हिरासत में मौत: NHRC ने एएसपी, डीएसपी समेत 21 पुलिसकर्मियों को दोषी पाया, कार्रवाई के आदेश
कस्टडी में मौत के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने एएसपी, डीएसपी समेत 21 पुलिस वालों को दोषी पाया है। इनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया है। मामला आगरा के सिकंदरा पुलिस स्टेशन का है।

आगरा के सिकंदरा पुलिस स्टेशन में 30 वर्षीय राजू गुप्ता की कस्टडी में मौत के छह साल से अधिक समय बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की जांच में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) और पुलिस उपाधीक्षक सहित 21 पुलिसकर्मियों को मानवाधिकार उल्लंघन का दोषी पाया गया है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी। अधिकारियों ने कहा कि जांच में विभिन्न रैंकों के अधिकारी दोषी मिले हैं। तीन निरीक्षक, दो उप-निरीक्षक, पांच हेड कांस्टेबल, सात कांस्टेबल, एक पुलिस चालक और एक कंप्यूटर ऑपरेटर इसमें शामिल है। एनएचआरसी की रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने संबंधित अधिकारियों को गुप्ता के परिवार को 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने और रिपोर्ट में नामित अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया है।
मंगलवार को आधिकारिक राज्य वेबसाइट पर अपलोड किए गए एक सरकारी आदेश में कहा गया है कि एनएचआरसी के निर्देशों का अनुपालन 15 दिनों के भीतर की जानी चाहिए एनएचआरसी के हस्तक्षेप के बाद मामला अपराध शाखा-आपराधिक जांच विभाग (सीबी-सीआईडी) को स्थानांतरित कर दिया गया था। लखनऊ स्थित सीबी-सीआईडी मुख्यालय के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेंद्र प्रसाद यादव ने पुष्टि की कि जांच पूरी हो गई है और आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) और 340 (गलत तरीके से बंधक बनाना) के तहत आरोप तय कर दिए गए हैं।
राजेंद्र यादव ने कहा कि तत्कालीन थाना प्रभारी, दो उपनिरीक्षक और चार हेड कांस्टेबल समेत 17 कर्मियों ने चोरी के संदेह में गुप्ता को अवैध रूप से हिरासत में लिया और हिरासत में उसके साथ मारपीट की। इससे उसकी मौत हो गई। अभियोजन स्वीकृति के लिए जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी गई है, क्योंकि आरोपी सरकारी कर्मचारी हैं। तत्कालीन एएसपी और डीएसपी को एनएचआरसी द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, लेकिन सीबी-सीआईडी के आपराधिक मामले के निष्कर्षों में उनका नाम नहीं था।
सीबी-सीआईडी अधिकारियों ने बताया कि गलाना मार्ग पर नरेंद्र एन्क्लेव के निवासी राजू गुप्ता को 21 नवंबर 2018 को स्थानीय निवासी अंशुल प्रताप की मौखिक शिकायत पर हिरासत में लिया गया था। उन्होंने गुप्ता पर आभूषणों से भरा बैग चुराने का आरोप लगाया था। पुलिस द्वारा उसे हिरासत में लेने से पहले कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई थी।
हिरासत में रहते हुए गुप्ता को कथित तौर पर उसकी मां रेणु गुप्ता के सामने पीटा गया। उन्होंने अधिकारियों से उसे रोकने की गुहार लगाई थी। उसकी हालत बिगड़ गई और बाद में उसे अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। हालांकि, केस के अभियोजन पक्ष के पास पहुंचने से पहले ही कोविड-19 महामारी के दौरान उनकी मौत हो गई।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गंभीर चोटों का पता चला, जिसके बाद अंशुल प्रताप और विवेक समेत कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया। सिकंदरा थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर अजय कौशल छुट्टी पर थे, जबकि ऋषिपाल सिंह चार्ज संभाल रहे थे।
सीआईडी ने अपनी विवेचना में पाया दोषी लगाई चार्जशीट
