बोले देवरिया : तहसीलों में साहित्यिक विमर्श के केंद्र बनें, युवाओं को भी मिले मंच
Deoria News - Deoria News : देवरिया की एक समृद्ध साहित्यिक विरासत रही है। एकीकृत देवरिया में प्रसिद्ध साहित्यकार हीरानंद सच्चिदानंद वात्सायन अज्ञेय का जन्म कुशीनगर
देवरिया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि साहित्य समाज को मशाल दिखाता है। वहीं साहित्य के बारे में यह भी कहा गया है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्यिक चेतना का यह प्रवाह देवरिया में भी रहा है। आज भी नागरी प्रचारिणी सभा से यहां 550 से अधिक साहित्यप्रेमी जुड़े हुए हैं। यहां साहित्यक गोष्ठी और कवि सम्मेलनों के साथ ही साहित्य की दशा और दिशा पर भी चर्चा होती रहती है। साहित्यकार बातचीत में कहते हैं कि जिला मुख्यालय के अलावा हर तहसील में साहित्यिक विमर्श के लिए केंद्र विकसित होने चाहिए। नागरी प्रचारिणी सभा के पूर्व मंत्री इंद्रकुमार दीक्षित बताते हैं कि साहित्य का सृजन करना एक बात है और इसको प्रकाशन के माध्यम से समाज के सामने लाना दूसरी बात। जिले में कई साहित्यकार हुए हैं जिन्होंने कालजयी रचनाओं का सृजन किया पर उसे प्रकाशित नहीं करा पाए। प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं बंद होती चली गईं। वहीं अधिकांश समाचार पत्रों ने भी साहित्य का कोना या तो छोटा कर दिया है या बंद। साहित्यकार नए लेखकों की अनदेखी का भी आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि जो पत्र-पत्रिकाएं निकल रही हैं उनमें भी नए लेखकों को जगह नहीं मिल रही है।
वरिष्ठ साहित्यकार दुर्गा पांडेय का कहना है कि अब लोगों में साहित्य के प्रति रुचि नहीं बची है। प्रकाशक भी रुचि नहीं दिखाते हैं। हालत यह है कि साहित्यकारों को अपने खर्च पर पुस्तकें प्रकाशित करानी पड़ती हैं। इसके बाद स्वयं विमोचन भी करवाइये और लोगों को पढ़ने के लिए नि:शुल्क वितरित कीजिये। इतना सब करने के बाद भी लोग उसे नहीं पढ़ते हैं। यह काफी चिंता का विषय है। किसके पास इतनी रकम होगी कि वह अपने पास से इसे छपवाये और लोगों को पढ़वाये। शहर में संचालित पुस्तकालयों और वाचनालयों में पाठकों की रुचि नहीं रही। अब पुस्तकें छोड़ लोग मोबाइल पर टिक गए हैं। इससे भी साहित्य को बहुत नुकसान पहुंचा है। आर्थिक उदारीकरण के बाद से साहित्य भी बाजारवाद का शिकार हो गया। अब बेस्ट सेलर का समय है। इससे भी साहित्य की शुचिता पर असर पड़ा है।
हिन्दी की अलख जगा रही नागरी प्रचारिणी सभा
देवरिया की नागरी प्रचारिणी सभा 110 वर्ष से हिन्दी साहित्य का अलख जगा रही है। 1915 में अपनी स्थापना से अब तक नागरी प्रचारिणी सभा ने लंबी यात्रा की है। इस यात्रा में संस्था ने खूब उतार चढ़ाव देखे। अपनी स्थापना और पाठकों के जुड़ाव से यह सबसे बड़ी सार्वजनिक संस्था बनकर उभरी है, जो लोकतांत्रिक तरीके से अपने प्रतिनिधि चुनती रही है। नागरी प्रचारिणी सभा सबसे पहले वाराणसी में स्थापित हुई थी। इसके बाद स्वाधीनता और राष्ट्रवाद की पोषक लोगों ने जिले में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की।
संस्था हिन्दी साहित्य के विकास में सतत प्रयासरत है। यहां हिन्दी साहित्य का खजाना है। दशकों से जुटाई गई लाखों पुस्तकें लोगों की ज्ञान पिपासा को शांत करती रही है। यहां पर एक समृद्ध वाचनालय है। इसमें देश भर से पत्र पत्रिकाएं आती हैं। सभा ने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वालों को नागरी श्री, नागरी भूषण ओर विश्व नागरी सम्मान से विभूषित करती रही है। विश्व नागरी सम्मान से देश के अलावा विदेश में हिन्दी का कार्य करने वालों को बुलाकर सम्मानित किया जाता है।
28 वर्षों से होती आ रही है शनिवारीय काव्यगोष्ठी: संस्था में वर्ष 1998 में नागरी प्रचारिणी सभा में पूर्व मंत्री इंद्रकुमार दीक्षित, सुधाकर मणि और अन्य की पहल पर द्वितीय शनिवारीय गोष्ठी का शुभारंभ हुआ। यह परंपरा 28 वर्ष से अनवरत जारी है। गोष्ठी के माध्यम से नवोदित रचनाकार अनुभवी कवियों के सामने कविता पाठ करते हैं और उनका समर्थन और सुझाव पाकर अपनी रचनाधर्मिता को और समृद्ध करते हैं।
शिकायतें
1. अब पढ़ने के लिए पत्र पत्रिकायें नहीं मिलती हैं। कोरोना संक्रमण के समय से यह उपलब्धता सीमित हो गई है।
2. स्थानीय कवि और कथाकार को लेकर समाज बहुत गंभीर नहीं है।
3. राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में स्थानीय साहित्यकारों को स्थान नहीं मिलता है।
4. कवि सम्मलेनों में गोलबंदी हो गई है। आयोजक अपने हिसाब से कवियों को बुलाते हैं।
