बोले मेरठ : दस साल नौकरी के बाद भी रोजगार की तलाश
Meerut News - मेरठ की सड़कों पर दौड़तीं जेएनएनयूआरएम की बसों के चालक परिचालक जिंदगी की दौड़ में पीछे नजर आते हैं। कई साल यात्रियों और विभाग की सेवा में लगाने के बाद भी उन्हें मिला सिर्फ इंतज़ार, टूटी उम्मीदें। जो अपना और परिवार का पेट पालने में भी असमर्थ हैं। एक बार फिर वो जिंदगी में वही रफ्तार चाहते हैं।

मेरठ की सड़कों पर दौड़तीं जेएनएनयूआरएम की बसों के चालक परिचालक जिंदगी की दौड़ में पीछे ही नजर आते हैं। अपनी जिंदगी के कई साल यात्रियों और विभाग की सेवा में लगाने के बाद भी उन्हें मिला सिर्फ इंतज़ार, टूटी उम्मीदें। जो अपना और परिवार का पेट पालने में भी असमर्थ हैं। एक बार फिर वो जिंदगी में वही रफ्तार चाहते हैं।
जेएनएनयूआरएम के तहत मेरठ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड में दस वर्षों तक नौकरी करने वाले लगभग 400 चालक और परिचालक आज बेरोजगारी के अंधेरे में भटक रहे हैं। कभी इनकी पहचान मेरठ की रफ्तार थी, आज ये सिस्टम की लापरवाही का शिकार बनकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अपने हक के लिए ये लोग न जाने कितनी बार अधिकारियों के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन समाधान कुछ नहीं निकला। आज खुद और अपने परिवार का जीवन चलाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। एक बार फिर बस की उसी सीट पर बैठकर नौकरी करने की आस लिए दर-दर की भटक रहे हैं। फिर से नौकरी के लिए गुहार लगाने वाले ये चालक और परिचालक खुद से ज्यादा अपने परिवार की चिंता में जी रहे हैं। जिनके बच्चे आज नौकरी नहीं होने के कारण स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं, स्कूलों में एडिमशन का इंतजार कर रहे हैं। कई लोगों के घरों में चूल्हा तो जलता है, लेकिन उम्मीद नहीं होती कि कल भी कुछ होगा।
मेरठ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड के तहत काम करने वाले संविदा कर्मचारी दिलीप कुमार, विकास कुमार, वरूण कुमार और जितेंद्र कुमार का कहना है, कि 2009 में जेएनएनयूआरएम ( जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन) के तहत बस सेवा शुरू हुई थी। जिसमें 120 गाड़ियों का संचालन शुरू हुआ था। चालक और परिचालकों की नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी, लेकिन कोरोना काल में 2020 के दौरान सभी 120 गाड़ियों का समय खत्म होने पर संचालन बंद कर दिया गया। इसके बाद जून 2021 में कानपुर से करीब 96 सीएनजी बसें मेरठ में लाई गईं थीं। इन बसों पर पुराने स्टाफ को समायोजित कर दिया गया था। लेकिन इन गाड़ियों का भी संचालन समय पूरा होने के साथ ही बंद कर दिया गया। अब हालात ये हैं कि करीब 400 कर्मचारी बेरोजगार हैं, और परिवार चलाने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं, जो केवल अपनी नौकरी का समाधान चाहते हैँ।
बसें बंद होने के साथ ही चली गई नौकरी
सिटी ट्रांसपोर्ट के तहत बसों पर काम करने वाले बेरोजगारी का दंश झेल रहे अतुल शर्मा, अनिल प्रताप सिंह, प्रवीण शर्मा, सुनीत शर्मा और वासु वैद्य का कहना है, कि कानपुर से आईं सभी गाड़ियां भी कंडम हालत में शोहराबगेट डिपो में खड़ी हैं। इनमें से केवल 12 गाड़ियां ही सड़कों पर हैँ, जिनमें 8 वॉल्वो और चार सीएनजी शामिल हैं। कुछ समय बाद इन बसों का संचालन भी समय पूरा होने के साथ ही बंद हो जाएगा। इन बसों पर काम करने वाले सभी कर्मचारियों की नौकरी भी अब नहीं रही है। हाल में संचालित इलेक्ट्रिक बसों पर ना तो पुराने संविदा कर्मियों को समायोजित किया गया, और ना ही उन्हें कहीं नौकरी दी जा रही है। बस अधिकारियों से गुहार ही लगाते रहते हैँ।
एक दशक नौकरी, फिर अचानक बाहर का रास्ता
अमरपाल सिंह, अरविंद गौतम, राहुल सैनी और प्रवीण कुमार का कहना है कि सभी संविदाकर्मी आज बिना नौकरी के घरों पर बैठे हैं। बस इसी आस में कि उनको विभाग कहीं समायोजित कर नौकरी देगा। हाल में शहर के अंदर चल रहीं 51 इलेक्ट्रिक बसों पर प्राइवेट कंपनी द्वारा दूसरे चालक व परिचालक रख दिए गए हैं। लेकिन पुराने कर्मचारियों को समायोजित नहीं किया गया। इससे हालात और भी खराब हो गए हैं। बेरोजगार हुए लगभग 400 लोग आज अपने परिवार का पेट पालने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। रोज सोचते हैं कि आज उनको नौकरी के लिए बुलाया जाएगा। दस साल से भी ज्यादा इस विभाग में नौकरी की, लेकिन विभाग उनकी दुविधा को समझ नहीं पा रहा है।