सीआईडी ने अपनी विवेचना में घटना के समय सिकंदरा थाने में मौजूद एक इंस्पेक्टर, दो दरोगा, चार हेड कांस्टेबिल सहित 17 और पुलिस कर्मियों को गैर इरादतन हत्या और अवैध हिरासत का दोषी पाया है। सीआईडी ने चार्जशीट लगाई है। अभियोजन स्वीकृति के लिए फाइल शासन को भेजी गई है। कार्रवाई की जानकारी से पुलिस कर्मियों में खलबली मच गई है।
मां के सामने पीटा गया था
मां के सामने बेटे को बेरहमी से पीटा गया था। विधवा मां बेटे को बचाने के लिए गिड़गिडाई थी मगर उस पर किसी को तरस नहीं आया था। दूसरे दिन 22 नवंबर को पुलिस की पिटाई की दहशत से राजू गुप्ता की हालत बिगड़ी थी। पुलिस उसे अस्पताल लेकर गई थी। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया था। राजू की मौत के बाद थाना खाली हो गया था। पुलिस भाग गई थी। पोस्टमार्टम पर उसके शरीर पर गंभीर चोट के निशान मिले थे। सिकंदरा थाने में हत्या की धारा के तहत मुकदमा लिखाया गया था। मुकदमे में अंशुल प्रताप, विवेक और अज्ञात पुलिस कर्मियों को आरोपित बनाया गया था। मुकदमे की विवेचना लोहामंडी थाने से कराई गई थी। पुलिस ने दरोगा अनुज सिरोही, अंशुल प्रताप और विवेक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या की धारा के तहत चार्जशीट लगाई थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले की विवेचना सीआईडी के कराने के निर्देश दिए थे।
साढ़े छह साल तक बचे रहे पुलिस कर्मी
एसपी सीआईडी राजेंद्र यादव ने बताया कि राजू गुप्ता की पिटाई के समय सिकंदरा थाने में जो भी पुलिस कर्मी मौजूद था उसको गैर इरादतन हत्या और अवैध हिरासत का दोषी बनाया गया है। अभियोजन स्वीकृति के बाद पुलिस कर्मियों के ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटक जाएगी। सभी को अपनी जमानत करानी पड़ेगी। पुलिस ने जिन तीन लोगों के खिलाफ चार्जशीट लगाई थी। वे भी मुकदमे में आरोपित हैं।
थाने का चार्ज प्रभारी इंस्पेक्टर के पास था
घटना के समय तत्कालीन इंस्पेक्टर सिकंदरा अजय कौशल अवकाश पर थे। थाने का चार्ज इंस्पेक्टर ऋषिपाल सिंह पर था। चार्जशीट में इंस्पेक्टर ऋषि पाल सिंह, दरोगा ज्ञानेंद्र शर्मा, दरोगा तेजवीर सिंह, मुख्य आरक्षी राम किशन, देवेंद्र सिंह, राकेश कुमार, रणजीत, आरक्षी हरीश चंद्र, बृजेश कुमार, कंप्यूटर ऑपरेटर हिमांक कुमार, आरक्षी संजीव कुमार, राजेश, सतेंद्र सिंह, संजीव, अनिल कुमार, जोगेश कुमार और आरक्षी चालक संजय कुमार आरोपित बनाए गए हैं। कुछ पुलिस कर्मियों की आगरा से बाहर तैनाती है। कुछ अभी भी कमिश्नरेट में तैनात हैं।
बेटे की याद में मां ने तोड़ा था दम
राजू गुप्ता अपनी विधवा मां का इकलौता सहारा था। राजू की मौत के बाद मां ने सिकंदरा क्षेत्र से मकान छोड़ दिया था। जगदीशपुरा इलाके में किराए पर मकान लिया था। अकेली रह गई थीं। कोई देखभाल करने वाला नहीं था। बेटे की याद में रोती रहती थीं। उनकी भी मौत हो गई थी।
हिन्दुस्तान ने उठाई थी आवाज
हिरासत में मौत का मामला पुलिस दबाना चाहती थी। आपके अखबार हिन्दुस्तान ने राजू गुप्ता की मां की आवाज उठाई थी। मुकदमा लिखते ही दरोगा और दोनों आरोपित भाग गए थे। पुलिस ने कई दिन अंशुल प्रताप को पकड़ा था। दरोगा ने कोर्ट में समर्पण किया था।
सीआईडी ने पूछे थे सवाल
-बिना मुकदमा लिखे किसी को अवैध हिरासत में क्यों रखा गया।
-जब पुलिस कर्मी पिटाई कर रहे थे तो थाने में मौजूद दूसरे पुलिसवालों ने क्यों नहीं बचाया।
-बिना साक्ष्य पुलिस ने एक निर्दोष को बेरहमी से क्यों पीटा।
-घटना के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी में विलंब क्यों किया। सिर्फ एक दरोगा को ही दोषी क्यों बनाया। अन्य को क्यों बचाया।
-पिटाई नहीं हुई थी तो पोस्टमार्टम में चोटें कैसे आईं।
-विवेचना के दौरान किसी पुलिस कर्मी ने पीटने वाले का नाम नहीं बताया। इसलिए सभी फंसे।