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बोले बिजनौर : घड़ियों के ‘डॉक्टर को सुनहरे समय की आस

Muzaffar-nagar News - घड़ी ठीक करने वाले कारीगर आज कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जैसे डिजिटल घड़ियों का बढ़ता उपयोग और सस्ती चाइनीज घड़ियों की बिक्री। पहले जहां घड़ियों की मांग अधिक थी, अब कारीगर बेरोजगार हो रहे हैं और...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फर नगरSun, 20 April 2025 09:15 PM
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बोले बिजनौर : घड़ियों के ‘डॉक्टर को सुनहरे समय की आस

घड़ी ठीक करने वाले कारीगरों को आज के समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर ज्यादातर लोग डिजिटल घड़ियों और स्मार्टवॉच का उपयोग कर रहे हैं, जिससे मैकेनिकल घड़ियों की मांग कम हो गई है। वहीं, डुप्लीकेसी भी एक बड़ी समस्या है, जिससे घड़ीसाजों की मुसीबत और बढ़ जाती है। एक तो पहले ही घड़ी ठीक करने वाले कारीगरों को कम काम मिल रहा है, दूसरा हर कोई बिना किसी पंजीकरण, लाइसेंस आदि के घड़ियां बेचने लगा है, जिससे उनकी आमदनी भी कम हो रही है। व्यापारियों की मांग है कि पुलिस या संबंधित विभाग को पर कठोर कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा आर्थिक मदद की भी दरकार है, जिसके लिए आसान किश्तों पर लोन आदि की व्यवस्था हो। घड़ी ठीक करने वालों को रोजगार का प्रशिक्षण दिलाया जाए ताकि वे किसी अन्य काम में अपना हुनर दिखा सके। आज कारीगरों को अपने परिवार का पालन पोषण के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

आज से करीब 15 साल पहले तक घड़ियों का कारोबार किफायती और फायदे का सौदा माना जाता था। घरों में बड़ी एक से बढ़कर एक घड़ियां लगी होती थीं। हर घंटे समय बताने के लिए घंटे वाली घड़ियों की डिमांड होती थी। सुईयों व डायल वाली घड़ियों की मरम्मत के लिए दुकानों के बाहर छोटे काउंटर लगे होते थे। छोटे-बड़े हर शहर में सैकड़ों की तादाद में घड़ी कारीगर होते थे। घड़ी कारीगरों के पास काम सीखने के लिए भी कई युवा मौजूद होते थे, लेकिन घड़ी कारोबार पर वक्त की ऐसी मार पड़ी कि लोग हाथ की घड़ियों व दीवार घड़ियों को भूलने लगे। किसी समय बिजनौर में 200 से अधिक घड़ी कारीगर हुआ करता थे और जिले में एक हजार से अधिक कारीगर होते थे। घड़ियों की काफी संख्या में बेचने की दुकानों होती थी तथा दूसरी दुकानों के बाहर भी घड़ी मरम्मत के लिए छोटे काउंटर रखे होते थे।

घड़ी कारीगरों के पास काम की भरमार होती थी और वह कई-कई दिन बाद घड़ी की मरम्मत कर ग्राहक को चालू हालत में लौटाते थे। लेकिन बदलते दौर ने घड़ियों की अहमियत को कम कर दिया। जिससे लिए मोबाइल को ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है। घड़ियों के कारीगरों को बेरोजगार करने में सस्ती चाइनीज घड़ियां का अहम रोल है। घड़ी कारीगर महताब अहमद, मुबारक भाई, वसीम अहमद बताते हैं कि चाइनीज घड़ियां बेहद सस्ती होती हैं। जो यूज एंड थ्रो के काम आती है। जिससे ग्राहक घड़ी के खोने व खराब होने पर नई ले लेता है। इससे घड़ी कारीगरों पर काम कम हो गया। घड़ी कारीगर बेरोजगार हो गए हैं। दूसरा अब कंपनियां घड़ी की मशीनों को सील पैक भेज रही है। जो खुल नहीं पाती है। उसे कंपनी को ही भेजना पड़ता है। कंपनी मशीन को बदल देती है। जिससे कारीगरों के पास करने को काम नहीं बचा है।

