Floods in Ambedkarnagar Saryu River Causes Severe Impact on Tanda and Alapur Tehsils बोले अम्बेडकरनगर-कटान रोकने का हो पक्का इंतजाम तो न डूबें फसलें, Ambedkar-nagar Hindi News - Hindustan
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बोले अम्बेडकरनगर-कटान रोकने का हो पक्का इंतजाम तो न डूबें फसलें

Ambedkar-nagar News - अम्बेडकरनगर के टांडा और आलापुर तहसील में सरयू नदी हर साल बाढ़ के कारण 15 हजार लोगों को परेशान करती है। प्रशासन राहत कार्य करता है, लेकिन फसलें डूबने से किसान प्रभावित होते हैं। बाढ़ चौकियों और...

Newswrap हिन्दुस्तान, अंबेडकर नगरMon, 16 June 2025 05:52 PM
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बोले अम्बेडकरनगर-कटान रोकने का हो पक्का इंतजाम तो न डूबें फसलें

अम्बेडकरनगर। जिले में टांडा व आलापुर तहसील क्षेत्र से होकर सरयू नदी प्रवाहित होती है। प्रत्येक वर्ष बाढ़ से इन दोनों तहसीलों की करीब 15 हजार आबादी को खासी मुश्किलें उठानी पड़ती है। हालांकि, प्रशासन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ चौकियों के साथ ही स्वास्थ्य कैंप, राशन वितरण, पशुओं के लिए चारा व अन्य सामग्री प्रदान करता है। बाढ़ से बड़े पैमाने पर फसलें डूब जाती हैं, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। टांडा में माझा उल्टहवा तो आलापुर में मांझा कम्हरिया बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र होते हैं। अब बारिश का दौर शुरू होने वाला है तो संबंधित क्षेत्र के लोगों की मुश्किलें बढ़ने के आसार भी बढ़ गए हैं।

वहीं प्रशासनिक स्तर पर कोई खास तैयारी देखने को अब तक नहीं मिल रही है। हालांकि आलापुर के कम्हरिया में कटान रोकने के लिए बाढ़ खंड अयोध्या द्वारा स्टेड का निर्माण जरूर कराया जा रहा है। वहीं अकबरपुर व जलालपुर तहसील क्षेत्र से होकर गुजरी तमसा नदी में हर वर्ष बाढ़ नहीं आता है। जिस वर्ष आता भी है, उस वर्ष बाढ़ ऐसी आबादी को नहीं प्रभावित करती है, जिससे लोगों को विस्थापित होना पड़े। बाढ़ से बड़े पैमाने पर प्रभावित होती हैं फसलें: अम्बेडकरनगर। जिले के आलापुर व टांडा तहसील से होकर सरयू नदी प्रवाहित होती है। बारिश के दौर में जब नदी उफान पर होती है तो तराई क्षेत्र की आबादी की मुश्किलें बढ़ जाती है। गांवों तक पानी पहुंच जाने से जहां लोगों को परेशान होना पड़ता है, वहीं बड़े पैमाने पर फसलों के डूब जाने से किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है। जीवनदायिनी कहीं जाने वाली नदियां जब अपने उफान पर होती है तो बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाती हैं। जिले के आलापुर व टांडा तहसील क्षेत्र में होकर सरयू नदी प्रवाहित होती है। बारिश के दौर में जब यह नदी उफान पर होती है तो इंसानों के साथ साथ पशुओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है। आलापुर में मांझा कम्हरिया, आराजी देवारा व कम्हरिया क्षेत्र तो टांडा तहसील क्षेत्र में माझा उल्टहवा क्षेत्र के लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं। गांवों तक पानी पहुंच जाने से जहां लोगों के सामने असहज स्थिति पैदा हो जाती है तो वहीं बड़े पैमाने पर फसल के डूबने से किसानों को तगड़ा झटका लगता है। किसानों को काफी सदमा पहुंचता है। किसान रामसनेही, मनोज व दयाराम का कहना है कि बाढ़ से बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ता है। फसलों के जलमग्न होने से सारी उम्मीदें खत्म हो जाती है। जो लागत लगाई जाती है, वह भी पानी में डूब जाती है। यह सब हर वर्ष सहन करना पड़ता है। अब तो बाढ़ को देखते हुए कई किसान नदी किनारे खेतों में फसल ही नहीं लगाते। