Bijnor Wrestlers Struggle Without Coaches and Resources बोले बिजनौर : ‘द्रोणाचार्य ही नहीं तो कैसे तैयार हों ‘अर्जुन, Bijnor Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsBijnor NewsBijnor Wrestlers Struggle Without Coaches and Resources

बोले बिजनौर : ‘द्रोणाचार्य ही नहीं तो कैसे तैयार हों ‘अर्जुन

Bijnor News - बिजनौर के पहलवान बिना गुरु के कुश्ती के दांव-पेच सीखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नेहरू स्टेडियम में कुश्ती कोच की कमी और अन्य संसाधनों के अभाव ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है। पहलवानों का कहना है कि...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिजनौरSun, 20 April 2025 09:13 PM
share Share
Follow Us on
बोले बिजनौर : ‘द्रोणाचार्य ही नहीं तो कैसे तैयार हों ‘अर्जुन

बिजनौर की माटी में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। खिलाड़ियों में मंजिल तक पहुंचने का जज्बा भी है लेकिन, संसाधनों का अभाव प्रतिभाओं को जंग लगा रहा है। बिजनौर के पहलवान बिना गुरु के ही सोना जीतने की राह पर चल रहे हैं और बिना गुरू के ही दांव पेच लगा रहे हैं। बिजनौर के पहलवान बिना गुरू के सोना जीत पाएंगे या नहीं यह तो समय ही बताएगा, लेकिन गांव की माटी से निकले पहलवान बिना गुरू के ही पसीना बहा रहे हैं। दांव लगाकर सामने वालों को चारों खाने चित करने वाले पहलवान अव्यवस्थाओं के मकड़जाल में फंस गए हैं। नेहरू स्टेडियम में कुश्ती कोच नहीं है। बिजनौर के पहलवानों का कहना है कि लंबे समय से नेहरू स्टेडियम में प्रशिक्षण देने के लिए कुश्ती कोच की तैनाती नहीं है। ऐसे हालात में बिना गुरू द्रोणाचार्य के अुर्जन कैसे निकलेंगे।

जिले के लोगों का कुश्ती पसंदीदा खेल रहा है। गांवों में दंगल में पहलवान कुश्ती के दांव-पेच लगाते दिख जाते हैं। गांव की माटी में पैदा हुए पहलवान सामने वाले को दांव पेच लगाकर चित करने का हुनर तो रखते हैं लेकिन समस्याओं के भंवर में फंसकर पस्त नजर आ रहे हैं। बिजनौर के पहलवानों की समस्याएं एक नहीं अनेक है। विमल चौधरी, रक्षित ढाका और मोहम्मद रफजील ने कहा कि नेहरू स्टेडियम में कुश्ती के दांव पेच सीखने के लिए पहलवान तो जाते हैं, लेकिन नेहरू स्टेडियम में कुश्ती कोच नहीं है। नेहरू स्टेडियम में कुश्ती कोच न होना बड़ी समस्या है। पहलवानों ने कहा कि कुश्ती कोच न होने की समस्या नई समस्या नहीं है। नेहरू स्टेडियम में वर्षों से कुश्ती कोच नहीं है। जब कुश्ती के दांव पेच सिखाने वाला ही नहीं है तो पहलवान जिले का नाम रोशन कैसे करेंगे। पहलवानों ने कहा कि कुछ समय के लिए कोच आए थे, लेकिन आज कोच के बिना ही खिलाड़ी कुश्ती के दांव पेच सीख रहे हैं।

पहलवानों ने बताया कि एक नहीं कई समस्याओं से घिरकर पहलवानों के हौंसले पस्त हो गए हैं। कुश्ती लड़ने के लिए अधूरी मैट है। कुश्ती लड़ने का हॉल छोटा है जबकि कुश्ती लड़ने के लिए हॉल बड़ा होना चाहिए और हॉल में पूरी मैट डाली जानी चाहिए। धर्म सिंह, शिवांग ठाकुर और प्रियांशु ने कहा कि कुश्ती के दांव पेच सीखने के साथ साथ पहलवानों को डंबल, रोड और चक्के आदि भी चाहिए ताकि वह मेहनत कर सके। नेहरू स्टेडियम में आधुनिक जिम तो है, लेकिन उसका चार्ज लगता है। इस तरह की सुविधा बिजनौर के पहलवानों को मिलनी चाहिए। पहलवानों ने कहा कि हालात ऐसे है कि पहलवान अपने पैसे से रस्सा तक खरीद रहे हैं। पहलवानों ने कहा कि कुश्ती कोच न होने के कारण मंडल और स्टेट पर होने वाले ट्रायल की सूचना पहले से नहीं मिलती है। मंडल या स्टेट पर खेलने जाने के लिए कोई बजट नहीं मिलता है अपने पैसे से ही जाना पड़ता है।

पहलवानों को जिले से बाहर जाने के लिए खाना व किराए की व्यवस्था कराई जानी चाहिए। पहलवानों ने कहा कि नेहरू स्टेडियम में पहलवानों को कुश्ती के दांव पेच सिखाने के लिए कुश्ती कोच तैनात होना चाहिए और मंडल व स्टेट पर पहलवानों के साथ कुश्ती कोच जाना चाहिए। अधिकांश अवसरों पर पहलवान को अकेले ही मंडल और स्टेट पर खेलने के लिए भेज दिया जाता है। पहलवानों ने कहा कि जिले में अधिक से अधिक खेल के मैदान बनने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी खेल प्रतिभाओं को चिन्हित कर उन्हें तरासा जाना चाहिए ताकि खिलाड़ी जिले का नाम देश भर में रोशन कर सकें। पहलवानों ने कहा कि गांव की माटी में प्रतिभाओं की कमी नहीं है जरूरत है तो सिर्फ तरासने और संसाधन उपलब्ध कराने की।

