बोले बाराबंकी: आउटसोर्स कर रही कंपनियों के शोषण पर लगे कड़ा अंकुश
Barabanki News - बाराबंकी के जिला अस्पताल में प्रशिक्षण ले रहे नर्सिंग छात्रों को ठहरने, खानपान और दैनिक जरूरतों की सुविधाएं नहीं मिलती हैं। इसके बावजूद, वे मरीजों की देखभाल में लगे रहते हैं। प्रशिक्षुओं ने सरकार से...

बाराबंकी। जिला अस्पताल में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे छात्र-छात्राओं को न तो ठहरने की समुचित सुविधा मिलती है और न ही खानपान या दैनिक जरूरतों की कोई व्यवस्था होती है। फिर भी मरीजों की सेवा में लगे इन प्रशिक्षुओं का उत्साह कम नहीं होता। ये पैथोलॉजी में जांचों में सहयोग करते हैं, दवा वितरण करते हैं और वार्डों में मरीजों की देखभाल करते हैं। नर्सिंग प्रशिक्षु चाहते हैं कि सरकार स्थाई भर्तियों की संख्या बढ़ाए और आउटसोर्सिंग व्यवस्था पर पारदर्शिता लाए। प्रशिक्षण के दौरान भत्ता देने और निजी अस्पतालों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क पर नियंत्रण की भी आवश्यकता जताई गई।
नर्सिंग प्रशिक्षु अपनी मेहनत, समर्पण और सेवाभाव से स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ बनने की तैयारी में हैं, लेकिन उन्हें बेहतर सुविधाएं, पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया और आर्थिक सहयोग की सख्त आवश्यकता है। इन मूल समस्याओं को दूर कर दिया जाए, तो ये प्रशिक्षु भविष्य में स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा और दशा दोनों बदल सकते हैं। नर्सिंग प्रशिक्षु की मांग, उनको प्रशिक्षण का मिले भुगतान: जिला महिला अस्पताल, पुरुष अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की सेवा में जुटे नर्सिंग प्रशिक्षु छात्र-छात्राएं इन दिनों एक अहम मांग को लेकर चर्चाओं में हैं। उनका कहना है कि एएनएम (सहायक नर्सिंग मिडवाइफ) और जीएनएम (जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी) का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद जब वे अस्पतालों में इंटर्नशिप या सेवा कार्य करते हैं, तो उनसे पूरा कार्य लिया जाता है लेकिन इसके बदले उन्हें कोई भुगतान नहीं मिलता। प्रशिक्षणरत छात्र बताते हैं कि अस्पतालों में ड्यूटी करने के दौरान उन्हें मरीजों की देखभाल, दवाओं का वितरण, वार्ड प्रबंधन, पैथोलॉजी में सहयोग, ब्लड प्रेशर और तापमान जांच जैसे महत्वपूर्ण कार्य सौंपे जाते हैं। इसके बावजूद उन्हें एक रुपये तक का भुगतान नहीं किया जाता। न ही उन्हें कोई भत्ता, भोजन या यात्रा सुविधा मिलती है। बाराबंकी के जिला अस्पताल समेत अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे नर्सिंग छात्र-छात्राओं को बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं। इनके ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं, खानपान की सुविधा नहीं, इसके बावजूद ये छात्र पूरी निष्ठा से मरीजों की देखभाल में लगे रहते हैं। वे चाहते हैं कि सरकार प्रशिक्षण के दौरान उन्हें भत्ता दे ताकि वे मानसिक और आर्थिक रूप से सशक्त होकर सेवा कर सकें। सरकार अगर इन्हें प्रशिक्षण भत्ता दे और सुविधा मुहैया कराए, तो ये प्रशिक्षु बेहतर आत्मबल के साथ सेवाभाव को आगे बढ़ा सकते हैं। दूर-दराज से आते छात्र-छात्राएं, झेलनी पड़ती हैं कई समस्याएं: जिला महिला अस्पताल, पुरुष अस्पताल और अन्य सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में नर्सिंग का प्रशिक्षण ले रहे