बोले एटा: किस्मत ने शरीर को दिया दुख, डॉक्टरों की मनमानी दे रही दर्द
Etah News - दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया में बाधाएँ आ रही हैं। सप्ताह में सिर्फ एक दिन काम करने वाली चिकित्सा परीक्षण टीम की अनुपस्थिति के कारण आवेदकों को बार-बार लौटना पड़ रहा है। प्रमाण पत्र के लिए...
आज दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाना कोई सामान्य काम नहीं रहा। प्रमाण पत्र बनाने के लिए एक चिकित्सकीय परीक्षण टीम बनी हुई है। यह टीम सप्ताह में सिर्फ एक दिन यानी सोमवार को ही काम करती है। ऐसे में सुबह होते ही दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जिले भर से लोग पहुंच जाते हैं। कई बार तो डाक्टरों की ओर से बनाई गई टीम मौजूद ही नहीं रहती है, जिस कारण आवेदकों की सभी जांच पूरी नहीं हो पाती हैं और अगले सप्ताह आने की सलाह दी जाती है। अब इस बात की भी गारंटी नहीं है कि अगले सप्ताह भी डाक्टर मिलेंगे या नहीं? हिन्दुस्तान बोले एटा अभियान के तहत जब इन लोगों से बात की गई तो कई पीड़ादायक तथ्य सामने आए, जिनका समाधान जरूरी है।
व्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जनपद स्तर पर स्वास्थ्य विभाग ने बोर्ड का गठन किया है। इसमें हड्डी, नेत्र, ईएनटी और मानसिक रोग से ग्रसित दिव्यांगों को जांच कर प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं। वर्तमान बोर्ड में नेत्र, मानसिक रोग चिकित्सक नहीं है। ईएनटी चिकित्सक भी दूसरे जनपद से बोर्ड में शामिल होने आते हैं। मानसिक रोग, नेत्र चिकित्सक न होने से इन दिव्यांगों को जांच के लिए दूसरे जनपद अथवा मेडिकल कालेज में जांच कराकर रिपोर्ट लाने के बाद प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
दिव्यांग बोर्ड में जांच के नाम पर धन वसूली का भी आरोप है। इसमें जांच करने वाले कर्मचारी, दलाल भी सक्रिय रहते है। फिर भी तमाम अनियमितताओं, कमियों के कारण दिव्यांगों को प्रमाण पत्र बनवाने के लिए ऐढ़ी से लेकर चोटी तक पसीना बहाना पड़ रहा है।दिव्यांग बोर्ड में सर्वाधिक हड्डी, नेत्र संबंधी आते दिव्यांग: एसीएमओ डा. राममोहन तिवारी ने बताया कि दिव्यांग बोर्ड में प्रमाण पत्र बनवाने आने वालों में अधिकांश हड्डी और नेत्र रोग संबंधी होते है। इसके लिए जनपद में हड्डी चिकित्सक की उपलब्धता है।
बोर्ड में नेत्र चिकित्सक न होने पर मेडिकल कालेज में भेजकर जांच करायी जा रही है। ईएनटी चिकित्सक से जांच करायी जा रही है। जांच के लिए मशीन की जरूरत पड़ने पर दिव्यांग को दूसरे जनपद भेजना पड़ता है। ईएनटी जांच संबंधी मशीन विभाग में नहीं है। मानसिक रोग चिकित्सक न होने पर ऐसे दिव्यांगों को जांच के लिए आगरा मेंटल हॉस्पिटल जांच के लिए भेजा जाता है। जहां से जांच रिपोर्ट आने पर प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है। सप्ताह में जांच कर दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
दिव्यांग बोर्ड में अतरौली से आते है ईएनटी चिकित्सक
हर सोमवार को आयोजित होने वाले दिव्यांग बोर्ड में ईएनटी चिकित्सक अलीगढ़ के अतरौली से एटा आते हैं। बोर्ड में शामिल होने के लिए वह दोपहर तक कार्यालय में पहुंचते हैं। उसके बाद ईएनटी संबंधी आवेदनों पर दिव्यांगता की जांच कर रिपोर्ट देते हैं। अतरौली में तैनात ईएनटी चिकित्सक जनपद के अलीगंज के रहने वाले है, इसलिए शासन ने उनको एटा जनपद के दिव्यांग बोर्ड से जोड़ रखा है।
ये कहना है इनका
दो-तीन महीने से प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आ रहे हैं। कभी आवेदन पत्र में कभी, कभी डाक्टर के न आने से वापस लौटना पड़ता है। सुबह से आकर जांच कराने के लिए कर्मचारी को नाम लिखा देते हैं। दोपहर तक लाइन में लगने के बाद जब नंबर आता है। तब जांच के नाम पर अन्यत्र रेफर कर दिया जाता है।
-रेखा, दिव्यांग, मनसुखपुर (एटा)
दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे रोडवेज बसों में यात्रा निशुल्क हो जाती है। इसके लिए 40 प्रतिशत से अधिक का दिव्यांग प्रमाण पत्र जरूरी होता है। जांच में डाक्टर 40 से कम दिव्यांगता होने पर प्रमाण पत्र न बनने की कहकर वापस लौटा देते है। इसके बाद भी यदि कार्यालय में घूमने वाले लोगों को पैसे दे दो तो प्रमाण पत्र बन जाएगा।
