सुविधाएं न मिल पाने से पहलवान हो रहे चारों खाने चित
अपने एक दांव से किसी को भी चारों खाने चित कर देने वाले ब्रज की द्वारा देहरी कहे जाने वाले हाथरस जिले के पहलवान सुविधाएं न मिल पाने से परेशान हैं। पहलवान कुश्ती में दम दिखाने के लिए रोजाना अखाड़े जाते हैं। कड़ी प्रेक्टिस करके घंटों पसीना बहाते हैं। उम्मीद बस यही रहती है कि उनकी ये मेहनत रंग लाए।
सुविधाओं के अभाव में ऐसे पहलवान कुश्ती से किनारा कर लेते हैं। हिन्दुस्तान के अभियान ‘बोले हाथरस’ के तहत बुधवार को हिन्दुस्तान टीम से बात करते युवा पहलवानों ने अपनी परेशानियां साझा कीं। कहा कि पहलवानों को भी क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह सुविधाएं मिलनी चाहिए। जिला स्टेडियम में पहलवानों के लिए अलग से हॉस्टल बनना चाहिए। पहलवानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए प्रो रेसलिंग लीग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाना चाहिए।
ब्रज की द्वारा देहरी होने की वजह से हाथरस जिले का कुश्ती के खेल से पुराना नाता है। कृष्णा पहलवान और सोनू पहलवान ने बताया कि एक दौर ऐसा भी था। जब गांवों में घर-घर लोगों को पहलवानी का शौक था। पिता अपने बेटे को कुश्ती के दांव पेंच सिखवाने के लिए अखाड़े ले जाते थे। युवा पहलवान अखाड़े में कुश्ती के पैतरें सीखने के लिए घंटों पसीना बहाते थे। मल्ल युद्ध कला सीखने के लिए दिन रात अखाड़े में जमें रहते थे। अब समय के साथ कुश्ती का तरीका भी बदल रहा है। पहले अखाड़ों में मिट्टी पर कुश्ती हुआ करती थी। अब मिट्टी की जगह मैट ने ले ली है। कुश्ती की सभी प्रतियोगिताएं अब मैट पर होती है। धीराज पहलवान और हनी पहलवान ने बताया कि पहलवानों के लिए पारंपरिक दंगलों की संख्या भी सीमित रह गई है। इसलिए जिले के पहलवानों को आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ रहा है। कुश्ती के खेल में दम दिखाकर परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं। इसलिए पहलवानों में निराशा का भाव है। भूरा पहलवान और गोपाली पहलवान ने बताया कि अधिकांश पहलवान ग्रामीण अंचल से आते हैं। इनमें ज्यादातर पहलवानों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मैट के जमाने में पहलवानों को मिट्टी में पसीना बहाना पड़ रहा है। डाइट के लिए भी बहुत बेहतर इंतजाम नहीं हैं। पहलवानों ने कहा कि गांवों में भी मैट पर कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे युवा खिलाड़ियों को बहुत फायदा मिलेगा।
तीन विधानसभा सीटों वाले हाथरस जिले में छोटे बड़े करीब 1500 पहलवान हैं। इनमें अधिकांश युवा पहलवानी के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना चाहते हैं। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर देश-प्रदेश का नाम रोशन करना चाहते हैं। लेकिन सुविधाओं के अभाव में उनके सपने चकनाचूर हो रहे हैं। अखाड़े में कड़ी मेहनत करने के बाद भी पहलवान अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। बातचीत में युवा पहलवानों ने सरकार और खेल मंत्रालय से मांगें उठाई हैं। उन्होंने कहा कि हाथरस में लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम की जरूरत है। जिले में जो स्टेडियम है। वहां सुविधाएं बढ़ाए जाने की जरूरत है। स्टेडियम में पहलवानों के लिए हॉस्टल का निर्माण होना चाहिए। कुश्ती सीखने वालों पहलवानों के लिए भी जिम के सामान का इंतजाम होना चाहिए। पहलवान आर्थिक रूप से संपन्न बन इसके लिए नियमित कुश्ती प्रतियोगिताएं आयोजित होनी चाहिए। गांवों के नजदीक मिनी स्टेडियमों का निर्माण होना चाहिए। जहां मैट पर युवा पहलवानों को कुश्ती के गुण सिखाए जाएं। प्रतियोगिता जीतने वाले पहलवानों को नकद पुरस्कार मिलना चाहिए। जिससे वह अपनी डाइट और अन्य जरूरतों को पूरा कर सकें। उन्हें किसी पर आश्रित न रहना पड़े।
