कबूतरों की बीट से फेफड़ों की घातक बीमारियां; अर्जी में दलील, NGT का क्या रुख?
एनजीटी के अध्यक्ष प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ के सामने एक याचिका में दलील दी गई कि कबूतरों को दाना खिलाने से एनसीआर में स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

एनजीटी ने कबूतरों को दाना खिलाने से पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं वाली याचिका पर दिल्ली सरकार, लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। एनजीटी में यह अर्जी एक 13 वर्षीय छात्र ने अपने वकील आशीष जैन के जरिये दी।
याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी अध्यक्ष प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने कहा कि आवेदक ने दलील दी है कि कबूतरों को दाना खिलाने और उनकी संख्या बढ़ने के बाद दिल्ली-एनसीआर में फुटपाथ, रास्तों और यातायात वाले क्षेत्रों में रोजाना किलोभर कबूतर की बीट (मल) जमा हो जाती है।
अगली सुबह जब इन क्षेत्रों की सफाई की जाती है तो सूखे मल के विषैले तत्व धूल में मिल जाते हैं, पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। एनजीटी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सरकार व अन्य को अगली सुनवाई से एक सप्ताह पहले जवाब देने के लिए कहा है। अगली सुनवाई आठ अक्टूबर के लिए तय की गई है।
वकील ने एनजीटी को बताया कि उनकी चिंता न तो कबूतरों की बढ़ती संख्या को लेकर है और न ही पक्षियों को दाना खिलाने वाले लोगों से है। बल्कि उनका असली रोष एमसीडी, पीडब्ल्यूडी, एनडीएमसी जैसी सरकारी एजेंसियों से है, जो सार्वजनिक रास्तों और फुटपाथों पर अवैध रूप से अनाज बेचने वाले विक्रेताओं को हटाने में विफल रही हैं।
उन्होंने एनजीटी से अनुरोध किया है कि एमसीडी, पीडब्ल्यूडी और एनडीएमसी को निर्देशित किया जाए कि वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों से ऐसे अवैध अनाज विक्रेताओं को तत्काल हटाएं, ताकि सार्वजनिक रास्तों और फुटपाथों को सुरक्षित और स्वच्छ बनाया जा सके।