ऐसे ही लापरवाह रहे तो कैसे उतरेगा धरती का कर्ज
Farrukhabad-kannauj News - फर्रुखाबाद, कार्यालय संवाददाता। ‘पृथ्वी शब्द की व्यापकता किसी से छिपी नही है। इसमें न

फर्रुखाबाद, कार्यालय संवाददाता। ‘पृथ्वी शब्द की व्यापकता किसी से छिपी नही है। इसमें न सिर्फ जल, हरियाली, वन्य प्राणी, प्रदूषण हैं बल्कि इससे जुड़े अन्य कारक भी हैं। धरती को बचाने का आशय इसकी रक्षा के लिए पहल करना है। मगर दुखद बाद यह है कि न तो इसके लिए कभी सामाजिक जागरूकता दिखायी गयी और न ही राजनीतिक स्तर पर। किसी एक दिन को ही माध्यम बनाया जाये यह कहना उचित नही है। हम हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसे बचाव के लिए कोई न कोईउपाय जरूर खोजते रहना चाहिए। हैरानी की बात है कि हर साल हम पृथ्वी दिवस मनाते हैं मगर उसके संरक्षण की शिा मे ेंजो कारक हैं उस पर गौर नही करते हैं। अपने जनपद की ही बात करें तो पर्यावरण की रक्षा करने की बजाय उससे दुश्मनी निकालते हुये हरे पेड़ों को धड़ाधड़ काटा जा रहा है। कहीं कालोनी बनाने के चक्कर में तो कहीं हाईवे बनाने के पेच में अवरोध आ रहे हरे पेड़ों को देखते ही देखते नष्ट किया जा रहा है। राट्रीय राजमार्ग के निर्माण में करीब 40 हजार से अधिक पेड़ नेस्तनाबूत कर दिये गये। यह ऐसे पेड़ थे जो कि हाईवे कि किनारे हरियाली का वातावरण बनाये थे। नए पेड़ों को लगाने का तो दावा किया जा रहा है मगर हकीकत में पेड़ों की रक्षा करने की जो जिम्मेदारी है उसको जिम्मेदार ही भूल रहे हैं। कागजो में हर साल लाखों पौधे लगाने का दावा तो कर दिया जाता है। मगर इन पेड़ों का संरक्षण कौन करेगा इस पर प्लानिंग बनाने पर काम नही हो रहा है। वृहद स्तर पर जहां पर पिछले तीन वर्षो में जहां पर वृहद स्तर पर पौध रोपण कराया गया थ उम्मीद थ्ी कि हरियाली का वातावरण बनेगा पर इसकी वानगी शहर से सटे नेकपुर खुर्द का वह बगीचा है जहां पर 50 फीसदी से अधिक पेड़ों का अता पता ही नहीं रहा। राजेपुर ब्लाक के बिजलीघर के पास भी पौधरोपण की हकीकत देखी जा सकती है।यहां पर भी सैकड़ों की तादाद में पौधे हरियााली कायम रखने के मकसद से लगाये गये थे।इनमें भी अधिकतर पौधे कहां गये हैं इसका भी हिसाब किताब नही है। दिशा की बैठक में अभी पिछले दिनों ही वन विभाग के दिये गये आंकड़ों से खुद जनप्रतिनिधि तक संतुष्ट नही हुये थे।आखिरकार जनप्रतिनिधियों को कहना पड़ा कि जहां जहा पौधरोपण कराया गया है वहां वहां भ्रमण तो करा लिया होता। ऐसे में यह कहना गलत नही होगा कि पृथ्वी के संरक्षण में जागरूकता का भारी अभाव है। उचित स्तर पर कदम नही उठाये जा रहे हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए पॉलीथिन के उपयोग को नकारने पर को शासन का विशेष जोर है। फिर भी जिम्मेदारों की लापरवाही से पॉलीथिन से भी धरती का आंचल भी मैला हो रहा है।एक दो बार जब शासन स्तर से कड़ाईहोती हैतो अभियान चलाकर लकीर पीट दी जाती है।
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