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बनाई जाती हैं बाढ़ चौकियां, मदद करता है प्रशासन:आलापुर व टांडा तहसील क्षेत्र में बाढ़ से बड़ी आबादी प्रभावित होती है। गांवों में पानी पहुंच जाने से लोगों को प्रशासन द्वारा बनवाए गए बाढ़ चौकियों में शरण लेनी पड़ती है। लोगों के आने जाने के लिए नाव की व्यवस्था रहती है। हालांकि फिर भी पूरी मदद न मिलने की शिकायतें लोगों की तरफ से आती रहती है। सरयू नदी की बाढ़ कई परिवारों के लिए अभिशाप साबित होती है। आलापुर के मांझा कम्हरिया, अराजी देवारा व कम्हरिया तो टांडा तहसील क्षेत्र के मांझा उल्टहवा, माझा कला, माझा चिन्तौरा, अवसानपुर, केवटला, पल्टू पीपर, आसोपुर, करमपुर बरसवां, फूलपुर, डुहिया में बाढ़ से लोगों को खासी मुश्किलें होती हैं। आलापुर में मांझा कम्हरिया तो टांडा में मांझा उल्टहवा क्षेत्र बाढ़ से ज्यादा प्रभावित होता है। प्रशासन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के लिए बाढ़ चौकियां स्थापित करता है, जहां लोग शरण लेते हैं। टांडा में पिछले बार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से लोगों को बाढ़ चौकियों तक पहुंचाने के लिए 21 नाव अधिग्रहीत की गई थी। वहीं आलापुर में भी कई नाव चलाए जा रहे थे। बाढ़ प्रभावितों को लंच पैकेट, राशन का वितरण किया जाता है तो स्वास्थ्य कैंप भी लगाए जाते हैं। इससे लोगों को खासी राहत होती है। हालांकि कई बार लोग व्यवस्थाओं पर उंगली उठाते रहते हैं। टांडा के रत्नेश व मेवालाल ने कहा कि बाढ़ उनके लिए अभिशाप बन चुका है। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की चपेट में आने से घर से बेघर होना पड़ता है। प्रशासन को बाढ़ से निपटने के लिए और प्रभावी ढंग से आगे आना चाहिए। ऐसा होने से लोगों को जो समस्या होती है, वह नहीं होगी। दूसरी तरफ अकबरपुर व जलालपुर से होकर तमसा नदी गुजरी हुई है। जिसमें हर साल इतना बाढ़ नहीं आता कि लोगों को इससे ज्यादा मुश्किल हो। हालांकि, नदी के किनारे वाले खेतों में लगी फसलें डूब जाती हैं, जिससे नुकसान उठाना पड़ता है। प्रशासन की तरफ से पशुओं को उपलब्ध कराया जाता है चारा:बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं के लिए प्रशासन की तरफ से चारा उपलब्ध कराया जाता है। इससे पशुपालकों को खासी राहत मिलती है। हालांकि कई बार लोग पर्याप्त चारा न मिलने की शिकायत भी करते हैं। टांडा व आलापुर तहसील क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित इलाकों में जहां लोगों को व्यापक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, तो वहीं पशुओं को भी कम मुसीबत नहीं उठानी पड़ती है। पशुओं को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के साथ ही उन्हें पर्याप्त चारा की उपलब्धता करानी पड़ती है। प्रशासनिक स्तर पर पशुओं के लिए भूसा का वितरण किया जाता है। इसके अलावा कई अन्य सामग्री भी दी जाती है। हालांकि कई बार पशुपालक पर्याप्त चारा न मिलने की शिकायत करते हैं। कम्हरिया के सुल्तान व मांझा उल्टहवा के प्रमोद का कहना है कि प्रशासन बाढ़ के समय में पशुओं को चारा उपलब्ध कराता है। लेकिन कई बार पर्याप्त मात्रा में पशुओं को चारा न मिलने के चलते परेशानी उठानी पड़ती है। इस पर प्रशासन को अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाढ़ में नाव के जरिए स्कूल जाते हैं छात्र-छात्राएं:टांडा व आलापुर तहसील क्षेत्र के कई गांव बाढ़ से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि वहां नाव चलाना पड़ता है। कई स्थानों पर नाव के जरिए छात्र छात्राओं को स्कूल भेजा जाता है, जिसे लेकर अभिभावकों में असुरक्षा की भी भावना बनी रहती है। जिले के टांडा में मांझा उल्टहवा तो आलापुर तहसील क्षेत्र में मांझा कम्हरिया क्षेत्र बाढ़ से ज्यादा प्रभावित होता है। इन स्थानों पर प्रशासन की तरफ से नाव की व्यवस्था की जाती है। लोगों को नाव से ले जाने के साथ ही छात्र छात्राओं को स्कूल भी नाव के सहारे ही जाना पड़ता है। यह स्थिति काफी असहज होती है। वहीं नाव से बच्चों को स्कूल भेजने के दौरान