103-Year-Old Prisoner Released After 48 Years in Jail for Murder 48 साल बाद जेल से रिहा हुआ 103 साल का वृद्ध, Kausambi Hindi News - Hindustan
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48 साल बाद जेल से रिहा हुआ 103 साल का वृद्ध

Kausambi News - जिला कारागार से 103 साल के कैदी लखन की रिहाई हुई है। लखन 1977 में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा था। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की पहल पर उसे रिहा किया गया। जेल प्रशासन ने उसे...

Newswrap हिन्दुस्तान, कौशाम्बीTue, 20 May 2025 10:46 PM
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48 साल बाद जेल से रिहा हुआ 103 साल का वृद्ध

जिला कारागार से मंगलवार को आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 103 साल के कैदी की रिहाई हो गई है। हत्या के मामले में बुजुर्ग को सजा हुई थी। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की पहल पर वृद्ध को जेल से रिहा किया गया। जेल प्रशासन ने वृद्ध को सुरक्षित घर तक पहुंचाया है। कौशाम्बी थाना क्षेत्र के लखन पुत्र मंगली ने वर्ष 1977 में गांव के ही एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। पुलिस ने लखन को पकड़कर जेल भेज दिया था। मामले में लखन को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। लखन को रिहा कराने के लिए उसके परिजन 48 साल से परेशान थे, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी।

परिजनों ने इस मामले में जेल अधीक्षक अजितेश कुमार से गुहार लगाते हुए बताया कि कैदी की उम्र 103 साल हो चुकी है। मानवीय आधार पर कैदी को रिहा किया जाना चाहिए। जेल अधीक्षक ने मामले को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव पूर्णिमा प्रांजल के संज्ञान में लाया। यह भी बताया गया कि प्रयागराज कचहरी के लिपिकों की वजह से रिहाई में अड़चन आ रही है। सचिव ने इसे गंभीरता से लिया और प्रकरण में आगे की कार्रवाई के लिए लीगल एडवाइजर अंकित मौर्य को नियुक्त करते हुए हाईकोर्ट में अपील करने के लिए कहा। अंकित मौर्य ने अपील दाखिल की। साथ ही पूरे मामले को सीएम योगी आदित्यनाथ और कानून मंत्री को पूरे प्रकरण की जानकारी देते हुए पत्र भेजा। हाईकोर्ट ने रिहाई का आदेश जारी किया। मंगलवार को जेल अधीक्षक अजितेश कुमार, लीगल एडवाइजर अंकित मौर्य की मौजूदगी 103 साल के कैदी को रिहा किया गया। कैदी को जेल प्रशासन ने सुरक्षित घर तक भिजवाया है। कैदी को देखते ही परिजनों की आंख में आ गए आंसू 103 साल के कैदी ने अपनी आधी उम्र जेल में बिता दी। वह 48 साल जेल में था। मंगलवार को लखन जेल से घर पहुंचा तो परिजनों की आंख में आंसू आ गए। लखन भी भावुक था। लखन की उम्र का गांव में कोई साथी नहीं बचा था। परिवार के लोग जो जेल में मिलने जाते थे, वही जानते थे। परिवार के तमाम सदस्य ऐसे थे, जिन्हें न तो लखन जानता है, न ही उसके परिजन। मंगलवार को सब आमने-सामने हुए तो खुशी के आंसू नहीं रोक सके।

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