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हाशिए पर क्यों तस्वीरों के उस्ताद

एक अच्छी तस्वीर केवल एक कैमरे से नहीं उतरती। उसमें वो आंखें चाहिए जो सतह से परे देखती हों। वो दृष्टि चाहिए जिसमें संवेदना भी हो और संकल्प भी। कुछ ऐसा ही है एक फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर का जीवन।

Sunil Kumar हिन्दुस्तानThu, 29 May 2025 06:00 PM
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हाशिए पर क्यों तस्वीरों के उस्ताद

बोले अलीगढ़ अभियान के तहत बुधवार को हिन्दुस्तान की टीम ने जब अलीगढ़ वीडियोग्राफर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों से संवाद किया, तो उनके अनुभव शिव के तीसरे नेत्र की तरह तमाम अनकहे पहलुओं को उजागर कर गए।

अलीगढ़ जिले में करीब 100 से अधिक फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर हैं, जो किसी भी छोटे-बड़े आयोजन की तस्वीर उकेरते हैं। जो हमारी यादों में शामिल हो जाती हैं। इन कलाकारों का कार्यक्षेत्र सीमाओं में बंधा नहीं होता। कभी शादी, कभी राजनीतिक रैली, कभी कोई सामाजिक आयोजन ये अपने महंगे उपकरणों के साथ किसी जिले से दूसरे जिले तक सफर करते हैं। कई बार रास्ते में दुर्घटनाएं होती हैं, लूटपाट होती है, लेकिन न उनके पास बीमा होता है, न सुरक्षा का कोई ठोस प्रबंध। उन्होंने कहा कि सरकार आयुष्मान योजना में उन्हें और उनके परिवारों को जोड़े, जिससे इलाज के अभाव में उनका जीवन संकट में न पड़े। आधी रात को कैमरे लादे लौटते ये लोग किसी तपस्वी से कम नहीं लगते, जो हर क्षण किसी अनहोनी की आशंका के साथ घर लौटते हैं। उन्होंने विशेष सुरक्षा की मांग की है। जिससे उनका सफर सुरक्षित हो। वे चाहते हैं कि पुलिस-प्रशासन उन्हें भी समाज का संरक्षित हिस्सा माने।

बोले अलीगढ़ अभियान के तहत पदाधिकारियों ने बताया कि कभी-कभी आयोजक इनका भुगतान महीनों टालते हैं और कई बार तो आधा ही पैसा देते हैं। ऐसे में जीवन चलाना कठिन हो जाता है। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि थानों और चौकियों में इनके बकाया भुगतान से जुड़े मामलों को प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने बताया कि स्मार्ट सिटी के नाम पर सड़कें गड्ढों से भरी हैं। बारिश हो या न हो, कॉलोनियों में जलभराव हो जाता है। प्रदूषण का स्तर इतना है कि दिनभर दौड़ते इन फील्ड वर्कर्स को कई बार गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं। इनमें से कुछ ने तो जान तक गंवा दी। उन्होंने सरकार से मुआवजे और स्वास्थ्य लाभ की मांग की।

कैमरा पकड़ने वाला भी एक नागरिक है

पदाधिकारियों ने कहा कि सरकारी लोन की सुविधा न होना भी एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें भी लघु उद्योगों की तरह प्रोत्साहन मिले, तो वे अपने व्यवसाय को तकनीकी रूप से और मजबूत बना सकते हैं। उन्होंने शहर की गंदगी और प्लास्टिक के अंधाधुंध प्रयोग पर चिंता जताई। कहा कि नगर निगम द्वारा कूड़ेदान लगाने के बावजूद लोग सड़क पर कचरा फेंकते हैं। नालों में प्लास्टिक का अंबार है। यह पर्यावरण के साथ-साथ उनके काम को भी प्रभावित करता है।

जोखिम भरा जीवन, लेकिन कोई कवच नहीं

फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर हर रोज दुर्घटनाओं, बीमारियों और जोखिमों से जूझते हैं। ये लोग किसी आयोजन को कवर करने के लिए देर रात तक सफर करते हैं। महंगे कैमरे और उपकरण लेकर चलते हैं। लेकिन इनके पास न तो किसी प्रकार का बीमा होता है और न ही कोई स्वास्थ्य योजना। एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें और उनके परिवारों को भी आयुष्मान भारत योजना में शामिल किया जाए। कई बार इलाज के अभाव में गंभीर बीमारियां जान ले लेती हैं। लेकिन तब तक न सरकार मदद करती है, न समाज।

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कैमरे के पीछे का डर कौन देखेगा

शादी-ब्याह, पार्टी, राजनीतिक रैली, रात के प्रोग्राम हर जगह इन्हें बुलाया जाता है। लेकिन जब ये आधी रात के बाद भारी उपकरण लेकर लौटते हैं, तो लूटपाट का खतरा हमेशा सिर पर होता है। फोटोग्राफर और वीडियोग्राफरों ने विशेष सुरक्षा की मांग की है। उन्होंने कहा कि पुलिस-प्रशासन उन्हें एक सामान्य नागरिक की तरह नहीं। एक संवेदनशील फील्ड वर्कर की तरह देखे जो हर घटना को समाज के सामने लाता है।

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कैमरे की कीमत तो है, पर कलाकार की नहीं

पदाधिकारियों ने बताया कि सबसे कड़वा सच यह है कि आयोजक इन्हें काम के बाद पूरा भुगतान नहीं करते। महीनों बाद पैसे मिलते हैं और कई बार तो आधा ही दे दिया जाता है। इससे इनके परिवार की आर्थिक स्थिति डगमगा जाती है। एसोसिएशन ने कहा कि ऐसे भुगतान विवादों को थानों में प्राथमिकता दी जाए। कई बार ये लोग रिपोर्ट लिखवाने जाते हैं। लेकिन उनके मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। उन्होंने प्रशासन से एक प्रोफेशनल कोऑर्डिनेशन सिस्टम बनाने की मांग की। जिससे उन्हें न्याय मिल सके।

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सड़कों की हालत पर सवाल

उन्होंने बताया कि जिस शहर को स्मार्ट कहा जा रहा है। वहां की सड़कों पर गड्ढे हैं, जलभराव आम बात है और प्रदूषण इतना ज्यादा है कि दिनभर फील्ड में काम करने के बाद फेफड़े जवाब देने लगते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई साथी असमय बीमारियों से गुजर चुके हैं। उनका कहना है कि स्मार्ट सिटी तब बनेगा, जब बुनियादी ढांचे में सुधार हो। नालों की सफाई, सड़क मरम्मत और जलनिकासी व्यवस्था सुधारना जरूरी है।

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सामाजिक जिम्मेदारी और जागरूकता जरूरी

फोटोग्राफर साथियों ने कहा कि नगर निगम ने भले ही कूड़ेदान लगाए हों, लेकिन लोग अब भी सड़कों पर कचरा फेंकते हैं। प्लास्टिक के कारण नाले बंद हो जाते हैं, जिससे गंदगी फैलती है। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक हों। प्लास्टिक का कम उपयोग करें, सफाई व्यवस्था का पालन करें। जब लोग बदलेंगे, तभी शहर बदलेगा। स्मार्ट सिटी सिर्फ योजना से नहीं, नागरिक जिम्मेदारी से बनेगा।

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