-तनीषा, दिव्यांग, रामनगर
प्रमाण पत्र बनवाने के लिए दिव्यांग को कम से कम एक से डेढ़ हजार रुपये खर्च करने पड़ते है। सबकुछ ठीकठाक रहने पर एक-दो बार आने पर प्रमाण पत्र बन जाता है। आवेदन में कोई कमी या दिव्यांगता का प्रतिशत कम होने पर लौटना पड़ता है। इस स्थिति में दिव्यांग व उनके परिजनों को काफी मायूसी का सामना करना पड़ता है।
-सरोज,दिव्यांग,रामनगर (एटा)
जनपद स्तर पर दिव्यांगों के विभिन्न संगठन संचालित हो रहे है। संगठन के माध्यम से भी प्रमाण पत्र बनवाने का प्रयास किया। फिर भी प्रमाण पत्र नहीं बन पाया। अब स्वयं ही बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत होकर प्रमाण पत्र बनवाने का प्रयास कर रहे है। दो बार से कार्यालय के चक्कर लगा रहे है। आज भी डाक्टर नहीं आये है।
-हीरेश कुमार, दिव्यांग, करमचंद्रपुर
प्रमाण पत्र बनवाने के लिए कई-कई बार चक्कर लगा रहे है। कार्यालय के लोग हर बार कोई न कोई कमी निकालकर वापस लौटा देते हैं। फिर भी कर्मचारी प्रमाण पत्र बनवाने की औपचारिकता पूरी कराने के नाम पर पैसे की मांग करते हैं। गरीब होने के कारण वह कर्मचारियों की मांग पूरी नहीं कर पाती है।
-कुसमा, दिव्यांग, छछैना (एटा)
सप्ताह में एक दिन सोमवार को दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने को बोर्ड लगता है। इसमें में भी जांच के लिए एक-दो डाक्टर ही आते हैं। बोर्ड में एक ही डाक्टर हड्डी वाले आते है। अन्य तरह के दिव्यांगों के जांच के लिए अन्यत्र भेजा जाता है। बाहर से जांच कराकर रिपोर्ट लाने में दो से तीन सप्ताह का समय लगता है।
-रीना, दिव्यांग, जेएलएन डिग्री कालेज
दिव्यांग बोर्ड में डाक्टर को दिखाने के लिए लंबी लाइन लगती है। सुबह नौ बजे से आकर लाइन में लगे हुए है। दोपहर में बताया गया है कि ईएनटी डाक्टर छुट्टी पर है। बताया गया है कि दो-तीन दिन के अवकाश पर है। अब उनको प्रमाण पत्र के लिए डाक्टर के छुट्टी से वापस आने का इंतजार करना पड़ेगा।
-सुषमा, दिव्यांग, मनसुखपुर (एटा)
दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया को सरकार और आसान करे। इस जटिल प्रक्रिया की वजह से परेशान होकर कई दिव्यांग बिना प्रमाण पत्र बनवाये ही वापस लौट जाते है। ऐसे लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है। इस तरह के परेशान दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जनप्रतिनिधियों से भी गुहार लगाते है।
-संगीता, दिव्यांग,सुनहरीनगर (एटा)
पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करने के बाद कार्यालय में दिव्यांगता की जांच कराने के लिए आये है। सुबह नौ बजे कार्यालय आ गये थे। 12 बज गये है। अभी तक डाक्टर साहब नहीं आये है। उनके इंतजार में बैठे है। डाक्टर साहब आये तब उनकी जांच करेंगे। उनकी सहमति के बाद ही दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी होने का कार्य आगे बढ़ेगा।
-रवि, दिव्यांग, सुनहरीनगर (एटा)
प्रमाण पत्र बनवाने लिए कार्यालय के लगातार चक्कर लगा रहे है। हर बार कोई न कोई कमी निकल आने पर लौटना पड़ रहा है। एक बार में सभी औपचारिकताओं के बारे में जानकारी देने वाला कोई नहीं है। अपने आप ही सब प्रक्रिया पूर्ण कराने का प्रयास कर रहे है। आज भी आने के बाद जांच होने का इंतजार कर रहे है। जांच हो जाये तो प्रमाण पत्र बनने के बारे में जानकारी हो सकेगी।
-शिशुपाल, दिव्यांग, सुन्ना (एटा)
मानसिक रूप से दिव्यांग होने पर जांच के लिए आगरा के मेंटल अस्पताल भेज दिया जाता है। आगरा जाकर जांच कराने में भी उनके एक से दो हजार रुपये खर्च हो जाते है। इसलिए अधिकांश लोग कार्यालय में घूमने वाले लोगों को पैंसा देकर प्रमाण पत्र बनवाना ही सुलभ समझते हैं। इसलिए वह भी ऐसे ही लोगों की तलाश में है। जिससे उनका जल्दी प्रमाण पत्र बन जाये।
-नेत्रपाल सिंह, दिव्यांग, नगला टपुआ (एटा)
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