दिव्यांग उपकरण मामले में पूर्व विधायक समेत आरोपितों को नहीं मिली राहत
Farrukhabad-kannauj News - फर्रुखाबाद में दिव्यांग उपकरण मामले में पूर्व विधायक लुईस खुर्शीद सहित आरोपितों को कोर्ट से राहत नहीं मिली है। आरोपों से बरी होने के लिए दी गई प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया गया। जांच में फर्जी कैंप...

फर्रुखाबाद, संवाददाता। दिव्यांग उपकरण मामले में कांग्रेस नेत्री पूर्व विधायक लुईस खुर्शीद समेत आरोपितों को कोर्ट से राहत नही मिल सकी है। आरोपों से बरी होने के दिये गये प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया गया है। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में आरोपितों की ओर से आर्थिक अनुसंधान संगठन लखनऊ के निरीक्षक की ओर से 10 जून 2017 को डॉ.जाकिर हुसैन ट्रस्ट के सदस्य प्रत्युश शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था। आरोप था कि दिव्यांग उपकरण वितरण के लिए फर्जी कैंप लगाकर सरकारी धन का गवन किया गया। जांच में ट्रस्ट की परियोजना निदेशक लुईस खुर्शीद और अतहर फारुकी का नाम सामने आया। निरीक्षक ने दोनों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। पूर्व में ही इसकी बहस पूरी हो चुकी है। मामले में एक अन्य आरोपित प्रत्युश शुक्ला की मृत्यु हो चुकी है। कोर्ट में आरोपों से बरी होने के लिए आरोपितों की ओर से एक प्रार्थना पत्र दिया गया। इसमें कहा गया कि राजनीतिक द्वेषवश गलत फंसाया गया है। डॉ.जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट दिव्यांगजन की मदद और जन कल्याण की सहायता के लिए स्थापित किया गया है। ट्रस्ट 4 अप्रैल 2007 से पांच वर्षो के लिए वैध था। इसमें दिव्यांगजनो के लिए उपकरणों की खरीद की जानी थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट में केवल एक आरोपित प्रत्युश शुक्ला का नाम है और वर्तमान आरोपितों के खिलाफ साजिश रचने का कोई उल्लेख प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंकित नही है। प्रथम सूचना रिपोर्ट के सूचनाकर्ता निरीक्षक रामसिंह यादव ने प्रत्युश शुक्ला के खिलाफ जाली दस्तावेज के हेर फेर करने और भारत सरकार को भेजने के आरोप लगाये थे। शासन के आदेश के क्रम में एसबीआई में एक संयुक्त खाता खोला गया था इसमें उन लोगों के हस्ताक्षर से कोई लेन देन नही किया गया और सभी लेन देन चेक से किया गया। इसलिए धोखाधड़ी और जालसाजी का कोई सवाल नही है। अभियोजन पक्ष ने भी तर्क रखा था कि 29 मई 2010 को दिव्यंाग व्यक्तियों की सहायता और उपकरण वितरित करने के लिए कायमगंज में कोई शिविर आयोजित नही किया गया था और न ही चेक लिस्ट पर तत्कालीन तहसीलदार मोहन सिहं और सीएमओ पीके पोरवाल के जाली हस्ताक्षर और अधिकारिक मोहर लायी गयी थी। विवेचक की ओर से तहसीलदार मोहन सिंह और सीएमओ पोरवाल का न तो बयान अंकित किया गया और न ही अभियोजन गवाह बना गया। जब यह तथ्य सामने आया कि हस्ताक्षर और अधिकारिक मोहर असली है या जाली तो जांच अधिकारी को मजिस्ट्रेट के समक्ष हस्ताक्षर का नमूना एकत्र करना चाहिए था। मगर विवेचक की ओर से ऐसा कुछ नही किया गया। अभियोजन प्रपत्र के अनुसार प्रत्युश शुक्ला की ओर से पूरा हेर फेर किया जाना प्रदर्शित होता है। ऐसे में आरोपितों की ओर से स्वयं को उन्मोचित किए जाने की याचना की गयी। न्यायाधीश ने अभियुक्तों की ओर से प्रस्तुत उन्मोचन प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया है। आरोप तय करने को अब 21 अप्रैल को पेश होने का आदेश दिया गया है।
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