Nurses in Lucknow Struggle with Staffing Shortages and Working Conditions बोले लखनऊ: नर्स को समान काम का समान वेतन मिले, Lucknow Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsLucknow NewsNurses in Lucknow Struggle with Staffing Shortages and Working Conditions

बोले लखनऊ: नर्स को समान काम का समान वेतन मिले

Lucknow News - लखनऊ में नर्सें रोगियों की देखभाल के साथ-साथ परिवार की जिम्मेदारियों का भी निर्वहन कर रही हैं। नर्सों के 12485 स्वीकृत पदों में से 6460 खाली हैं, जिससे मरीजों को इलाज में कठिनाई हो रही है। नर्सों की...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊTue, 13 May 2025 04:20 AM
share Share
Follow Us on
बोले लखनऊ: नर्स को समान काम का समान वेतन मिले

लखनऊ। सेवा, समर्पण व संवदेना यह तीनों एक नर्स की पहचान हैं। रोगियों की सेवा के साथ दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं। दिन और रात रोगियों की देखभाल के साथ ही परिवार संभाल रही हैं। परिवार के साथ ही अस्पताल प्रशासन, रोगी और तीमारदार के बीच सामांजस्य बनाकर चलने वाली नर्सों की समस्याएं सुनने वाला कोई नहीं हैं। 20 से 25 वर्ष से पदोन्नति नहीं हुई। गृह जिले में तैनाती, चिकित्सा संस्थानों के समान भत्ते, अस्पताल में पालना घर, अस्पताल में सुरक्षा समेत कई दिक्कतें हैं। नर्स इनके समाधान के लिये कई वर्ष से संघर्ष कर रही हैं। 1965 में अन्तरराष्ट्रीय नर्स दिवस की शुरूआत हुई।