भुखमरी के कगार पर परिवार
बसों का संचालन बंद होने के बाद बेरोजगार हुए राहुल, सुमित कुमार और आशीष का कहना है कि परिवार आज भुखमरी के कगार पर आ गया है। सड़कों पर दौड़ती सैकड़ों सीएनजी बसें 15 साल की अधिकतम सेवा अवधि पूरी कर ठप पड़ी हैं। इन बसों के साथ ही उनका जीवन भी ठहर गया है। हम लोगों का जीवन, जिनकी रोज़ी-रोटी इन्हीं पहियों से चलती थी, अब वो भी नहीं बची है। हालात बहुत ज्यादा दयनीय हो चले हैं, जिस तरह लखनऊ में नई बसों पर पुराने चालक व परिचालकों को समायोजित किया गया है, अगर उसी तरह यहां के कर्मचारियों को भी लगा दिया जाए तो राहत की सांस मिलेगी।
बच्चों की फीस भी नहीं दे पा रहे
बेरोजगार हुए इन बस चालक व परिचालकों का कहना है कि एक व्यक्ति जिसने अपना पूरा एक दशक, बिना शिकायत, बिना सवाल सिर्फ अपने कर्तव्य के निर्वहन में लगाया हो। आज उसी को बगैर किसी पूर्व सूचना के दरकिनार कर दिया गया। न कोई विकल्प, न कोई दुबारा नियुक्ति की व्यवस्था। इन लोगों के हालात ये हो गए हैं कि बच्चों की फीस तक भी नहीं दे पा रहे हैं। कई लोगों के बच्चों के एडमिशन तक स्कूलों में नहीं हो पाए हैं। बच्चे घर पर बैठे इस इंतजार में हैं कि कब पापा की नौकरी लगेगी और उनका एडमिशन होगा।
नौकरी के भटकना पड़ रहा है
बेरोजगार हुए इन संविदा कर्मियों का कहना है कि आजकल उनके पास मेरठ तक आने के पैसे नहीं होते। यहां अधिकारियों को ज्ञापन देने आने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। अब केवल उनको अश्वासन ही मिलता है, काम देने के लिए कोई अधिकारी नहीं सोचता। अगर सभी को रोडवेज परिवहन के तहत भी समायोजित कर दिया जाए तो परिवार की रोजी-रोटी तो चल जाएगी। इनका कहना है कि सड़कों पर चल रहीं कुछ बसों कार्मिकों को प्रबंधन द्वारा मात्र उपस्थिति रजिस्टर में नाम दर्ज करवाने के लिए 6 घंटे तक बैठने को विवश किया जाता है, लेकिन उसका कोई मेहनताना नहीं दिया जाता। ये कैसी व्यवस्था है, जहां काम के बदले केवल प्रतीक्षा और अपमान ही मिलता है।
पीएमआई बसों के दोहरे मापदंड से परेशानी
इन संविदाकर्मियों का कहना है कि मेरठ में पीएमआई इलेक्ट्रिक बसों का संचालन जेएमडी कंपनी के नए परिचालकों से कराया जा रहा है, जबकि लखनऊ में वहीं पुराने संविदा परिचालक अब भी कार्यरत हैं। सवाल यही उठता है कि जब राज्य एक है, विभाग एक है, तो फिर नियम दो क्यों, मेरठ के पुराने कर्मचारी भी पीएमआई इलेक्ट्रिक बसों में समायोजित क्यों नहीं किए जा सकते। अगर उनको समायोजित कर दिया जाए तो कुछ समस्या का हल तो निकलेगा। अधिकारियों से केवल आश्वासन ही मिलता है, लेकिन पिछले पांच महीनों से हालात बदतर हो गए हैं।
समाधान नहीं हुआ तो करेंगे आंदोलन
नौकरी के इंतजार में बैठे इन कर्मचारियों का कहना है कि हम 400 परिवार हैं, जो आज भूख, बीमारी, बच्चों की पढ़ाई और घर की जरूरतों से लड़ रहे हैं। कई बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है, कई घरों में दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम मुश्किल हो गया है। मानसिक और आर्थिक तनाव इतना गहरा है, कि कुछ लोगों ने दवाओं का सहारा लेना शुरू कर दिया है। प्रशासन से बार-बार ज्ञापन, नोटिस, और अपीलों के बाद भी यदि कोई सुनवाई नहीं होती, तो हम लोग बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे। अधिकारियों का यूपी सरकार के आदेशों को नजरअंदाज करना, बातचीत से बचना और समस्याओं का समाधान न करना गलत है। हमारी बातें सुनी जाएं और उनका समाधान किया जाए। अगर जल्द समाधान नहीं होता तो आंदोलन किया जाएगा।
बयां किया दर्द
पीएमआई इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर पूर्व से सेवारत संविदा परिचालकों को समायोजित किया जाए तथा उनसे ही संचालन कराया जाए, जिससे सभी की समस्याओं का समाधान हो सके। - दिलीप कुमार