जिले के बड़े घड़ी कारोबारी नसीम अख्तर, फहीम अख्तर और नसीम अहमद का कहना है कि सस्ती चाइनीज घड़ियों के बाजार में आने से घड़ी की क्लालिटी व बिक्री पर तो फर्क पड़ा ही है। बाजार पर सबसे ज्यादा फर्क आनलाइन बाजार ने डाला है। जिससे अच्छा ग्राहक बाजार में नहीं आता है, बल्कि वो आनलाइन खरीदारी कर लेता है। जिससे बाजार मंदा हो गया है। मोबाइल के चलते युवा भी अब घड़ियों को अपनी कलाई पर बांधने को तैयार नहीं है। चुनिंदा लोग ही घड़ियों के शौकीन बचे हैं।

घड़ी कारीगर रानू अहमद, अली शान, मौ. फिरोज ने बताया कि पहले सुई व डायल वाली घड़ियां आती थीं, जिसकी मरम्मत की जाती थी। कलपुर्जे कसे जाते थे, तेल ताला जाता था। अब घड़ियों में डायल नहीं आता है, बल्कि मशीन आती है। जो खराब हो गई, तो ठीक नहीं होती है। मशीन की बदलनी पड़ती है। ऐसे में उनका काम खत्म हो गया है। लोग अब घड़ी मरम्मत कराना से बेहतर नई घड़ी खरीदना पसंद करते है। उनके सामने रोजगार की मार पड़ रही है।

दूसरा काम करने लगे घड़ी कारीगर

सीनियर कारीगर महताब अहमद, रानू अहमद, मुबारक अहमद बताते है कि काम न होने के चलते घड़ी कारीगर बेरोजगार हो गए हैं। घड़ी कारीगर मंदी के चलते अपना पारंपरिक काम छोड़कर दूसरे कामों में लग गए है। उस्ताद लोग खुद काम को छोड़कर दूसरा कारोबार तलाश रहे है।

एक हजार से लेकर 50 हजार तक की घड़ी मौजूद

कई बड़ी कंपनियों के कारोबारी नसीम अख्तर, फहीम अख्तर ने बताया कि एक हजार रूपये से लेकर 50 हजार तक की घड़ी उनके पास मौजूद है। पहले महंगी घड़ियों के शौकीन लोग शोरूम से घड़ी खरीदते थे, लेकिन आनलाइन बिक्री ने उनके कारोबार को कम कर दिया है। अब एक हजार से लेकर पांच हजार तक की घड़ी के ग्राहक ही आते हैं। जबकि महंगी घड़ी को आनलाइन खरीद लिया जाता है। जिससे बाजार का कारोबार घटा है।

घड़ियों की मरम्मत का काम नहीं सीखना चाहते युवा

युवा अब घड़ियों का काम नहीं सीखना चाहते हैं। जिसके चलते घड़ियों के कारीगर सिमट गए हैं। बिजनौर में कभी 300 से अधिक कारीगर हुआ करते थे, जो मौजूदा समय में मात्र 15 से 20 रह गए हैं। कहा जा रहा है कि डिजिटल घड़ियों और स्मार्टवॉच के बढ़ते उपयोग के कारण पारंपरिक घड़ियों की मांग कम हो रही है। जिसके चलते लोग घड़ी का काम नहीं सीखना चाहते हैं। नई पीढ़ी की रुचि डिजिटल तकनीक और स्मार्ट डिवाइसों में अधिक हो गई है। जिससे वे पारंपरिक घड़ियों के काम पर ध्यान नहीं दे रहे है।

ये बोले कारीगर

चाइना की सस्ती खड़ी आ रही है। उनकी रिपेयर नहीं होती है। लोग खराब होने के बाद घड़ी बदल देते हैं। इससे घड़ी मिस्त्रियों का काम प्रभावित हुआ है। - महताब अहमद।

पहले खूब घड़ियों की खरीदारी होती थी। घड़ी बिकती थी तो सही भी होती थी लेकिन अब घड़ियों की खरीदारी कम हुई है। घड़ी मिस्त्री के पास कम काम है। - मुबारक भाई।

