कारगिल युद्ध में पांच जवानों ने पाई थी वीरगति
Muzaffar-nagar News - मुजफ्फरनगर के शहीदों की शौर्य गाथा आज भी लोगों को प्रेरित करती है। 1999 में कारगिल युद्ध में पांच जवानों ने वीरगति पाई। इनमें लांस नायक बचन सिंह, नरेंद्र राठी, अमरेश पाल, रिजवान और सतीश कुमार शामिल...

मुजफ्फरनगर। वर्ष 1999 हुए कारगिल युद्ध को आपरेशन विजय का नाम दिया गया था। कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम पर जनमानस को आज भी नाज है। दो दशक पहले शुकतीर्थ में बना कारगिल शहीद स्मारक युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने का काम करता है। इस लड़ाई में जिले के पांच जवानों ने भारत माता की रक्षा करते हुए वीरगति पाई थी। इनमें पचेंडा कलां के लांस नायक बचन सिंह, इटावा के नरेंद्र राठी, बेलड़ा के अमरेश पाल, विज्ञाना के रिजवान और फुलत गांव के सतीश कुमार की शहादत पर जिले को नाज है। जिला सैनिक एवं पुनर्वास अधिकारी कर्नल राजीव चौहान ने बताया कि पचेंडा कलां निवासी लांसनायक बचन सिंह ने 12 जून 1999 को कारगिल लड़ाई में बेटले ऑफ तोलोलिंग चोटी पर देश के लिए प्राणों की आहुति दी थी।
शहीद की पत्नी कामेश बाला ने बेटे हितेश को कैप्टन बनाकर कारगिल में शहीद हुए पति को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। शहीद बचन सिंह की शहादत के वक्त उसके जुड़वा बेटों हितेश और हेमंत की उम्र साढ़े पांच साल थी। बेटा हितेश आज उसी राजपूताना राइफल्स में कैप्टन है, जिस बटालियन में उनके पिता लांसनायक थे। हितेश 8 जून 2018 को आईएमए देहरादून की पासिंग आउट परेड पास कर लेफ्टिनेंट बने थे। कारगिल की लड़ाई में विज्ञाना गांव के जाबांज सपूत रिजवान त्यागी शहीद हो गए थे। शहादत के दौरान उनकी इकलौती बेटी हिना सिर्फ चार साल की थी। रिजवान सरहद पर 3 जुलाई को शहीद हुए थे। उनकी पत्नी बानो ने बेटी हिना की परवरिश में पूरी ताकत लगा दी। बुढ़ाना के इटावा निवासी अनीता कारगिल लड़ाई का नाम सुनते ही सिहर उठती हैं। नरेंद्र राठी ने कारगिल लड़ाई में ऑपरेशन विजय के दौरान काक्षर हिल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाए थे। किसान तालसिंह का बेटा नरेंद्र राठी अप्रैल 1999 में एक माह की छुट्टी के बाद ड्यूटी पर चला गया था। उसकी पोस्टिंग कारगिल की पहाड़ियों पर हो गई। सरहद पर लड़ते हुए उन्होंने वीरगति पाई थी। परिवार में उनकी पत्नी अनीता देवी और पुत्र सुमित राठी तथा पुत्री सुरचना है। बेटा सुमित राठी बीटेक करने के बाद नोएडा की एक कंपनी में इंजीनियर है। कारगिल लड़ाई में बेटे सतीश की शहादत पर आज भी पिता धर्मपाल नाज महसूस करते हैं। 26 जुलाई 1999 को कारगिल की लड़ाई में रेजिमेंट के जांबाज सिपाही फौजी सतीश कुमार ने प्राणों की आहुति दी थी। वहीं बेलड़ा निवासी अमरेश पाल के बेटा और बेटी को पिता के साहस और राष्ट्र भक्ति पर गर्व है। पिता की शहादत का बदला लेने के लिए वह सेना में भर्ती होने के लिए तैयार है। अमरेश पाल 28 जून 1999 को कारगिल लड़ाई शहीद हो गए थे।
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