकार को 63 घोषित विदेशी नागरिकों, जिनकी राष्ट्रीयता ज्ञात है, उनके निर्वासन की प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर शुरू करने का निर्देश दिया था। याचिका में कुछ खबरों का हवाला देते हुए एक सेवानिवृत स्कूल शिक्षक को भी बांग्लादेश वापस भेजने का आरोप लगाया गया है। याचिका में यह आदेश देने की मांग की गई थी कि किसी भी व्यक्ति को 4 फरवरी के आदेश के अनुसार विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा कारण बताए बिना, अपील या समीक्षा का पर्याप्त अवसर दिए बिना और विदेश मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीयता के सत्यापन के बिना निर्वासित नहीं किया जाएगा।
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