आज मोबाइल ने घड़ियों का क्रेज कम कर दिया है। लोग मोबाइल से ही घड़ी का काम ले रहे हैं। यहीं कारण है कि घड़ी के मिस्त्री काम कम होने पर कम होते जा रहे हैं। - रानू अहमद।

घड़ियों की मशीन सीलपैक आ रही है। खराब होने पर कम्पनी दूसरी मशीन लगा देती है। घड़ी के मिस्त्री इन घड़ियों को ठीक नहीं कर पाते हैं। मिस्त्री दूसरा काम करने लगे हैं। - रशीद अहमद।

पहले अधिकांश लोगों को हाथ में घड़ी बांधने का शौक था। अब मोबाइल ने घड़ी का क्रेज कम कर दिया है। जब लोग घड़ी नहीं पहनेंगे तो खराब भी नहीं होगी। - वसीम अहमद

शादी विवाह में ही घड़ी की खरीदारी हो रही है। हालात ऐसे है कि घड़ी के मिस्त्री खाली बैठे हैं। अगर ऐसे ही चला तो एक दिन घड़ी सही करने का काम ही नहीं मिल रहा है। घड़ी के मिस्त्री लगातार कम होते जा रहे हैं। - अली शान।

पहले एक दिन में एक दुकान पर सस्ती और महंगी लगभग 15 से 20 घड़ी आसानी से बिक जाती थी, लेकिन अब एक दो घड़ी ही बिकती है। घड़ी मिस्त्रियों का कम खत्म हो रहा है। - जुबैर।

एक समय था जब हर चौराहें पर घड़ी के मिस्त्री हुआ करते थे लेकिन आज कम खत्म होने पर मिस्त्री भी कम हो गए हैं। मिस्त्री कम होने का कारण घड़ी रिपेयर का काम न मिलना है। - फैजी।

जो होशियार घड़ी के मिस्त्री है उनके पास आज भी काम है लेकिन पहले जैसा काम अब नहीं रहा। पहले की अपेक्षा घड़ी रिपेयर के काम में काफी गिरावट आई है। - मोहम्मद फिरोज।

ऑनलाइन खरीदारी ने घड़ियों का कारोबार प्रभावित किया है। हर कोई ऑनलाइन खरीदारी कर रहा है। इससे घड़ी मिस्त्री भी प्रभावित हुए हैं। - नसीम अख्तर।

पहले घड़ी मिस्त्री का काम सीखने काफी लोग आते थे लेकिन अब कोई काम सीखने नहीं आता है। इससे पता चल रहा है कि रिपेयर का काम कम हो गया है। - नसीम अहमद।

यूज एंड थ्रो वाली घड़ी मार्केट में आ गई हैं। इस तरह की घड़ियों को कोई सही नहीं कराता है। मशीन सील पैक वाली घड़ियों के साथ भी यहीं समस्या है। - इस्लामुद्दीन।

ब्रांडेड घड़िया कम खराब होती है। अगर खराब होती है तो ठीक होने के लिए कम्पनी के पास ही जाती है। घड़ी के मिस्त्री इस तरह की घड़ियों को ठीक नहीं कर पाते हैं। घड़ी रिपेयर का काम काफी कम हुआ है। - फहीम अख्तर।

सुझाव

- चाइना की सस्ती घड़ी नहीं बिकनी चाहिए।

- बाजार में ऐसी घड़ी आएं जो मिस्त्री भी ठीक कर सकें।

- घड़ियों की ऐसी मशीन आए जो सड़कों पर बैठे मिस्त्री कर सकें ठीक।

- घड़ियों की ऑनलाइन खरीदारी पर रोक लगनी चाहिए।

- अच्छी कम्पनी की घड़ी की कीमतों में आए गिरावट।

शिकायतें

- यूज एंड थ्रो वाली घड़ी से मिस्त्रियों को नहीं मिल रहा काम।

- घड़ी की मशीन सीलपैक होने के कारण रिपेयर का काम हुआ प्रभावित।

- ऑनलाइन खरीदारी ने घड़ियों का कारोबार कम कर दिया है।

- मोबाइल ने खत्म किया घड़ियों का क्रेज।

- पहले की तरह अब नहीं होती घड़ियों की खरीदारी। शादी विवाह वाले लोग ही ज्यादा खरीद रहे घड़ी।

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