अभिभावकों में असुरक्षा की भावना भी बनी रहती है। हालांकि, फिर भी किसी तरह से बच्चों को नाव से ही स्कूल भेजना पड़ता है। टांडा के रवि व राजेसुल्तानपुर के बब्लू का कहना है कि बाढ़ के दौरान पानी गांव तक पहुंच जाने से नाव की व्यवस्था प्रशासन की तरफ से की जाती है। जिसका लोगों को लाभ मिलता है। हालांकि, नाव की संख्या ऐसे क्षेत्रों में और बढ़ाने की जरूरत है, जिससे परेशानी न हो। कटान की भेंट चढ़ जाता है सैकड़ों बीघा खेत व बाग: सरयू नदी में बाढ़ आने से आलापुर व टांडा तहसील क्षेत्र में सैकड़ों बीघा खेत कटान की भेंट चढ़ जाता है तो वहीं कई बाग भी बाढ़ की पानी में समा जाते हैं। इससे संबंधित किसानों को बड़े पैमाने पर क्षति पहुंचती है। हालांकि जिम्मेदारों की तरफ से कटान रोकने के लिए व्यवस्थाएं तो की जाती हैं, लेकिन वह उतनी कारगर साबित नहीं हो पाती। टांडा व आलापुर तहसील क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष बाढ़ से किसानों को बड़े पैमाने पर क्षति होती है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन वर्ष में आलापुर तहसील क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लगभग पांच सौ बीघा खेत व बाग नदी में समाहित हो चुके हैं। वहीं टांडा क्षेत्र में भी तीन सौ बीघा से ज्यादा खेत कटान की भेंट चढ़ चुके हैं। कटान रोकने के लिए आलापुर तहसील क्षेत्र के कम्हरिया घाट पर जियो ट्यूब लगाकर तो ड्रेजर मशीन से धारा परिवर्तित कर कटान को रोकने का प्रयास होता था, लेकिन यह इतना प्रभावी साबित नहीं हो सका। अब आलापुर तहसील के कम्हरिया में इस वर्ष कटान रोकने के लिए स्टेड का निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन यह कितना प्रभावी होगा, यह देखने वाली बात होगी। आलापुर के अराजी देवारा के गंगाराम का कहना है कि कटान रोकने के लिए जिम्मेदारों को प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। प्रत्येक वर्ष बड़े पैमाने पर खेत व बाग कटान की भेंट चढ़ जाते हैं, जो किसानों के लिए काफी पीड़ा दायक साबित होती है। बाढ़ से निपटने के लिए प्रशासनिक स्तर पर अभी तक नहीं दिखी तैयारी: जिले में बाढ़ से निपटने के लिए अभी तक प्रशासनिक स्तर पर कोई खास तैयारी देखने को नहीं मिली है। बाढ़ को लेकर न तो बैठक हुई है और न ही अन्य तैयारियां। जबकि बारिश का दौर अब शुरू होने वाला है। जिले में टांडा व आलापुर तहसील क्षेत्र में बाढ़ से प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैंं। अब बारिश का दौर कभी भी शुरू हो सकता है, जिसे देखते हुए अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई खास तैयारी बाढ़ से निपटने को लेकर नहीं दिख पाई है। न तो अभी तक इसे लेकर कोई बैठक हुई और न ही बाढ़ से प्रभावित होने वाले इलाकों का दौरा ही अधिकारियों द्वारा किया जा सका है। हालांकि, आलापुर तहसील क्षेत्र के कम्हरिया में कटान रोकने के लिए बाढ़ खंड अयोध्या द्वारा दो करोड़ से ज्यादा की लागत से स्टेड का निर्माण कराया जा रहा है। जो अब अंतिम चरण में है। सामाजिक कार्यकर्ता राघवेंद्र का कहना है कि प्रशासन को समय रहते बाढ़ से निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार कर लेनी चाहिए। क्योंकि जब बाढ़ अचानक से गांवों तक पहुंच जाती है तो खासी असुविधा होती है। ऐसे में समय रहते प्रत्येक प्रबंध हो जाने चाहिए। लोग बोले-- बाढ़ से प्रत्येक वर्ष टांडा व आलापुर तहसील क्षेत्र के लोगों को परेशान होना पड़ता है। लोगों को राहत कैंपों में शरण लेनी पड़ती है। ऐसे में समस्या ज्यादा होती है। बाढ़ से निपटने की तैयारियों को प्रभावी बनाने की जरूरत है। -रोशन सरयू नदी में बाढ़ से कटान होने लगता है। कटान के चलते तमाम खेत व बाग नदी में समाहित हो जाते हैं। इससे संबंधित किसानों को खासी मुश्किल होती है। उन्हें जो क्षति होती है, वह काफी परेशान करने वाली होती है। कटान रोकने को