जयपुर ग्रामीण में पानी के लिए पलायन, बिकाऊ हवेलियां और सूखे सपने,अब कहा जाएंगे ग्रामीणवासी?
राजधानी जयपुर से महज़ 80 किलोमीटर दूर सांभर झील का कस्बा आज पानी की भयंकर किल्लत से जूझ रहा है। कभी खारे पानी की सबसे बड़ी झील के लिए पहचाना जाने वाला यह इलाका अब पलायन, प्यास और प्रशासनिक उपेक्षा की मिसाल बन गया है।

राजधानी जयपुर से महज़ 80 किलोमीटर दूर सांभर झील का कस्बा आज पानी की भयंकर किल्लत से जूझ रहा है। कभी खारे पानी की सबसे बड़ी झील के लिए पहचाना जाने वाला यह इलाका अब पलायन, प्यास और प्रशासनिक उपेक्षा की मिसाल बन गया है। यहां के मोहल्लों में "मकान बिकाऊ है" और "हम पानी के लिए पलायन कर रहे हैं" ।
पुश्तैनी हवेलियां पानी के बदले बिकाऊ
250 साल पुरानी हवेली छोड़ रहे पराग पोद्दार हों या लाखों खर्चकर नया घर बनाने वाले ललित सोनी—हर किसी के माथे पर पानी की चिंता की सिलवटें हैं। गृहणी संतोष सैन बताती हैं, “नल से पानी नहीं आता, टैंकर ही एकमात्र सहारा है। लेकिन टैंकर भी अब लग्ज़री बन गया है, जिसके लिए दोगुने दाम चुकाने पड़ते हैं।”
गली-गली में प्यासे पोस्टर
वार्ड 22 और 23 के चारभुजा मंदिर गली, कालानियों की गली, जोशियों की गली से लेकर लाहोटियों और मंडी गली तक हालात बद से बदतर हैं। कई गलियों में टैंकर की एंट्री तक मुमकिन नहीं। मजबूरी में लोग आधा किलोमीटर दूर से पानी ढो रहे हैं। तीन दिन में चार घड़े पानी ही नसीब हो पाता है। यही वजह है कि करीब 200 घरों के बाहर पलायन के पोस्टर लग चुके हैं।
टंकी फाइलों में, बाल्टी सिर पर
इन मोहल्लों में पानी की टंकी की स्वीकृति सालों पहले मिल गई थी, पर अब तक निर्माण शुरू नहीं हुआ। सरकारी फाइलों में योजना बार-बार मंजूर होती रही, लेकिन जमीनी हकीकत जस की तस रही। अब गर्मी और ऊंचाई दोनों मिलकर इन मोहल्लों को ‘जल-शून्य’ बना चुके हैं।
बिल जरूर आता है, पर नल सूखे हैं
हर महीने जल विभाग का बिल समय पर आ जाता है, लेकिन पानी एक-एक बूंद को तरसाता है। कम दबाव की आपूर्ति से घड़े तक नहीं भरते। स्थानीय निवासी विजय व्यास कहते हैं, “यह पानी की नहीं, प्रशासन की इच्छाशक्ति की समस्या है। कुछ मोहल्लों को नियमित पानी मिल रहा है, तो कुछ क्यों प्यासे हैं?”
सियासत भी बहा ले गई पानी
फुलेरा विधायक विद्याधर चौधरी का आरोप है कि सरकार सांभर के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। वहीं, पूर्व विधायक निर्मल कुमावत ने अमृत योजना का हवाला देते हुए कहा कि टेंडर हो चुका है, लेकिन तकनीकी अड़चनें आ रही हैं। पीएचईडी और एसडीएम भी मानते हैं कि टंकी निर्माण ही स्थायी समाधान है, लेकिन फिलहाल लोग उसी पुराने इंतज़ार में हैं।
राजधानी के साये में जल-त्रासदी
यह कोई रेगिस्तान का दूर-दराज़ इलाका नहीं, बल्कि राजधानी से सटे एक कस्बे की हकीकत है, जहां पानी नहीं है, लेकिन समस्याएं लबालब हैं। जहां विकास की बातें तो हैं, पर गली-गली में प्यास और पलायन की सिसकियां हैं।
और सबसे बड़ी विडंबना
जहां सरकार सांभर को पर्यटन हब बनाने की बात करती है, वहीं स्थानीय लोग जीने के लिए कस्बा छोड़ने को मजबूर हैं। इस त्रासदी में नारे और घोषणाएं सूख चुके हैं, बस बाल्टी, घड़ा और प्यास रह गई है—जो हर रोज़ किसी न किसी को उजड़ने पर मजबूर कर रही है।
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