जनवरी 1974 में 12 मई की तारीख नर्स दिवस के लिये तय की गई। फ्लोरेंस नाइंटेगल के 12 मई के जन्मदिवस पर यह दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम-हमारी नर्सें, हमारा भविष्य है। 12485 में 6460 पद खाली यूपी के सरकारी अस्पतालों में नर्सों के 12485 पद स्वीकृत हैं। इनमें भी महज 6025 पद पर ही नर्सें काम कर रही हैं। 6460 पद खाली पड़े हैं। 50 प्रतिशत से अधिक पद खाली होने का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। केजीएमयू, पीजीआई, लोहिया व कैंसर समेत दूसरे चिकित्सा संस्थानों में भी नर्सों की कमी है। नर्सों पर काम का दबाव है। ऐसे में मरीजों को समुचित इलाज मुहैया कराने में नर्सों को अड़चन आ रही है। इलाज का इंतजार वार्ड में भर्ती मरीजों को इलाज का इंतजार करना पड़ रहा है। डॉक्टर मरीजों को दवा, ड्रेसिंग व जांच आदि लिखकर जाते हैं। इन सभी की तैयारी करना नर्सों की जिम्मेदारी है। काम का दबाव अधिक होने से नर्सों को सभी मरीजों तक पहुंचने में काफी देर लग जाती है। नतीजतन मरीजों को एक से दो दिन में जांच हो पाती है। समय पर मरीजों को दवाएं मुहैया कराने में भी दिक्कत हो रही है। हालात यह है कि तीमारदारों को ग्लूकोज की बोतल बंद करना, मरीज को दवा खिलाना जैसे काम करने पड़ रहे हैं। मानकों का उल्लंघन राजकीय नर्सेस संघ के महामंत्री अशोक कुमार ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में एक समय में तीन बेड पर एक नर्स की तैनाती का मानक है। यानी 24 घंटे में एक बेड पर तीन नर्सों की तैनाती होनी चाहिए। बैकअप में भी नर्स रखने का नियम है। 200 बेड पर आठ सीनियर नर्सिंग ऑफिसर होने चाहिए। 1000 बेड पर सात असिस्टेंट नर्सिंग सुपरीटेंडट की तैनाती होनी चाहिए। 100 बेड पर एक असिस्टेंट नर्सिंग सुपरीटेंडट होना चाहिए। 300 बेड पर एक डिप्टी नर्सिंग सुपरीटेंडट होना चाहिए। 500 बेड पर एक चीफ नर्सिंग ऑफिसर होना चाहिए। आईसीयू-वेंटिलेटर यूनिट में भी बदइंतजामी केजीएमयू में करीब 350 वेंटिलेटर बेड हैं। लोहिया संस्थान 120 से ज्यादा वेंटिलेटर हैं। पीजीआई 150 से अधिक वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। जनरल ही नहीं आईसीयू-वेंटिलेटर व एचडीयू जैसे वार्डों में भी मानकों का पालन नहीं हो रहा है। एक बेड पर एक नर्स होनी चाहिए। लेकिन तीन से चार बेड की जिम्मेदारी एक नर्स पर है। ऑक्सीजन सपोर्ट पर भर्ती मरीजों की देखभाल का हाल भी कुछ ऐसा ही है। इससे गंभीर मरीजों की नर्सिंग केयर में दिक्कत आ रही है। सबसे ज्यादा दिक्कत तो सरकारी अस्पतालों के मरीजों को झेलनी पड़ रही है। मेडिकल संस्थानों में हालात कुछ बेहतर हैं। बदहाल है इंतजाम महामंत्री अशोक कुमार का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की बड़ी वजह नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की कमी। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। इंजेक्शन से लेकर दवा तक के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। ओपीडी में ब्लड प्रेशर की माप तक के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। ऑपरेशन थिएटर का भी पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं है। संविदा के भरोसे इलाज सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं संविदा कर्मचारियों के भरोसे हैं। बड़ी संख्या में नर्स संविदा व आउटसोर्सिंग पर तैनात हैं। हालात यह हैं कि नियमित से ज्यादा संविदा पर नर्स तैनात हैं। बेहद कम वेतन पर नर्सों की तैनाती की गई है। महामंत्री अशोक कुमार ने बताया कि संविदा व आउटसोर्सिंग पर नर्सिंग भर्ती बंद होनी चाहिए। इनके स्थान पर नियमित भर्ती के रास्ते खोले जाएं। नए अस्पतालों में पद सृजित नहीं गुजरे पांच सालों के दौरान बड़ी संख्या में सामुदायिक, प्राथमिक व 100 बेड के अस्पताल खोले गए हैं। अस्पतालों में आईसीयू जैसी सुविधाएं भी बढ़ाई गई हैं। पुराने अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाई जा रही है। इन सबसे इतर नए पदों का सृजन तक नहीं किया जा रहा है। नतीजतन पुराने पदों से ही काम चलाया जा रहा है। नर्सों के पद न खत्म किए जाएं महामंत्री अशोक कुमार ने कहा कि सरकार, शासन प्रशासन लगातार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधीन संचालित जिला स्तरीय अस्पतालों को चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन चिकित्सा संस्थानों व स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालयों से संबद्ध करती जा रही है। कई अस्पतालों को संबद्ध कर दिया गया है। कई अस्पताल संबद्धता की कतार में हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में कार्यरत नर्सेज को पद समेत कार्यमुक्त किया जाए। पूर्व से संचालित मेडिकल कॉलेजों जैसे प्रयागराज, गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर, आगरा, झांसी, मेरठ की तरह से ही यथावत कार्य करने के लिए पृथक से शासकीय आदेश जारी किया जाए। सृजित पदों को किसी भी दशा में खत्म न किया जाए। नर्सें हो रही बीमार मरीजों को राहत पहुंचाने वाली नर्सें बीमारी की शिकार हो रही हैं। काम का दबाव झेल रही नर्सों को बदन दर्द, गर्दन में पीड़ा झेल रही हैं। थकान, लंबे समय तक खड़े रहने की वजह से नस व रीढ़ की हड्डी से संबंधित परेशानी पनप रही हैं। संघ के वरिष्ठ सदस्य जितेंद्र ने बताया कि शिकायत के बाद न तो अवकाश मिल पाता है न ही आराम। बीमारी