अतिरिक्त प्रभार के भरोसे RPSC...10 महीने से खाली चल रहा RPSC मुखिया का पद…
राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) — जो प्रदेश की प्रशासनिक सेवाओं के सबसे अहम पदों की भर्ती करता है — खुद गंभीर अव्यवस्था की चपेट में है। आयोग के अध्यक्ष पद को खाली हुए 10 महीने हो गए हैं।

राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) — जो प्रदेश की प्रशासनिक सेवाओं के सबसे अहम पदों की भर्ती करता है — खुद गंभीर अव्यवस्था की चपेट में है। आयोग के अध्यक्ष पद को खाली हुए 10 महीने हो गए हैं। 1 अगस्त 2024 को तत्कालीन अध्यक्ष संजय कुमार श्रोत्रिय का कार्यकाल पूरा हो गया था। उसके बाद से अब तक सरकार नया अध्यक्ष नहीं नियुक्त कर पाई है। इस बीच आयोग के एक सदस्य जेल में हैं और एक अन्य का निधन हो चुका है।
फिलहाल सदस्य कैलाश चंद मीणा के पास अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह व्यवस्था अस्थायी है और इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। इससे न केवल आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं, बल्कि अभ्यर्थियों और सरकार — दोनों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सबसे बड़ी RAS भर्ती भी प्रभावित
RPSC द्वारा आयोजित की जा रही प्रदेश की सबसे बड़ी भर्ती RAS में इंटरव्यू 6-6 महीने तक खिंच रहे हैं। 972 पदों के लिए 2168 अभ्यर्थियों को बुलाया गया था। इंटरव्यू 21 अप्रैल 2025 से शुरू हुए थे और अब सितंबर तक चलने की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आयोग में चेयरमैन और सदस्य पूरे होते, तो प्रक्रिया तेजी से निपटाई जा सकती थी और सरकार को जल्द अफसर मिल सकते थे।
नियुक्ति प्रक्रिया और जिम्मेदारियां
RPSC में अध्यक्ष और सात सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, लेकिन इसकी सिफारिश मुख्यमंत्री की ओर से आती है। इनका कार्यकाल अधिकतम 6 साल या 62 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है। किसी सदस्य को निलंबित करने का अधिकार राज्यपाल के पास है, जबकि हटाने का अधिकार राष्ट्रपति को है।
सरकार की प्राथमिकता में नहीं?
अभी तक भाजपा सरकार, जो विपक्ष में रहते हुए RPSC को भंग कर पुनर्गठन की मांग कर रही थी, अब सत्ता में आने के बाद इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी कांग्रेस सरकार के दौरान आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते रहे हैं। सांसद हनुमान बेनीवाल भी आयोग को भंग करने की मांग उठाते रहे हैं, लेकिन अब तक बातों से आगे कुछ नहीं हुआ है।
फैसले रुके, योजना ठप
RPSC के पूर्व चेयरमैन एमएल कुमावत का कहना है, “मुखिया के बिना कोई भी संस्था अधूरी होती है। जब अध्यक्ष अस्थायी होता है तो न तो वह योजना बना सकता है, न ही ठोस फैसले ले सकता है। इससे पूरा सिस्टम धीमा पड़ जाता है।”
क्यों ज़रूरी है चेयरमैन की नियुक्ति?
RPSC के जरिए ही RAS, RPS, RTS जैसे अहम पदों पर नियुक्तियां होती हैं। 1950 से 31 मार्च 2024 तक आयोग को 2.38 करोड़ आवेदन मिले, 1463 परीक्षाएं आयोजित हुईं और 5.42 लाख अभ्यर्थियों के इंटरव्यू हुए। कुल 3.27 लाख नियुक्तियां आयोग के ज़रिए हुईं — यानी प्रदेश की नौकरशाही की रीढ़ यही संस्था है।
कोर्ट ही अब आखिरी रास्ता?
इस स्थिति में अब न्यायपालिका ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा है। राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीएस दवे कहते हैं, "अगर कोई व्यक्ति या संगठन इस देरी से प्रभावित हो रहा है, तो वह जनहित याचिका दाखिल कर सकता है। अदालत इस पर स्वतः संज्ञान भी ले सकती है।" झारखंड हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश प्रकाश टाटिया भी मानते हैं कि सरकार को पहले से ही तैयारी करनी चाहिए थी।
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