जिस कंपनी द्वारा भर्ती किए गए परिचालकों से पीएमआई इलेक्ट्रिक गाड़ियों एवं सीएनजी बसों दोनों पर परिचालन कराया जाता है, उसे बंद किया जाए, पुराने कर्मी समायोजित हों। -विकास कुमार
धीरे-धीरे सभी बसें अब बंद होती जा रही हैं, शोहराबगेट बस डिपो पर गाड़ियां कंडम हालात में खड़ी हैं, जिन पर काम करने वाले सभी कर्मचारी अब घरों पर बेरोजगारी झेल रहे हैं। - तरुण कुमार
इन बसों का संचालन बंद होने की वजह से चालक और परिचालक भुखमरी के कगार पर हैं, कई बार उच्चाधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई समाधान को तैयार नहीं। - जितेन्द्र कुमार
हमारी मांग है, कि मेरठ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड में संचालन से अलग की गईं सभी गाड़ियों को दुबारा चालू किया जाए, और सभी संविदाकर्मियों को फिर काम दिया जाए। - अतुल शर्मा
कर्मचारियों की बेरोजगारी की समस्या का समाधान जल्द होना चाहिए, क्योंकि सभी के लिए समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, हमारा परिवार भी हमारे साथ सफर कर रहा है। - अनिल प्रताप सिंह
समस्याओं का समाधान हो जाए तो समस्त चालक और परिचालक अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें और अपने बच्चों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था भी कर पाएंगे। - प्रवीण शर्मा
आजतक प्रबंधन या प्रशासन ने हम संविदाकर्मियों से कोई वार्ता नहीं की है और ना ही किसी समस्या का कोई समाधान किया जा रहा है, ऐसे में हमारे सामने रोजगार का संकट खड़ा है। -सुनीत शर्मा
प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों को 6-6 घंटे बैठने के लिए विवश किया जाता था, जिसका कोई वेतन आजतक नहीं मिला। 6 घंटे बैठने के बाद भी रजिस्टर में मात्र उपस्थिति दर्ज की जाती थी। - वासु वैद्य, शाखा मंत्री
मेरठ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड के संविदा चालक और परिचालकों को यूपीएसआरटीसी में समायोजित किया जाए या इसके स्थान पर सोहराबगेट डिपो में समायोजन किया जाए। - अमरपाल, शाखा अध्यक्ष
सिटी ट्रांसपोर्ट की ओर कोई देखने तक को तैयार नहीं है, ना ही कोई समस्या को समझना चाहता है, ना ही निस्तारण करना चाहता है, हम लोगों की परेशानियों का समाधान किया जाए। -अरविंद गौतम
समय पूर्ण हो जाने कारण सभी सीएनजी बसों का संचालन बंद हो गया है, जिस कारण संविदा कर्मचारियों के सामने अपने परिवार के भरण-पोषण करने की परेशानी आ रही है। - राहुल सैनी
सभी लोग बेरोजगार हो गए हैं, जिससे हमारे बच्चों के लिए शिक्षा का संकट खड़ा हो गया है। रोजगार ही नहीं होगा तो पारिवारिक खर्चे कैसे चल पाएंगे, सभी यह समस्या झेल रहे हैं। - प्रवीण कुमार
जेएनएनयूआरएम की बसों का संचालन बंद होने से सभी संविदा चालक व परिचालक आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान चल रहे हैं। किसी के पास परिवार को चलाने का साधन नहीं है। - राहुल
बेरोजगार हो चुके समस्त जेएनएनयूआरएम की सीएनजी बसों के कार्मिकों को इलेक्ट्रोनिक बसों में समायोजित किया जाए, जिससे उनकी समस्या का समाधान निकल सके। - सुमित कुमार
बसों का संचालन जब से बंद हुआ है, तब से लेकर आज तक कर्मचारी केवल नौकरी के लिए भटक रहे हैं, कमिश्नर, डीएम, परिवहन अधिकारी सभी को समाधान के लिए ज्ञापन दे चुके हैं। - आशीष कुमार
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समस्या
- मेरठ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज की बसों का संचालन हो चुका है बंद
- सिटी बसों पर काम करने वाले सभी संविदाकर्मी बेरोजगार हो गए
- इन संविदाकमिर्यों के परिवार का भरण-पोषण मुश्किल हो गया है
- सभी लोग आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान चल रहे हैं
- सिटी ट्रांसपोर्ट की ओर से कोई देखने तक को तैयार नहीं
सुझाव
- यूपीएसआरटीसी या इलेक्ट्रोनिक बसों में समायोजित किया जाए
- शासन और प्रशासन स्तर पर इनकी समस्या का निस्तारण हो
- सभी की समस्याएं सुनी जाएं और अधिकारी समाधान निकालें
- शासन और प्रशासन द्वारा बेरोजगारी के लिए कुछ किया जाए
- इनकी आर्थिक व मानसिक परेशानी को कम किया जाए
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