छात्र-छात्राओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। इनमें बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है जो बाराबंकी के सुदूर ग्रामीण इलाकों, पिछड़े गांवों और आसपास के जनपदों से यहां प्रशिक्षण के लिए आते हैं। दूर-दराज के गांवों से आने वाले नर्सिंग प्रशिक्षुओं के सामने सबसे बड़ी समस्या आवास की होती है। अधिकतर छात्र-छात्राएं किराये के कमरे लेकर रहते हैं, जिससे उन्हें हर महीने अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। नर्सिंग प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण के दौरान कोई भत्ता या भोजन की सुविधा नहीं मिलती। पढ़ाई के साथ तीन वर्ष का प्रशिक्षण भी जरूरी:नर्सिंग कोर्स करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए केवल क्लासरूम की पढ़ाई ही काफी नहीं होती, बल्कि उन्हें अस्पतालों में लगातार तीन साल तक प्रशिक्षण भी लेना होता है। इस दौरान उन्हें मरीजों की सेवा, दवाओं का वितरण, पैथोलॉजी जांच में सहयोग, ऑपरेशन थियेटर की तैयारी जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का अभ्यास करना होता है। यह प्रशिक्षण जहां उन्हें बेहतर नर्स बनने की दिशा में तैयार करता है, वहीं कई बार यह उनके लिए मानसिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से भरा होता है। यह कोर्स तीन साल का होता है जिसमें नियमित रूप से थ्योरी क्लास के साथ-साथ अस्पताल में व्यावहारिक प्रशिक्षण अनिवार्य होता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और गांवों में जाकर टीकाकरण, मातृ एवं शिशु देखभाल, जनसंख्या नियंत्रण और स्वच्छता जागरूकता जैसे कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेना होता है। सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों में तो फिर भी कुछ सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन जो छात्र निजी संस्थानों से नर्सिंग कर रहे हैं, उन्हें प्रशिक्षण के दौरान किसी प्रकार का भत्ता नहीं मिलता। कुछ निजी अस्पताल प्रशिक्षण के नाम पर छात्र-छात्राओं से शुल्क भी वसूलते हैं। सरकारी भर्तियों में पद कम, मजबूरी में निजी अस्पतालों का सहारा : सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के तमाम दावों के बावजूद नर्सिंग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार पाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। एएनएम और जीएनएम कोर्स पूरा कर चुके युवक-युवतियों को न तो समय से सरकारी नौकरियां मिल रही हैं, और जो भर्तियां निकलती भी हैं, उनमें पदों की संख्या बेहद कम होती है। मजबूरन ये युवा निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में नौकरी करने को विवश हैं, जहां शोषण के आरोप आम बात हो चली है। नर्सिंग छात्राओं का कहना है कि वर्षों पढ़ाई और प्रशिक्षण के बाद वे जब नौकरी की तलाश में निकलती हैं तो सामने सरकारी भर्तियों की बेहद सीमित संख्या आती है। एक भर्ती में जिलेभर से सैकड़ों उम्मीदवार आवेदन करते हैं, जबकि पदों की संख्या गिनी-चुनी होती है। एक प्रशिक्षु ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तीन साल से जीएनएम कोर्स पूरा कर चुका हूं, लेकिन अभी तक कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई। जो भर्तियां आती हैं, उनमें 5-10 पद ही होते हैं और हजारों लोग आवेदन करते हैं। सरकारी भर्तियों की सीमित संख्या से बढ़ रही हताशा:जिले के सरकारी व निजी