स्टेमिना बढ़ाने के लिए इंजेक्शन लगाने वाले पहलवानों पर रखी जाए नजर

पहलवानों ने कहा कि काफी पहलवान स्टेमिना बढ़ाने के लिए इंजेक्शन लगाते हैं। अफसरों को ऐसे पहलवान हो या खिलाड़ी चिन्हित करने चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पहलवानों ने बताया कि खेल के मैदान में काफी संख्या में इसे लेकर खुलेआम पड़े सबूत नजर आ जाएंगे।

कुश्ती हॉल में प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए

पहलवानों ने कहा कि कुश्ती हॉल में प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इससे पहलवानों को राहत मिलेगी। अधिक से अधिक पहलवानों को संसाधन उपलब्ध कराए जाए ताकि पहलवान जिले का नाम रोशन कर सके।

बिना फीस पहलवानों को मिले जिम में सुविधा

पहलवानों का कहना है कि पहलवानों को नेहरू स्टेडियम में बने जिम में भी सुविधा मिलनी चाहिए। पहलवानों से जिम में पसीना बहाने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। पहलवानों को निशुल्क जिम में सुविधा दी जाए ताकि वह अपने सपने को पूरा कर सके।

बोले जिम्मेदार

नेहरू स्टेडियम में कुश्ती कोच नहीं है। कुश्ती कोच के लिए खेल निदेशालय को लिखा गया है। उम्मीद है कि बहुत जल्द कुश्ती कोच मिल जाएगा। कुश्ती कोच मिलने के बाद मैट और हॉल सहित अन्य संसाधन भी उपलब्ध हो जाएंगे। कुश्ती कोच न होने के कारण नेहरू स्टेडियम में किसी भी पहलवान का रजिस्ट्रेशन नहीं है। काफी कम पहलवान ही नेहरू स्टेडियम में आते हैं। प्रयास किए जा रहे हैं कि जल्द ही पहलवानों की समस्याओं का निस्तारण किया जाए। - राजकुमार, जिला क्रीड़ा अधिकारी, बिजनौर

पहलवान

कोट

स्टेडियम में कई सालों से कुश्ती का कोच नहीं है। जिसमें चलते पहलवान नई टैक्निक नहीं सीख पा रहे है। कोच की नियुक्ति बेहद जरूरी है। - विमल चौधरी

जिले स्तर पर खिलाड़ियों को मंडल व प्रदेश स्तर के ट्रायल की सूचना समय से नहीं दी जाती है। जिससे उन्हें यात्रा करने में दिक्कत होती है। - रक्षित ढाका

स्टेडियम में कुश्ती लड़ने के लिए पूरे मैट नहीं हैं। जिससे पहलवानों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। - धर्मवीर सिंह

पहलवानों को मंडल या प्रदेश स्तर पर ट्रायल में खेलने जाने के लिए कोई यात्रा भत्ता नहीं दिया जाता है। खिलाड़ियों को खर्च खुद वहन करना पड़ता है। - शिवांग ठाकुर

स्टेडियम में पहलवानों के लिए सुविधाए नहीं है। पहलवान अपने खर्च पर रस्से आदि का इंतजाम करते हैं। - प्रियांशु

स्टेडियम में प्रकाश की उचित व्यवस्था नहीं है। पहलवानों ने हाल की लाइड खुद पैसे देकर ठीक कराई है। - सुशांत चौधरी

पहलवानों के साथ ट्रायल पर मंडल व प्रदेश स्तर पर कोई कोच साथ नहीं जाता है। कोच साथ जाए जो पहलवानों की कमियां बता सकता है। - वासु सिंह

स्टेडियम में पहलवानों के लिए बनाया गया कुश्ती हाल छोटा है। जिसमें पूरे गद्दे भी नहीं आते हैं। - मौ. रफजील

स्टेडियम में पहलवानों का शरीर मजबूत करने के लिए वेट लिफ्टिंग का सामान नहीं है। जोकि बेहद जरूरी है। - विकुल कुमार

कोच न होने से स्टेडियम में आने वाले प्रशिक्षु पहलवानों को दिक्कत होती है। कोच का होना बेहद जरूरी है। - हर्ष

---

स्टेडियम में कोच होने से पहलवानों की संख्या बढ़ सकती है। वर्तमान समय में सात साल की उम्र वाला पहलवान आ रहे हैं। -रिकांशु

पहलवानों को खेल के दौरान से चोट से बचाव के तरीके व जानकारी भी सिखाए जाने चाहिए। - प्रेमराज

----

पहलवानी शरीर के साथ-साथ दिमाग का भी गेम है। जो खिलाड़ी को थका देता है। पहलवानों को काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं दी जानी चाहिए। - जावेद

सुझाव

---------

- कोच की नियुक्ति की जानी चाहिए।

- पहलवानों के लिए समय-समय पर काउंसलिंग कराई जानी चाहिए।

- स्टेडियम में पहलवानों की जरूरत की सुविधाए होनी चाहिए।

- ट्रायल व प्रतियोगिता जाने के लिए पहलवानों को खर्च दिया जाए।

- ट्रायल की सूचना एक सप्ताह पूर्व मिलनी चाहिए।

शिकायतें

- स्टेडियम में कई सालों से कोच की व्यवस्था नहीं है।

- स्टेडियम में अभ्यास करने के लिए पूरी सुविधा नहीं है।

- पहलवानों को ट्रायल के लिए अपने खर्च पर जाना पड़ता हैं।

- पहलवानों के लिए काउंसिलिंग व चिकित्सक की व्यवस्था नहीं है।

- पहलवानों को जिम की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।