की दशा में भी हम लोग काम करने को मजबूर हैं। अधिकारी सुनवाई नहीं कर रहे हैं। स्थायी व्यवस्था बनाने में भी टालमटोल करते हैं। सुरक्षा मुहैया कराई जाए पीजीआई नर्सिंग एसोसिएशन की अध्यक्ष लता सचान का कहना है कि नर्सिंग आफीसर की वार्ड और रास्ते में सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। संस्थान में सभी नर्से के रहने के इंतजाम नहीं है। दिन और रात की शिफ्ट होने की वजह से अकेले आते जाते सुरक्षा का बड़ा खतरा रहता है। संस्थान प्रशासन को चाहिए कि सभी के लिए परिसर में आवास की व्यवस्था करे। कर्मचारियों और परिजनों के इलाज में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 14 नर्सों से बातचीत जब विधायक और सांसद को पुरानी पेंशन मिल सकती है तो नर्स व दूसरे कर्मियों को क्यों नहीं? सरकार को तुरंत पुरानी पेंशन को बहाल करना चाहिए। नर्सों को समान कार्य के लिए समान भत्ते दिए जाने चाहिए। मंजीत कौर, केजीएमयू केजीएययू में तैनात स्वास्थ्य विभाग की नर्स समान काम करती हैं। ओटी से लेकर इमरजेंसी और वार्ड में ड्यूटी कर रही हैं। फिर भी दोनों के भत्तों में 15 हजार अंतर है। सरकार को समान का काम समान वेतन और भत्ता देना चाहिए। इंदू यादव, केजीएमयू अस्पताल प्रशासन को स्टाफ के बच्चे रखने के लिये अस्पताल परिसर में क्रेच की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि बेटे को वहां सुरक्षित रख सकें। सरकार को इसकी व्यवस्था सुनिश्चित करानी चाहिए। गीतांशू वर्मा, बलरामपुर चिकित्सा संस्थान, मेडिकल कॉलेज व दूसरे सरकारी अस्पतालों में आउट सोर्सिंग और ठेके पर नर्सों की भर्ती की जा रही है। करीब 20 हजार के मानदेय देकर शोषण किया जा रहा है। सरकार को इस पर रोक लगनी चाहिए। सभी को स्थायी नियुक्ति दे। सत्येन्द्र कुमार, केजीएमयू नर्सों के वेतन विसंगति, एसीपी, प्रमोशन, भत्तों से जुड़े प्रकरण का जल्द निस्तारण की व्यवस्था की जाए। रोगियों की 24 घंटे नर्स सेवा करती हैं। ओटी से लेकर आईसीयू और वार्ड में रोगी के देखभाल का जिम्मे नर्स का होता है। फिर भी पदोन्नति आदि के लिये कई वर्ष इंतजार करना पड़ता है। -अमिता वैश्य, बलरामपुर अस्पताल पीजीआई, केजीएमयू समेत दूसरे चिकित्सा संस्थानों में नर्सों को नर्सिंग केयर एलाउनसेंस भत्ता दिया जाता है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के तहत तैनात नर्सों को यह भत्ते नहीं दिए जाते हैं। जबकि स्वास्थ्य विभाग की नर्सें केजीएमयू समेत दूसरे संस्थानों में उनके बराबर काम कर रही हैं। फिर भी भेदभाव किया जा रहा है। रीता, रेडक्रास, सीएचसी नर्स दिन और रात ड्यूटी करती हैं। अकेले पूरे वार्ड के रोगियों को देखने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन नर्सों को समय से एसीपी और प्रोन्नति का लाभ नहीं दिया जाता है। जबकि यह व्यवस्था एक सामान्य प्रक्रिया है। सरकार को समय पर देना चाहिए। नम्रता सिंह, सिविल अस्पताल 20 साल से पदोन्नति नहीं हुई है। जबकि नियमत: सात वर्ष में हो जानी चाहिए। पूरी शिद्दत से रोगियों की सेवा करने के बावजूद पदोन्नति नहीं की जा रही है। शासन और स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को चाहिए कि निर्धारित समय पर पदोन्नति का लाभ दें। नीलम अनुपम, सिविल अस्पताल नर्स की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। दिन और रात दोनों शिफ्ट में अकेले ड्यूटी करती हैं। अक्सर किसी रोगी की मौत व तबीयत बिगड़ने पर उग्र हो जाते हैं। मारपीट करने पर आमदा हो जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वार्ड में सुरक्षा गार्ड की तैनाती होनी चाहिए। मंजू देवी, लोक बंधु अस्पताल जब प्रशिक्षण एक जैसा है, तो भत्ते में भिन्नता किस बात की? चिकित्सा संस्थान अपनी नर्सों को 15 हजार रुपये का अतिरिक्त भत्ता मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग को नहीं मिलता है। शबनम, लोक बंधु अस्पताल रात की ड्यूटी में परेशानी होती है। अस्पताल में सुरक्षा के इंतजाम नहीं होने से डर लगा रहता है। कई बार मरीज और तीमारदार बात-बात में गुस्सा और झगड़ने लगते हैं। ऐसे में अस्पताल के मुख्य गेट, इमरजेंसी के अलावा हर वार्ड में सुरक्षा गार्ड की तैनाती होनी चाहिए। रीना यादव, लोक बंधु अस्पताल सिंगल पैरेंट की वजह से बच्चों की देखभाल में दिक्कतें आ रही हैं। बच्चों की देखभाल नहीं हो पाती है। ड्यूटी के साथ बच्चों को रखना काफी मुश्किल होता है। बच्चे को बीमारी और संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है। सरकार को बच्चों के लिए अस्पताल में पालना घर आदि सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। -रेनू पटेल, केजीएमयू नई और यूनीफाइड पेंशन स्कीम कतई मंजूरी नहीं हैं। सेवानिवृत्त के बाद इसमें कोई सुरक्षा नहीं है। पुरानी पेंशन बुढ़ापे का एकमात्र सराहा है। पुरानी पेंशन की बहाली के कर्मचारी और अधिकारी संघर्ष कर रहे हैं। सरकार को पुरानी पेंशन बहाल कर देनी चाहिए। कनक तिवारी, केजीएमयू नर्स को भी गृह जिले में तैनाती मिलनी चाहिए। परिवार व बच्चों से दूर रहकर नौकरी करने में बहुत दिक्कतें आती हैं। जब दूसरे संवर्ग के स्वास्थ्य कर्मचारी गृह जिले में रह सकते हैं तो नर्स क्यों नहीं रह सकती हैं। सरकार को चाहिए कि नर्स को गृह जिले में तैनाती की व्यवस्था करे। सुनीता शुक्ला,बलरामपुर अस्पताल

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।