प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। -रामदास बाढ़ के दौरान गांवों में पानी घुस जाने से लोगों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। लोगों को बाढ़ चौकियों में शरण लेनी पड़ती है। ऐसे में जिम्मेदारों को चाहिए कि बाढ़ से पहले जो भी जरूरी तैयारियां हों, उसे पूरा कर लें। जिससे परेशान न होना पड़े। -वीरेंद्र बाढ़ को देखते हुए गांवों में जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है। लोग बाढ़ के चलते कई बार घबरा जाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए, इन सबके बारे में जागरूक करना चाहिए, जिससे लोगों को खुद को सुरक्षित रखने का तौर तरीका पता हो। -बृजेश बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोगों को प्रशासन द्वारा स्थापित बाढ़ चौकियों पर शरण लेनी पड़ती है। जहां प्रशासन द्वारा राशन व अन्य सामग्रियों का वितरण किया जाता है। लोगों को बाढ़ चौकियों पर राशन के अलावा स्वास्थ्य व अन्य सुविधाएं बेहतर ढंग से मिले, इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। -रामजी नगर में तमसा नदी के आसपास अतिक्रमण का दायरा बढ़ गया है, जिससे बारिश में नदी में पानी बढ़ने से खासी मुश्किल होती है। कई बार ज्यादा पानी होने से आसपास की दुकानों में पानी भर जाता है, जिससे खासी मुश्किल होती है। ऐसे में अतिक्रमण के खिलाफ प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। -छोटेलाल आलापुर व टांडा तहसील के बाढ़ प्रभावित इलाकों में पर्याप्त संख्या में नाव का संचालन करना चाहिए, जिससे लोगों को दिक्कत न हो। नाव के चलने से लोगों को काफी राहत मिलती है। जिम्मेदारों को इस पर भी खास ध्यान देने की जरूरत है। -मनोज कुमार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं के चारे के लिए काफी परेशानी होती है। हालांकि पशुओं के लिए प्रशासन की तरफ से भूसा समेत अन्य चीजें उपलब्ध कराई जाती हैं। लेकिन यह पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। जिससे पशुपालकों के साथ ही पशुओं को कोई दिक्कत न हो। -हृदयराम सरयू नदी के बाढ़ से प्रभावित इलाकों में बाढ़ के दौरान क्या बेहतर व्यवस्थाएं हो सकती हैं, इसे ध्यान में रखते हुए जिम्मेदारों को बाढ़ से प्रभावित होने वाले इलाके का दौरा समय रहते करना चाहिए। ऐसा होने से बाढ़ से निपटने के लिए बेहतर कार्ययोजना तैयार की जा सकती है। -विनोद कटान रोकने की व्यवस्था को और प्रभावी बनाने की जरूरत है। कटान होने से बहुत सारे खेत व बाग नदी की पानी में समा जाते हैं। इससे संबंधित किसानों को काफी परेशानी होती है। कटान कम हो सके इसके लिए जरूरी व प्रभावी प्रबंध समय रहते कर लेने की जरूरत है। -शिवलाल बाढ़ में फसलों के डूब जाने से किसानों को व्यापक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। किसानों द्वारा जो लागत लगाया जाता है, वह भी फसल के साथ पानी में खत्म हो जाता है। ऐसे में संबंधित किसानों की मदद के लिए बड़े पैकेज की घोषणा करने की जरूरत है। -महेंद्र तमाम परेशानियों के बाद बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों तक कई बार समुचित मदद नहीं मिल पाती। लोगों को कई तरह की मुसीबत होती है। जिम्मेदारों को चाहिए कि संबंधित लोगों को राशन, पानी, दवाई आदि की आपूर्ति बेहतर ढंग से की जाए। जिससे उन्हें परेशान न होना पड़े। -नन्हेलाल बोले जिम्मेदार- 'जिले में बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए बेहतर कार्ययोजना पर अमल किया जा रहा है। बाढ़ के दौरान प्रशासनिक स्तर पर लोगों के लिए पर्याप्त राशन, दवाओं का प्रबंध किया जाता है। बाढ़ चौकियों पर सभी व्यवस्थाएं समुचित रहती है। पशुओं के लिए चारा का वितरण कराया जाता है। अन्य प्रबंध भी किए जाते हैं, जिससे कोई समस्या न हो।' -डॉ सदानन्द गुप्ता, एडीएम

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