प्रशिक्षण संस्थानों से नर्सिंग का कोर्स (एएनएम, जीएनएम) पूरा कर चुके सैकड़ों छात्र-छात्राएं आज सरकारी नौकरी की आस में दर-दर भटक रहे हैं। तमाम मेहनत और प्रशिक्षण के बाद भी उन्हें स्थायी सरकारी नौकरी नहीं मिल रही है। ऐसे में मजबूरीवश वे निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं, जहां न तो वेतन तय होता है और न ही नौकरी की सुरक्षा। नर्सिंग कोर्स कर रहे अधिकतर युवाओं का सपना यही होता है कि उन्हें किसी सरकारी अस्पताल में स्थायी नौकरी मिले, जहां वे न केवल सामाजिक सम्मान के साथ सेवा दे सकें बल्कि एक सुरक्षित भविष्य भी बना सकें। जिले के नर्सिंग छात्रों का कहना है कि सरकार द्वारा निकाली जाने वाली भर्तियों की संख्या बेहद कम होती है और वे भी वर्षों में एक बार निकलती हैं। उसमें भी आरक्षण, चयन प्रक्रिया और अन्य तकनीकी अड़चनों के कारण अधिकांश छात्रों को मौका नहीं मिल पाता। सरकारी अस्पतालों में भी स्थायी नियुक्ति के बजाय आउटसोर्स कंपनियों के माध्यम से नर्सिंग स्टाफ की भर्ती की जा रही है। बोले लोग: प्रशिक्षण के दौरान हमें कोई भत्ता नहीं मिलता, जबकि अपने आने-जाने और खाने-पीने का खर्च खुद उठाना पड़ता है। यह बहुत मुश्किल होता है। -आयुष प्रशिक्षण के दौरान सभी छात्रों को उचित सुविधाएं मिलनी चाहिए। इससे कोर्स पूरा करने में आसानी होगी। -रत्नाकर सिंह सरकारी भर्ती बहुत कम होती है, इसलिए मजबूरी में हमें निजी अस्पतालों में नौकरी करनी पड़ती है, जहां कभी-कभी वेतन भी समय पर नहीं मिलता। -रंगोली निजी अस्पतालों में काम करने पर बहुत कम पैसे मिलते है। जो हमारे लिए भारी पड़ता है। इस पर प्रशासन को रोक लगानी चाहिए। -दिव्या हमें अस्पताल में काम के दौरान कोई परेशानी नहीं होती है। यहां सभी का पूरा सपोर्ट मिलता हैं। सभी सीनियर जूनियर का पूरा ख्याल रखते है। -अंशिका वर्मा हम लोगों को प्रशिक्षण के दौरान मेहनताना नहीं मिलता है। अगर प्रशासन हर महीने हम लोगों को भत्ता मिल जाए तो हम लोगों को बहुत आसानी होगी। -कल्पना आसपास क्षेत्रों से प्रशिक्षण करने आने वाले हम लोगों को बसों के किराए में छूट मिलनी चहिए। जिससे हम लोगों पर आर्थिक भार न पड़े। -काजल सिंह प्रशिक्षण करने के दौरान हम लोगों को मानदेय मिलना चाहिए। जिससे हम लोग किसी पर बोझ न बन सके और अपना खर्च खुद ही उठा सकें। -चांदनी हम चाहते हैं कि जैसे ही हम लोगों का प्रशिक्षण पूरा होने तुरंत बाद ही हम लोगों को सरकारी अस्पतालों में नौकरी मिल जाए। कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। -मनीषा सरकारी अस्पतालों में पद बढ़ाने की जरूरत है, ताकि छात्र छात्राओं को सरकारी नौकरी मिल सके और निजी अस्पतालों पर निर्भरता कम हो। -अंजलि प्रशिक्षण के दौरान हमें भोजन की बेहतर सुविधा दी जाए। प्रशासन इस मांग को पूरा कर दे तो हम लोगों को काफी आसानी होगी और यह हमारे लिए बहुत जरूरी है। -जीशान प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए जिसका हम सभी लोग सपना देख रहे है। सरकार को चाहिए कि नई भर्तियां खोली जाए। -परवीन बानो बोले जिम्मेदार: जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ वीपी सिंह का कहना है कि नर्सिंग छात्रों को नियमानुसार प्रशिक्षण की सुविधा दी जाती है। कोशिश की जाती है कि उन्हें कोई असुविधा न हो। अगर किसी को कोई समस्या होती है तो वह सीधे अस्पताल प्रशासन से संपर्क कर सकता है।
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