कुश्ती खिलाड़ियों को मिले हॉस्टल की सुविधा
जिले में कुश्ती खिलाड़ियों की प्रेक्टिस एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में होती है। देहात के युवा कुश्ती के दांव पेंच सीखने के लिए स्टेडियम पहुंचते हैं। स्टेडियम आने जाने में युवा पहलवानों का अच्छा खासा खर्चा हो जाता है। ऐसे में युवा पहलवानों ने स्टेडियम में कुश्ती खिलाड़ियों के लिए अलग से हॉस्टल बनाए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि हॉस्टल बन जाने से युवाओं का आने जाने का खर्च और समय बच जाएगा। हॉस्टल स्टेडियम परिसर में होगा तो वह कुश्ती सीखने में ज्यादा समय दे पाएंगे। हर समय कुश्ती कोच के संपर्क में रह पाएंगे। हॉस्टल खुलने से युवा कुश्ती खिलाड़ियों को बुहत फायदा मिलेगा।
पदकवीर कुश्ती खिलाड़ियों को मिले सरकारी नौकरी
पहलवानों ने पदकवीर कुश्ती खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि बहुत सारे पहलवान ऐसे हैं। जिन्होंने प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं। इसके बाद भी उन्हें इतनी मेहनत का बड़ा लाभ नहीं मिल पाया। उन्होंने कहा कि जो खिलाड़ी जिला स्तर पर प्रतियोगिता में पदक जीतें। उन्हें चतुर्थ श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जाए। जो खिलाड़ी राज्य स्तर पर पदक जीतें। उन्हें तृतीय श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जाए। जो कुश्ती खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतें। उन्हें प्रथम और द्वितीय श्रेणी की सरकारी नौकरी प्रदान की जाए। ऐसा होने से युवा खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन होगा।
गांवों में बने मिनी स्टेडियम, मैट का हो इंतजाम
समय के साथ कुश्ती का स्वरूप भी बदल गया है। पहले पहलवान मिट्टी पर दम दिखाते थे। कुश्ती प्रतियोगिताएं भी कच्ची मिट्टी पर होती थी। अब ऐसा नहीं होता है। अब सभी पेशेवर प्रतियोगिताएं मिट्टी के बजाय मैट पर होती हैं। इसलिए जिले के युवा पहलवान भी मिट्टी के बजाय मैट पर पसीना बहाना चाहते हैं। उनका कहना है कि कुश्ती के खेल को बढ़ावा देना है तो गांवों के आसपास मिनी स्टेडियम बनाने होंगे। वहां पहलवानों के लिए मैट का इंतजाम करना होगा। कोच की तैनाती करनी होगी। युवा खिलाड़ी जब रोजाना मैट पर प्रेक्टिस करेंगे। तो उनके प्रदर्शन में निखार आएगा। मैट पर दांव पेंच सीखने के बाद वो आसानी से पदक जीत पाएंगे।
इन क्षेत्रों में होते हैं दंगल, पहलवान दिखाते हैं दम
हाथरस जिले में अभी दंगल की परंपरा बरकरार है। ग्रामीण अंचल के कुछ इलाकों में पर हर साल दंगल होते हैं। देश के कोने-कोने से आकर पहलवान दंगलों में भाग लेते हैं। शहर के प्राचीन किला स्थित मंदिर श्रीदाऊजी महाराज पर आयोजित होने वाले लक्खी मेले में छह दिवसीय अखिल भारतीय कुश्ती दंगल का आयोजन होता है। इसके अलावा होली के बाद जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित होने वाले मेला फूल डोल में भी दंगल प्रतियोगिता होती है। श्रावण मास में पड़ने वाले प्रत्येक रविवार