निवाई में प्रधान की दबंगई,चोरी के शक में मजदूरों की पिटाई का वीडियो वायरल
टोंक जिले की निवाई पंचायत समिति के प्रधान रामावतार लांगड़ी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें वे दो मजदूरों को बेरहमी से पीटते नजर आ रहे हैं।

टोंक जिले की निवाई पंचायत समिति के प्रधान रामावतार लांगड़ी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें वे दो मजदूरों को बेरहमी से पीटते नजर आ रहे हैं। मजदूरों पर फार्म हाउस से चोरी का आरोप लगाया गया है, लेकिन मारपीट के जो दृश्य सामने आए हैं, उन्होंने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है।
घटना निवाई क्षेत्र के एक निजी फार्म हाउस की है, जहां दो मजदूर काम करते थे। चोरी के शक में प्रधान रामावतार ने दोनों मजदूरों को वहीं बुलाया और फार्म हाउस में ही बंधक बनाकर उनसे घंटों पूछताछ की गई। इसी दौरान प्रधान ने खुद मजदूरों की पिटाई शुरू कर दी। वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि मजदूरों को डंडों और बेल्ट से मारा जा रहा है। एक मजदूर की हालत गंभीर बताई जा रही है।
मामले का वीडियो सामने आने के बाद ग्रामीणों में आक्रोश है और सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रधान की गिरफ्तारी की मांग तेज कर दी है। स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या किसी जनप्रतिनिधि को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार है? क्या चोरी के आरोप की जांच करना पुलिस का काम नहीं है?
इस घटना को लेकर अब पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। वीडियो वायरल होने के बावजूद अब तक निवाई थाने में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और न ही प्रधान से पूछताछ की गई है। इस पर लोगों का कहना है कि क्या प्रधान के रसूख के आगे पुलिस भी बेबस है?
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक इस मामले में भारतीय दंड संहिता की कई गंभीर धाराएं लागू हो सकती हैं, जिनमें बंधक बनाना, मारपीट, धमकी देना और जबरन कबूल करवाने जैसी धाराएं शामिल हैं। इसके बावजूद पुलिस का अब तक कोई ठोस एक्शन न लेना कई सवाल खड़े कर रहा है।
इधर, स्थानीय सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी मामले पर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि पीड़ित मजदूरों को सुरक्षा और न्याय दिलाया जाए, और प्रधान रामावतार लांगड़ी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
फिलहाल मामला तूल पकड़ता जा रहा है और लोग यह जानना चाह रहे हैं कि निवाई पुलिस कब तक इस वायरल वीडियो को नजरअंदाज करती रहेगी? क्या कानून व्यवस्था पर जनप्रतिनिधियों का दबाव हावी रहेगा या इस बार न्याय की आवाज़ ऊंची होगी?
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