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मृतक के खिलाफ नोटिस और 22 लाख रुपये के अर्थदंड की डिमांड, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बताया अवैध

मृत व्यक्ति के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस एवं अर्थदंड के आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध ठहराया है। इसमें कहा गया है कि धारा-93 के अंतर्गत विधिक प्रतिनिधि से रिकवरी का प्रावधान दिया गया है। लेकिन मृत व्यक्ति के विरुद्ध नोटिस/अर्थदंड आदेश की कार्रवाई करने संबंधी कोई उल्लेख नहीं।

Srishti Kunj वरिष्ठ संवाददाता, आगराFri, 25 April 2025 11:00 AM
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मृतक के खिलाफ नोटिस और 22 लाख रुपये के अर्थदंड की डिमांड, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बताया अवैध

मृत व्यक्ति के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस एवं अर्थदंड के आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध ठहराया है। इसमें कहा गया है कि धारा-93 के अंतर्गत विधिक प्रतिनिधि से रिकवरी का प्रावधान दिया गया है। लेकिन मृत व्यक्ति के विरुद्ध नोटिस/अर्थदंड आदेश की कार्रवाई करने संबंधी कोई उल्लेख नहीं। मामला यूपी के आगरा स्थित सेठिया ट्रेडिंग कंपनी के मालिक अमित कुमार सेठिया से जुड़ा है। उनकी मृत्यु के बाद मई 2021 में जीएसटी विभाग ने उनकी फर्म का पंजीयन निरस्त कर दिया। उसके बाद सितंबर 2023 में उनके नाम से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।

नोटिस का जवाब न मिलने पर नवंबर 2023 में उनके विरुद्ध अर्थदंड आदेश पारित कर दिया। मृतक की पत्नी अलका सेठिया ने इलाहबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट को बताया कि जीएसटी विभाग को यह मालूम था कि उनके पति की मृत्यु हो चुकी है। फिर भी मृत व्यक्ति के विरुद्ध कारण बताओ नोटिस जारी कर अर्थदंड आदेश पारित कर 22 लाख रुपये की डिमांड निकाल दी। पारित अर्थदंड आदेश निरस्त करने योग्य है। वहीं विभाग द्वारा तर्क दिया गया कि जीएसटी अधिनियम की धारा-93 के अंतर्गत मृत कारोबारी के विधिक प्रतिनिधि से रिकवरी करने का प्रावधान है। कोर्ट ने इस नोटिस को निरस्त कर दिया।

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आदेश में कोर्ट ने कहा कि जीएसटी अधिनियम के अंतर्गत मृत व्यक्ति के विरुद्ध नोटिस/आदेश पारित करने का कोई प्रावधान नहीं है। संचालक की मृत्यु के बाद यह नोटिस उसके विधिक प्रतिनिधि को देना है। विधिक प्रतिनिधि से उत्तर मांगने के बाद अर्थदंड आदेश की कार्रवाई विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध होनी चाहिए।

जीएसटी विशेषज्ञ, सीए, सौरभ अग्रवाल ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि उच्च न्यायलय द्वारा मृत व्यक्त के विरुद्ध जारी कारण बताओ नोटिस एवं अर्थदंड आदेश को विधि विरुद्ध माना है। यह निर्णय उल्लेखनीय है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।