को मैंडू स्थित प्राचीन भैरों बाबा के मंदिर पर लगने वाले मेले के दंगल में भी पहलवान अपना दमखम दिखाते हैं। इसके अलावा शहर के गोशाला रोड स्थित प्राचीन अटलटाल बगीची के अलावा अन्य शहर के अखाड़ों पर समय-समय पर दंगल का आयोजन किया जाता है। युवा पहलवानों ने बताया कि दंगल में इनामी धनराशि जीतने के लिए पहलवान साल भर दंगल प्रतियोगिता का इंतजार करते हैं। दंगल जीतने के बाद जो धनराशि पुरस्कार के रूप में मिलती है। पहलवान उसी से अपनी डाइट और घर गृहस्थी चलाने का इंतजाम करते हैं।
जिले में किया जाए प्रो रेसलिंग लीग का आयोजन
युवा पहलवानों के सामने सबसे बड़ी परेशानी आर्थिक अभाव की है। उन्होंने कहा कि अधिकांश युवा पहलवान मध्यमवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। ग्रामीण अंचल से जुड़े इन युवाओं के पास खेती बाड़ी भी बहुत ज्यादा नहीं है। ऐसे में उन्होंने मांग उठाई है कि जिले में नियमित रूप से कुश्ती प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाए। साथ ही महानगरों की तर्ज पर प्रो रेसलिंग लीग की प्रतियोगिताएं आयोजित हों। जिससे पहलवानों को उन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिले। पहलवान अपना दमखम दिखाकर पुरस्कार राशि जीत पाएं। इस तरह के आयोजनों से पहलवानों को बड़ी राहत मिलेगी। आर्थिक संकट भी खत्म हो जाएगा।
इन युवा खिलाड़ियों ने जीते हैं पदक
जिले के युवा कुश्ती खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया है। इनमें हरकेश पहलवान 11 बार भारत केसरी रहे। सादाबाद के कुरसंडा मोड़ स्थित भारत केसरी हरकेश पहलवान के अखाड़े के शेरा गुर्जर देश के अलग-अलग राज्यों में आयोजित कुश्ती की कई बड़ी प्रतियोगिता जीत चुके हैं। इसी अखाड़े के कई कुश्ती खिलाड़ी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त किया है। इसके अलावा भी कुश्ती के कई सीनियर खिलाड़ी भी हैं। जिन्होंने अपनी मल्ल विद्या के दम पर अलग पहचान बनाई। कुश्ती के खेल में जिले का नाम रोशन किया ।
हाथरस में हो अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण
जिले के खिलाड़ी लंबे समय से हाथरस में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण किए जाने की मांग कर रहे हैं। खिलाड़ियों का कहना है कि हाथरस में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण होने से सभी खेलों के खिलाड़ियों का फायदा मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देंगे तो उनके खेल में निखार आएगा। खिलाड़ियों को बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा। मिलने वाली सुविधाओं में भी इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि हाथरस में भाजपा के सांसद, दो विधायक, एमएलसी, चेयरमैन, जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। यदि सभी सामूहिक रूप से प्रयास करें तो हाथरस को अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की सौगात मिल सकती है।
पूर्व विधायक रहे हैं भारत केसरी
शहर के गौशाला रोड़ स्थित प्राचीन अखाड़ा अटलताल से कई ऐसे पहलवान निकले। जिन्होंने कुश्ती के खेल में जिले से लेकर देश भर में प्रतियोगिता जीतकर परचम लहराया। इसी में से एक भाजपा के पूर्व विधायक राजवीर पहलवान जिला सहित प्रदेश और देश में कुश्ती के खिले में जिले के नाम रोशन किया है। पूर्व विधायक राजवीर पहलवान भारत केशरी रहे हैं।
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