खाद की जरूरत पूरी करने में हरियाणा से रिश्तेदारी आ रही काम
Bagpat News - - बागपत के किसान हरियाणा में अपने रिश्तेदारों से मंगा रहे यूरियाखाद की जरूरत पूरी करने में हरियाणा से रिश्तेदारी आ रही कामखाद की जरूरत पूरी करने में

खरीफ फसलों की बुआई चल रही है, लेकिन किसानों को यूरिया नहीं मिल रहा है। यूरिया के लिए किसान सहकारी समितियों के चक्कर काट रहे है, लेकिन यूरिया नहीं मिल रहा है। ऐसे में किसानों ने पड़ौसी जनपद हरियाणा में रहने वाले रिश्तेदारों की मदद ली है। वे उनकी फर्द पर हरियाणा की समितियों से यूरिया मंगा रहे है ओर फिर बागपत लाकर अपनी फसलों में उसका छिड़काव कर रहे है। किसानों का कहना है कि बागपत में यूरिया मिल नहीं रहा है, ऐसे में रिश्तेदारी काम आ रही है। यदि रिश्तेदार न होते, तो फसलें बर्बाद हो जाती। सिसाना, गौरीपुर, बागपत, काठा, पाली, हमीदाबाद, सरूरपुर समेत काफी गांव ऐसे है, जिनकी रिश्तेदारियां बागपत जनपद से सटे सोनीपत ओर पानीपत जनपद के जखौली, कुमासपुर, अटेरना, राई, भैरा, कुंडली, झूंड़पुर, खेवड़ा, बहालगढ़, दीपालपुर, बड़ौली और पलडी आदि गांवों में है।
बागपत किसान अपने रिश्तेदारों के पास पहुंच रहे है। उनसे उनकी फर्द पर समितियों से यूरिया खरीदवा रहे है। इसके बाद यूरिया को निवाडा चैकपोस्ट के जरिए बागपत लाया जा रहा है। किसानों का कहना है कि मजबूरी में रिश्तेदारों का सहारा लेना पड़ रहा है। जब उनकी सोसायटी पर यूरिया आ जाएगा, तो वे रिश्तेदारों को उनका यूरिया वापस लौटा देंगे। फिलहाल फसलों को बचाने के लिए रिश्तेदारों की शरण लेनी पड़ रही है। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो फसलें बर्बाद हो जाएंगी। -------- खाद पहुंचते ही बुलानी पड़ रही पुलिस जनपद में यूरिया खाद की किल्लत इस कदर बनी हुई है कि जैसे ही किसानों को पता चलता है कि आज सोसायटी पर खाद पहुंचने वाला है, तो वे सैकड़ों की तादाद में मौके पर पहुंच जाते है। जैसे ही समिति सचिव किसानों को खाद की बिक्री करना शुरू करते है, तो किसानों के बीच आपाधापी मच जाती है। पहले मैं-पहले मैं के चक्कर में हंगामा खड़ा हो जाता है। जिसके बाद समिति सचिवों को पुलिस बुलानी पड़ती है। जिसके बाद पुलिस कर्मी किसानों को कतारबद्ध खड़ा करते है और खाद की बिक्री शुरू कराते है। आधे किसानों का नंबर आते-आते समिति पर खाद खत्म हो जाता है। जिसके चलते किसानों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ता है। इस तरह के हालात बिनौली और चौगामा क्षेत्र की समितियों पर देखने को मिल चुके है। वहां पुलिस की मौजूदगी में यूरिया बटवाया गया था। ------ खाद न होने के कारण समितियों पर लटके ताल जनपद की अधिकांश सहकारी समितियों पर यूरिया की किल्लत बनी हुई है। कई समितियां तो ऐसी है, जिन पर एक भी बोरा यूरिया नहीं है। किसान समितियों पर पहुंचते है ओर हंगामा करते है। जिसका सामना समिति सचिवों को करना होता है। किसानों के आक्रोश से बचने के लिए ऐसी समितियों पर ताला लटका रहता है। अधिकारियों का कहना है कि यदि वे समिति पर पहुंचते है, तो किसान हंगामा करते है। ऐसे में वे ताला लगाकर अपने अन्य विभागीय कार्य निपटा रहे है। -------- पैसे जमा करने के बाद भी नहीं मिल रहा खाद सहाकारी समितियों के सचिवों का कहना है कि किसानों की डिमांड के मद्देनजर इफ्को को ऑडर देते हुए आरटीजीएस के माध्यम से भुगतान भी कर दिया गया है, लेकिन पीसीएफ से यूरिया नहीं मिल रहा है। जिसके चलते समितियों पर खाद की किल्लत बनी हुई है। वहीं, सहायक निबंधक अधिकारी इंदू सिंह का कहना है कि जनपद में 450 एमटी यूरिया मौजूद है। कुछ समितियों को छोड़कर शेष सभी पर यूरिया उपलब्ध है। मंगलवार को एक हजार एमटी यूरिया बागपत पहुंच जाएगा। जिसके बाद किसानों को यूरिया खाद के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। -------- अफसरों के दावे निराधार, समितियों पर नहीं मिल रहा यूरिया बागपत की सहकारी समिति पर यूरिया खाद नहीं है। पिछले कई दिनों से यूरिया के लिए परेशान होना पड़ रहा है। बाजार में यूरिया महंगा बिक रहा है। अफसर झूठे दावे कर रहे है। हरपाल सिंह, निनाना ------ सहकारी समिति पर पिछले काफी दिनों से यूरिया की किल्लत बनी हुई है। बसंतकालीन गन्ने की बुआई करनी है। यूरिया न मिलने की वजह से बुआई नहीं हो पा रही है। अधिकारियों को समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए। नत्थू सिंह, फैजुल्लापुर ------ अफसर सहकारी समितियों पर यूरिया उपलब्ध होने की जानकारी गलत दे रहे है। किसान यूरिया के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे है। फसलों की बुआई भी लेट हो रही है। किसान दिन निकलते ही समितियों पर पहुंच रहे है, लेकिन यूरिया न मिलने के कारण मायूस होकर वापस लौट रहे है। सहंसरपाल, ट्यौढ़ी ------ सहकारी समिति पर यूरिया नहीं मिल रहा है। बाजार में यूरिया की कालाबाजारी हो रही है। अधिकारी झूठे दावे पेश कर रहे है। यदि समितियों पर यूरिया उपलब्ध होता, तो किसान हरियाणा में रहने वाले रिश्तेदारों से यूरिया क्यों खरीदवाते। प्रदीप कुमार, दोघट --------
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