5. पुस्तक प्रकाशन में हुआ खर्च स्वयं वहन करना पड़ता है।
सुझाव
1. तहसील स्तर पर साहित्यिक विमर्श के केंद्र विकसित होने चाहिए।
2. समाज में समर्थ व्यक्ति कवियों की रचनाओं के प्रकाशन में सहयोग करें।
3. पुस्तकालयों का आधुनिक समय के अनुसार डिजिटाइजेशन होना चाहिए।
4. पत्र-पत्रिकाओं की हार्ड कॉपी की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए।
5. बच्चों को साहित्य की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आयोजन होने चाहिए।
हमारी भी सुनिए
साहित्य में लोगों की रुचि कम हो गई है। पाठकों के हिसाब से साहित्य कहीं पीछे छूट रहा है। देवरिया की नागरी प्रचारिणी सभा यह प्रयास करती है कि लोगों को साहित्य से जोड़े रखा जाए। इसके लिए यहां नियमित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। देवरिया की साहित्यिक विरासत काफी समृद्ध है। यहां हिन्दी के साथ भोजपुरी रचनाओं पर भी खूब काम हुआ है। बस इसे संजोने की जरूरत है।
आचार्य परमेश्वर जोशी, अध्यक्ष,नागरी प्रचारिणी सभा
हर तहसील में साहित्यिक विमर्श के केंद्र विकसित हों। राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में स्थानीय कवियों को स्थान नहीं मिलता है। बड़े पत्रों के सम्पादक पहले से छप रहे रचनाकारों को ही महत्व देते हैं।
इंद्रकुमार दीक्षित, पूर्व मंत्री,नागरी प्रचारिणी सभा
गोष्ठी नागरी प्रचारिणी में हर महीने कवि सम्मेलन में विद्वान जुटते हैं पर श्रोता उतने नहीं बचे हैं। जो हैं वो कवि या साहित्यकार ही गोष्ठी में आते हैं।
डॉ. अनिल कुमार त्रिपाठी, मंत्री, नागरी प्रचारिणी सभा
आज का युवा स्थिरभाव से पठन पाठन से विरक्त सा हो गया है। अब लोग पढ़ना कम कर दिए हैं। अर्थ प्रधान युग होने के कारण सृजन और पठन दोनों ही विशेष रूप से प्रभावित हो रहे है।
शुकन्तला दीक्षित
साहित्य में नकारात्मकता, अश्लीलता की स्वीकार्यता बढ़ रही है। इससे शुद्ध साहित्य का ह्रास हो रहा है। आध्यात्मिकता और सकारात्मकता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
अवधेश निगम
लोग स्वत:स्फूर्त ढंग से साहित्य रचना से जुड़े रहे हैं। आपसी आर्थिक सहयोग से साहित्यिक गोष्ठियां संचालित होती हैं। इसमें प्रशासनिक सहयोग मिले तो हम लोगों के लिए बेहतर होगा।
सरोज कुमार पांडेय
पुस्तकें खरीदकर पढ़ने वाले लोग नहीं बचे हैं। इससे साहित्यकारों को पुस्तक छपवाना चुनौती बन गई है। सस्ता मनोरंजन हर हाथ में उपलब्ध होने से साहित्य का पठन-पाठन सीमित हो गया है।
दुर्गा पांडेय
साहित्य मंचों पर चुटकुलों के रूप में परोसा जा रहा है। मंच के अभाव में अच्छे साहित्यकार गुमनाम हैं। सरकार को साहित्यकारों के लिए मंच उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
सीमा पांडेय नयन
स्थानीय साहित्यकारों को योग्यतानुसार उचित मंच और सम्मान मिलना चाहिए। उचित पेशगी से उनका सम्मान किया जाए। इससे अच्छे समाज का निर्माण होगा। सरकार को इसके लिए पहल करना चाहिए।
अंजलि अरोरा
कवि अपने भाव पिरोते हुए समाज का मार्गदर्शन करता है। आज शब्द और भाव दोनों धूमिल होते जा रहे हैं। सरकार हमें उचित मंच उपलब्ध कराए ताकि हम लोग अपनी रचनाओं को पेश कर सकें।
सुनीता सिंह सरोवर
उचित मंच का अभाव है। नए साहित्यकारों को छोटे शहरों में उचित मंच नहीं मिल पाता है। इससे उनकी रचना समाज तक नहीं पहुंच पाती है। सरकार को इसके लिए उचित कदम उठाना चाहिए।
प्रीति पांडेय
देवरिया में साहित्यिक उत्कृष्ट भूमिका में है पर यहां साहित्य के सेवकों को उचित मान सम्मान नहीं मिलता है। इसकी महती आवश्यकता है। सरकार को इसके लिए पहल करनी चाहिए।
प्रार्थना राय
साहित्यकारों को सृजन की उत्कृष्टता पर ध्यान देना चाहिए। राष्ट्रीय समाचार पत्र स्थानीय कवियों और लेखकों पर ध्यान देकर रचनाएं प्रकाशित करें ताकि लोगों तक स्थानीय कवियों की रचनाएं पहंुच सके।
गोपाल त्रिपाठी
साहित्यकारों के सामने बहुत सी चुनौतियां और समस्याएं हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया साहित्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही है। इससे लोगों का नया पढ़ना-लिखना छूट रहा है।
कीर्ति त्रिपाठी
हिन्दी के विकास में व्याकरण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। साहित्यिक की शुद्धता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। वहीं बड़े मंच पर कवियों को स्थान मिले ताकि वे अपनी रचनाओं को रख सके।
रानी दुर्गावती
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